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अभी हाल ही में जब माननीय सुप्रीम कोर्ट में मोहन लाल बनाम सी0 बी०आइ ० केस में सी.बी.आई ने पंजाब हाई कोर्ट के फैसले के विरुद्ध अपील दाखिल की तो देश में फैले भ्रष्ठाचार से व्यथित होकर माननीय न्यायाधिशों की पीठ ने कहा ” यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है की देश में भ्रष्टाचार पर कोई नियंत्रण नहीं है | खासतौर पर आयकर, बिक्रीकर , और आबकारी विभागों में काफी भ्रष्ट्राचार व्याप्त है| बिना पैसे के कुछ नहीं होता|” पीठ ने आगे भी टिप्पणी की ” सरकार भ्रष्ट्राचार को वैध क्यों नहीं कर देती ताकि हर मामले के लिए एक रकम तय कर दी जाय , इस तरह से हर आदमी को पता होगा कि उसे अपना काम करवाने के लिए कितनी रिश्वत देनी होगी | अधिकारी को कोई मोल भाव नहीं करना होगा और लोगों को भी पता होगा कि उन्हें क्या देना है |” अधिकारियों कि दशा पर व्यथित होकर आगे कहा कि ” बेचारे सरकारी अधिकारी ….बढ़ती महंगाई के कारण भी हम उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते ….”
माननीय न्यायाधीशों की व्यथा से यह तो सर्विदित है कि भ्रष्ट्राचार रूपी दानव ने देश को चारों दिशाओं से जकड़ा हुआ है | यहाँ यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पूरे भारत में जिलास्तर की अदालतों में किस प्रकार भ्रष्ट्राचार होता है क्या बिना पैसे से किसी भी स्तर पर इन अदालतों में कोई कार्य हो सकता है, शायद नहीं ? रोज ही अखबारों में खबर आती है की रिश्वत लेते पकडे गए व्यक्तियों/अधिकारियों के यहाँ से करोडो रुपये मिले,फिर भी कही कोई भय, या डर नहीं लगता इन रिश्वत लेने वालों को ?
केवल कार्यपालिका को दोषी सिद्ध करने से कुछ नहीं हो सकता – भ्रष्ट्राचार का दानव हमारे लोकतंत्र के सभी स्थम्भो में विराजमान है अब चाहे न्यायपालिका हो, कार्यपालिका हो, विधायिका हो या फिर तथाकथित चौथा स्तंभ मिडिया हो —- सरकार क्या करे यह तो सरकार जाने , परन्तु इस सामाजिक बुराई को दूर करने के लिए अगर समाज के हर वर्ग का व्यक्ति यह शपथ ले की वह न तो रिश्वत लेगा और न ही रिश्वत देगा तो शायद इस में कुछ कमी आ सकती है अन्यथा – महाकवि तुलसीदास जी की चौपाई ” —–………………पशु, ढोल और………. ये सब ताडन के अधिकारी ” से भी बात नहीं बनती अगर इससे कुछ हो सकता तो कब का असर हो जाता |
भारत में अगर सबसे बड़ी पंचायत ही आदेश के स्थान पर अपनी मजबूरी जाहिर करे तो इसके बाद क्या बचता है ——
मेरा तो यह सुझाव है की खाद्ध पदार्थों में मिलावट करने वालों एवं रिश्वत लेने वालों के के विरुद्ध कड़े कानून बने और आरोप सही पाए जाने पर कम-से-कम आजीवन कारावास की सजा निश्चित होनी चाहिए अन्यथा यही सही है की १०० में ९९ बेईमान फिर भी मेरा भारत महान
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