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पिछले दिनों जब संसद का वर्षाकालीन अधिवेशन चल रहा था तो संसद में महंगाई के मुद्दे पर बहुत हंगामा हुआ पर उसका असर क्या हुआ सबके सामने है ? अगर महंगाई न होती तो शायद संसद में विपक्ष एक साथ खड़ा हुआ दिखाई भी नहीं देता और सरकार भी विवश नहीं दिखती परन्तु जिस गरीब की चिंता करते हुए हमारे माननीय संसद में अपने विचार रख रहें थे उस दृश्य में वह गरीब कहीं दिखाई नहीं दे रहें थे अगर कुछ दीख रहा था तो केवल वोट बैंक, चिंता से दूर अगर कोई था तो वह तमिल नाडू के माननीय जो यह कहते सुने गए की वह अपने प्रदेश में गरीब लोंगों को सस्ते दामों पर जरूरी वस्तुएं पी डी एस सिस्टम के द्वारा उपलब्ध करा रहें हैं| अत: प्रधान मंत्री जी को यह सुनिश्चित करना चाहिए की उनके सहयोगी पार्टी की सरकार अगर तमिल नाडू में सफलता पूर्वक जरूरी वस्तुएं पी डी एस सिस्टम के द्वारा उपलब्ध करा रहें हैं तो वही माडल पूरे देश में क्योंकर नहीं अपनाया जा सकता अगर इस प्रकार का प्रयास किया जाय तो पूरी संसद भी उनके साथ होगी अगर नहीं होगी तो सभी को पता चलेगा की खाने के दांत और दिखने के और चूँकि जब तक गरीब का हिस्सा उसके पास नहीं पहुंचेगा तब तक कोई समस्या हाल नहीं होगी \ जहाँ तक मुक्त बाजार की बात है वह अपनी जगह ठीक है परन्तु उसकी नींव देश के सबसे निचले स्तर के व्यक्ति की जान की कीमत पर नहीं रक्खी जा सकती | गरीब के उपयोग के वस्तुयों रोटी कपड़ा और माकन में केवल रोटी की ही कीमत पर नियंत्रण रखने से इस देश के गरीब का काफी भला हो सकता : जैसे गेहूं – चावल – आटा – खाद्य तेल – चीनी- गुड – नमक -मिर्च – मशाले ( कपडा और माकन को अगर छोड़ भी दिया जाय ) ( स्वाथ्य के विषय में तो कुछ कहना ही बेकार है अस्पताल -स्वास्थ्य केंद्र तो देश भर में प्रत्येक गाँव में है परन्तु उनमे डाक्टर आते ही नहीं ) अत: प्रधान मंत्री जी को अपने अर्थ शास्त्र के साथ -२ गरीब शास्त्र का भी ख्याल रखना होगा तथा इस पूरे प्रोग्राम को अपने हाथ में लेना होगा अन्यथा सहयोगियों के बस का नहीं है \क्योंकि हमारे कृषि मंत्री न तो ज्योतिष हैं और न ही उन्हें इस बात की चिंता है की गोदामों के बाहर गेंहू सड़ रहा है भले गरीब भूको मर जाय \ दूसरी बात यह की मनरेगा के तहत जो कार्य हो रहें हैं उसमे भी बन्दर बाँट हो रही – आखिर इसका इलाज किस के पास है ?
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