- 206 Posts
- 722 Comments
हमारे भारत में बहुत सी प्रम्पराएँ हैं और हम उन्हें मनाते/निभाते भी हैं भारत वर्ष स्वतंत्र होने के बाद हमारे नेताओं को लगा की अपने बुजुर्गों को याद रखने के लिए कुछ किया जाय तो उन्होंने ने संसद भवन परिसर में ही बहुत से सम्मानीय व्यक्तियों कि आदम-कद प्रतिमाएं स्थापित करा तथा अब उनके जन्म दिवस और निर्वाण दिवस पर फूल अर्पित करके उन्हें श्रधांजलि देते रहते हैं ! इसी प्रकार से हमने आर्टिकल ३४३ के द्वारा १९५० को संविधान में हिंदी भाषा की देवनागरी लिपि को सरकारी कम-काज की भाषा स्वीकार किया था | चूँकि हम ( सरकार ) हिंदी भाषा को उसके मुकाम तक तो पंहुचा नहीं सकी हैं इस लिए उसके मातम को एक पखवाड़े तक सरकारी शोक ( १४ सितम्बर से २८ सितम्बर तक ) बहुत जोर शोर से हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है | यहां तक की हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी हिंदी का मजाक उड़ाने के लिए हिंदी की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है जहां बहुत से नकद इनाम देकर सरकारी स्तर पर इतिश्री कर दी जाती है.
आज़ादी के बाद का भारतीय भाषाओं के साहित्य का पतन भी यही दर्शाता है। इसका मुख्य कारण हमारी दोषपूर्ण शिक्षापद्धति व हमारी ‘कोलोनियल’ अर्थात गुलाम या पराधीन सोच है। हमारी भाषाएँ जो कि हमारे आम व्यक्ति के लिए उसकी अभिव्यक्ति का साधन होनी चाहिए, आज वे कुंठा का माध्यम बन कर रह गई हैं। इसका कारण भारतीयों की अंग्रेज़ी के ऊपर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भर होने की मानसिकता है व सरकारी व ग़ैरसरकारी मशीनरी का अंग्रेज़ी में चलना। शायद भारत ही एक ऐसा अनोखा देश है जहाँ विदेशी भाषा को इतना सम्मान मिलता है कि वह शासन, व्यापार व शिक्षा की बन जाती है व खुद की भाषाओं की उपेक्षा। दिवस जैसे पाखंडों की मोहताज हो गई है। यही हाल बाकी भारतीय भाषाओं का भी है।
यह एक विडंबना ही है कि जो हिंदी हमारी आज़ादी के आंदोलन की भाषा थी जन भाषा थी वही हिंदी आज हिंदी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में 13 सितंबर 1949 के दिन बहस में भाग लेते हुए यह रेखांकित किया था कि यद्यपि अंग्रेज़ी से हमारा बहुत हित साधन हुआ है और इसके द्वारा हमने बहुत कुछ सीखा है तथा उन्नति की है, ”किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता।” उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की सोच को आधारभूत मानकर कहा कि विदेशी भाषा के वर्चस्व से नागरिकों में दो श्रेणियाँ स्थापित हो जाती हैं, ”क्यों कि कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती।” उन्होंने मर्मस्पर्शी शब्दों में महात्मा गांधी के दृष्टिकोण को प्रतिपादित करते हुए कहा, ”भारत के हित में, भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने के हित में जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसे आत्मविश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, हमें हिंदी को अपनाना चाहिए।
आज भारत में सारी न्याय-प्रणाली अंग्रेज़ी के ऊपर केंद्रित है। उच्चतम न्यायालय व कई उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषाओं बोलना न्यायालय की अवमानना (कन्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट) है कितने शर्म की बात है? आज आम आदमी को न्यायालयों के किसी निर्णय का पता है नहीं चलता है जो कि उनके मौलिक अधिकारों के साथ सरासर खिलवाड़ है। भारतीय न्यायालयों के आज अंग्रेज़ी में काम करने के क्या कारण हैं? इसको भी बदलना आवश्यक है जो कि एक आम आदमी की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आज लोग हमारे सूचना प्रौद्योगिकी में अग्रणी होने का श्रेय अंग्रेज़ी को देते हैं जो कि एकदम ग़लत है। कंप्यूटर प्रोग्रामिंग सीखने के लिए अंग्रेज़ी भाषा की नहीं बल्कि रोमन लिपि की ज़रूरत है। बाकी का काम है बुद्धि का जो कि सिर्फ़ अंग्रेज़ी सीखने से नहीं होगा। अगर ऐसा ही होता तो हमारे भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़े हुए छात्रों को कंप्यूटर आता ही नहीं जबकि स्थिति इसके विपरीत है। आज किसी और देश में कंप्यूटर इंजीनियर हमसे कम हैं तो इसका मुख्य कारण है हमारी कंप्यूटर शिक्षा का सही समय पर प्रारंभ होना न कि अंग्रेज़ी। बाकी देशों में भी कंप्यूटर इंजीनियर हैं परंतु हमारे पास उनकी संख्या कई गुना अधिक है व हम सस्ते दामों पर काम करने को तैयार हैं इसलिए आज हमारा बोलबाला है। परंतु चीन हमसे इस मामले में बहुत पीछे नहीं है, वो भी अपने युवा वर्ग को ज़ोर-शोर से कंप्यूटर शिक्षा दे रहा है परंतु अपनी भाषा में और यह अनुमान है कि कुछ सालों में चीन हमसे इस क्षेत्र में भी आगे निकल जाएगा। मातृभाषा में पढ़ाने व पढ़ने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि विद्यार्थी कोई भी चीज़ अपनी मातृभाषा में सबसे अच्छी तरह से ग्रहण करता है। मज़े की बात तो यह है कि एन. आई. आई. टी. (NIIT) भारत में हर जगह अपनी शिक्षा केवल अंग्रेज़ी में ही प्रदान करते हैं परंतु चीन में वे मैंडेरिन (चीनी भाषा) में पढ़ाते हैं। इसके दो कारण हो सकते हैं- या तो उनको यह लगता है कि हमारी भाषाएँ इस प्रकार की शिक्षा के लायक नही हैं वे बहुत पिछड़ी हैं या फिर किसी को इस चीज़ की चिंता नहीं है क्यों कि भारत में वैसे भी अपनी भाषा में पढ़ना पिछड़ेपन का एक प्रतीक माना जाता है। इन कारणों के बारे में पाठकगण खुद ही सोचें तो अच्छा है। मेरा मानना यह है कि हमारी सोच पिछड़ी है न कि भाषा। अगर हमको हमारी भाषा में पढ़ाया जाता तो हम शायद ज़्यादा अच्छा सीख सकते थे। और सच यह है कि भारतीय भाषाएँ तकनीकी व भाषायी दृष्टि (उदाहरणार्थ उच्चारण शब्द संरचना) से अंग्रेज़ी से कहीं ज़्यादा बेहतर हैं। इसलिए अभी समय कि हम बाज़ आएँ व कंप्यूटर शिक्षा को जनमानस के हित को ध्यान में रखते हुए भारतीय भाषाओं में पढ़ाएँ।
हमारी भाषा और ज्ञान को अगर किसी ने नुक्सान पहुचाया है तो वह है अंग्रेज चूँकि लार्ड मैकाले अंग्रेज विद्द्वान इतना चालाक था की उसने पूरे भारतवर्ष का हर क्षेत्र का भ्रमण किया था जिसकी रिपोर्ट भी उसने ब्रिटिश संसद में २ फरवरी १८३५ को अपने भाषण में दी और उसने कहा की ” मैंने भारत के हर क्षेत्र का भ्रमण किया है | मुझे वहां एक भी भिकारी या चोर देखने को नहीं मिला , वहाँ अभावग्रस्त भी दान देने को तत्पर रहता है | मैंने वहाँ बेशुमार दौलत देखी है, उच्च नैतिक मूल्यों को कण कण में व्याप्त देखा है, मै नहीं समझता की हम ऐसे देश के नागरिकों पर शासन कर पाएँगें | उनका खगोलीय ज्ञान हमसे कहीं अधिक है सांस्कृतिक धरोहर बहुत ही समृद्ध है अध्यात्म में वह विश्व में सर्वोपरि है | हाँ यह तभी संभव है जब हम उनके मेरुदंड अर्थात उनकी संस्कृति एवं आध्यात्मिक धरोहर पर आघात करे और उसके लिए मै प्रस्ताव रखता हूँ की हम भारत की चिरपुरातन शिक्षण प्रणाली को उसकी संस्कृति को बदल डाले \ यदि भारतीय यह सोचने लगें की जो भी कुछ विदेशी है,वह इंग्लिश सभ्यता से ही आय है एवं उनके पास जो है वह कुछ नहीं है तो वे अपना आत्मगौरव खो बैठेंगे तथा धीरे धीरे उनकी संस्कृति, गौरव गरिमा का पतन होता चला जायगा और वे वही बन जायंगे हो हम चाहते हैं | पूरी तरह हमारे आधीन एक गुलाम वृहतर भारत “. और उसके अनुसार पूरे भारत में शिक्षा प्रणाली को बदल दिया गया, जिसका परिणाम आज ऍम देख रहें है ,
भारत के आजाद होने के बाद भी हम आजाद कहाँ है न तो यहाँ से अंग्रेज गए है और न ही अंग्रेजी गई है, आई सी एस की जगह आई ए एस तथा अर्थात काले अंग्रेज जिसका कारण है की भारत का प्रत्येक नागरिक चाहे वह मजदूर ही क्यों न हो वह भी अपने बच्चे को इंग्लिश मीडियम के स्कूल में पढ़ना चाहता है और तो और जैसा ऊपर कहा है की हमारी न्याय प्रणाली भी अंग्रेजी के जाल से मुक्त नहीं है ऐसे में हिंदी पर गौरव करने त्तथा हिंदी पखवाडा मानाने का क्या मतलब है.
Read Comments