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आज के लोकप्रिय समाचार पत्र जागरण में एक खबर है जिसमे जानी मानी हस्ती “अरुंधति राय” ने श्रीनगर में एक सेमिनार में अलगाव वादियों की तरह भारत में जम्मू- कश्मीर विलय पर सवालिया निशान ही नहीं लगाया उल्टा यह भी कहा की जम्मू-कश्मीर का भारत में कभी विलय ही नहीं हुआ ” 1947 में जब भारतीय उपमहाद्वीप में अंग्रेजी उपनिवेशवाद समाप्त हुआ तो भारतीय साम्राज्यवाद ने उसका स्थान ले लिया ” अरुंधति राय ” का यह कथन ऐसा ही है जैसे कोई व्यक्ति दिग्भ्रिमित हो जाता है यह उस विदुषी का कथन है जिसका जन्म ही स्वतंत्रता के 14 वर्ष बाद में हुआ हो जिसको केवल किताबी ज्ञान के अतिरिक्त कोई समझ ही नहीं है– उनको यह समझ भी होनी चाहिए की 1947 में जम्मू – कश्मीर ही नहीं सैकड़ो स्वतंत्र स्टेट उस समय भारत में थी जिनका विलय आजादी के बाद में भारत गण-राज्य में हुआ था \ और १९४७ के भारत पकिस्तान बंटवारे का दर्द क्या है यह उन्हें अपने पूर्वजो से पूंछना चाहिए या इतिहास को पढ़ना चाहिए चूँकि यह सब घटनाये अरुंधति राय के जन्म ( 24 /11/1961 ) के पहले की है इसलिए उन्हें सब का ज्ञान हो यह जरुरी नहीं है – उनके ज्ञान के लिए यह जरुरी है की उन्हें बताया जाय की 1947 में जब पाकिस्तानी फ़ौज ने कबाइलियों के भेष में जम्मू कश्मीर पर आक्रमण किया तो उस समय के शासक ( राजा हरि सिंह ) तथा उनके प्रधान मंत्री शेख अब्दुल्ला ने भारत सरकार के समक्ष याचना की थी जम्मू – कश्मीर की रक्षा करने की, तब भारत सरकार के तत्कालीन गृह -मंत्री श्री पटेल एवं प्रधान-मंत्री नेहरु ने जम्मू कश्मीर को भारत में विलय की शर्तों के अंतर्गत (विशेष रियायतों के साथ ) सवैधानिक रूप से भारत में विलय हो जाने की स्तिथि में ही जम्मू-कश्मीर में भारतीय फौजों को भेजा था जिसने पाकिस्तानियों को मार कर भगाया था इस आपरेशन में हमारे हजारो फौजी मारे गए थे \ यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है की तत्कालीन प्रधान-मंत्री नेहरु अगर भारतीय फौजों को आगे बढ़ने से न रोकते और उन्हें पूरे जम्मू कश्मीर से आक्रमणकारियों भगाने के आदेश देते तो आज यह समस्या ही नहीं होती और अरुंधति राय जैसे किसी व्यक्ति को बोलने की हिम्मत ही नहीं होती | फिर भी अलगाववादियों एवं पाकिस्तानियों के द्वारा मार कर भगाए गये लाखो कश्मीरियों के विषय में विदुषी लेखिका को बोलने और लिखने में परहेज क्यों | क्या अरुंधति को पीड़ित कश्मीरी पंडितों का दर्द नहीं दीखता है | इसलिए अनर्गल प्रलाप करने वाले व्यक्ति के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए जैसा किसी देश-द्रोही के साथ किया जाता है / अत: अरुंधति राय को खुला घुमने के स्थान पर जेल में होना चाहिए | क्योंकि केरालिस्ट क्रिस्चियन माँ एवं बंगाली पिता की ( सुसंस्कृत ) औलाद से देश द्रोह की आशा नहीं की जा सकती |
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