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तीन शब्दों का एक अर्थ

पाठक नामा -
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भेंट, बलि, कुर्बानी प्रचलित तीनो शब्दों का मेरे ज्ञान के हिसाब से एक ही अर्थ है परन्तु इसकी व्याख्या कुछ अलग से हो सकती है !

भेंट :
प्राचीन समय में किसी रिश्तेदारी में , राजकीय व्यक्ति अथवा राजा से मिलने पर उसे भेंट देने की प्रथा थी वह भेंट मुद्रा, कीमती उपहार, या किसी भी प्रकार सामान के रूप में हो सकती थी यहाँ तक की जीवित जानवर भी भेंट में दिए जाते थे | यह सब एक शिष्टाचार के अन्तर्गत होता था | जिससे आप मिलने जा रहे हो वह प्रसन्न हो जाय |

बलि :
देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए आदिम युग के साथ -साथ आज भी बहुत से स्थानों पर जीवित जानवरों की बलि प्रचलित है, नेपाल के तो मंदिरों तक में पशु पक्षियों की बलि दी जाती है | हमारे यहाँ कोलकता में तो माँ काली के मंदिर में बकरों की बलि दी जाती है \ आदीवासी स्थानों में आज भी बहुतायत से पशु पक्षियों की बलि का प्रचालन है | जन श्रुति की अनुसार उत्तराखंड के पहाड़ी आँचल में तो भैसे की बलि दी जाती है | यह सब कुछ देवी-देवताओं को प्रसन्न कर के मन चाहा सुख प्राप्त करने के लिए किया जाता है|

कुर्बानी :
कुर्बानी है तो उर्दू का शब्द परन्तु हिन्दी भाषा मे भी इसका प्रचलन बहुत अधिक होता है \ वैसे कुर्बानी का भी शाब्दिक अर्थ तो भेंट और बलि जैसा है पर वास्तविकता से बहुत परे है —- कुर्बानी कुछ बचाने के लिए दी जाती है : जैसा कि मै जानता हूँ कि मुस्लिम भाई ईद पर पशुओं की कुर्बानी करते है | परन्तु
कुर्बानी का वास्तविक अर्थ कुछ इस प्रकार से है :—-

WHAT IS THE ORIGIN OF ‘QURBANI’?
This act of ‘Udhiya’ is to commemorate the unparalleled sacrifice offered by the Prophet Ibrahim . When he, in pursuance to a command of Allah Ta’ala conveyed to him in a dream, prepared himself to slaughter his beloved son Ismail and actually did so, but Allah Almighty after testing him of his submission, sent down a ram and saved his son from the logical fate of slaughter. It is from that time onwards that the sacrifice of an animal became an obligatory duty to be performed by every well to do Muslim.

जैसा की उपरोक्त्त से स्पष्ट है पैगम्बर इब्राहीम के द्वारा जब अपने पुत्र की कुर्बानी दी जा रही थी तो स्वयं अल्लाह ताला ने उन्हें ऐसा करने से रोका था परन्तु तभी से ऐसी प्रथा हो गई है की सभी मुस्लिम (समृद्ध मुस्लिम ) अल्लाह के प्रति कृतज्ञता जाहिर करने के लिए किसी जानवर की कुर्बानी देते आ रहें हैं |

इसप्रकार से कुर्बानी का अर्थ हुआ की किसी एक प्रियजन को बचाने के बदले में किसी और की बलि देना ? नोट :::: (कृपया इस को विवाद का विषय न बनाये यह केवल राजनीती के लिए प्रयोग किया गया है किसी मुस्लिम से इसका कोई लेना देना नहीं है )

अब अगर हम इस कुर्बानी शब्द को भारतीय राजनितिक के सन्दर्भ में देखें तो पाएंगे की जब जब राजनितिक पार्टियों का अस्तित्व खतरे में पड़ा है तब ही किसी न किसी महसूर हस्ती को गद्दी छोड़नी पड़ी है ( अर्थात उसकी कुर्बानी दी गई है )

अब अगर बात करे कांग्रेस पार्टी की तो कांग्रेस ने भ्रष्टाचार में फसने पर अपने मुख्य मंत्रियों को ताश के पत्ते के तरह फेंट दिया है | अगर पुरानी बात करे तो कांग्रेस के एक अधयक्ष थे के.कामराज उन्होंने स्वर्गीय इंदिरा गाँधी को अपनी मनमानी केबिनेट गठित करने के लिए सभी दिग्गज कांग्रेसियों के त्याग पत्र ले लिए थे | ताजा सन्दर्भ में मुंबई पर 26 /11 का आतंकी हमला होने पर श्री विलाशराव देशमुख को त्यागपत्र देना पड़ा था उसके बाद आदर्श हाऊसिंग सोसाइटी मामला होने पर श्री अशोक चव्हान को कुर्बान होना पड़ा इसी प्रकार से राष्ट-मंडल खेलों में घोटाला होने पर श्री सुरेश कलमाड़ी को कुर्बान होना पड़ा. जिससे की कांग्रेस पार्टी की छवि ठीक बनी रहें, क्या यह जानता को बेवकूफ बनाने का हथकंडा नहीं है ,

अब अगर मैं बात करूं तहलका कांड की तो 15 /3 /2001 को भारतीय जानता पार्टी के अध्यक्ष श्री बंगारू लक्ष्मण जी को टी.वी. चैनल पर रिश्वत लेते हुए दिखने पर अध्यक्ष पद से कुर्बान होना पड़ा था इसी कड़ी में 6 /12 /1992 उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद प्रकरण में कुर्बान होना पड़ा था | भारतीय जानता पार्टी की फायर ब्रांड नेता साध्वी उमा भारती को पार्टी ने एक बहुत ही छोटे से मुद्दे पर मध्य प्रदेश की मुख्य मंत्री के पद से कुर्बान कर दिया था \ अगर इन सब के विषय में गहराई से सोचा जाय तो एक तथ्य मुख्य रूप से उभर कर आता है की यह सब लोग दलित या पिछड़ा वर्ग से संबधित थे और पार्टी ने इन सब को अपनी सत्ता को बचाने के लिए कुर्बान कर दिया परन्तु वर्तमान में भ्रष्टाचार में फंसे कर्णाटक के मुख्य मंत्री बी. एस. येदुरप्पा भारतीय जानता पार्टी को अंगूठा दिखा रहें है | तथा भारतीय जानता पार्टी पर भरी पड़ रहें हैं ?

इससे तो यही परिलक्षित होता है की देश की दो दिग्गज पार्टियाँ जो देश को एक दिशा दे सकती है अपने नेताओं के कारण कंठ तक भर्ष्टाचार में लिप्त हैं तो जानता लोकतंत्र में किस पर विश्वास या भरोशा करे आज के इस भ्रष्टाचार के युग में बेबस जानता क्या करे ?

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