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हमारे माननीय सांसद ,

पाठक नामा -
पाठक नामा -
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विश्व में भारत ही एक सबसे बड़ा लोक-तांत्रिक देश है जिसमे जानता के द्वारा चुने हुए 543 प्रतिनिधि ही केंद्रीय सरकार के शासन को चलते है– इसके साथ सबसे बड़ी हास्यापद बात यह है की संसद का सदस्य बनने के लिए किसी भी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं है केवल 35 वर्ष का व्यस्क भारतीय नागरिक होना जरूरी है किसी शिक्षा की भी जरूरत नहीं है यहाँ तक की अगर अनपढ़ भी हो तो चलेगा ? इन्ही सांसदों में से बहुमत के घटक दल से प्रधान मंत्री का चुनाव होता है और बाकी घटक विपक्ष या समर्थक होता है | सत्ता पक्ष और विपक्ष मिल कर देश को दिशा देने अर्थात विकास के कार्यों पर चर्चा करने के साथ – साथ कानून का राज्य स्थापित करने की नागरिको की भलाई के कार्य करते हैं | संसद भारत की एक सर्वोच्च कानून निमार्ण करने की संस्था है | पर आजकल देखने में यह आ रहा है की माननीय सदस्यों ने संसद को संसद कम एक अखाडा या प्रदर्शन का मंच बना रखा है —- जहाँ जानता की गाढ़ी कमाई का करोडो रुपया प्रतिदिन खर्च हो रहा है वहीँ सरकार और विपक्ष की जोर अजमाईस से पिछले तीन सप्ताह से कोई संसदीय कार्य संपन्न नहीं हो रहा है — क्या यह हमारे माननीय सांसदों का कर्तव्य नहीं है की संसद को प्रदर्शन का मंच न बनाये केवल विधाई कार्यों के लिए ही सुरिक्षित रखे —- दुनिया में ऐसी कौन सी समस्या है जो विचार विमर्श से सुलझाई नहीं जा सकती — यहाँ मैं कम भ्रष्ट और अधिक भ्रष्ट की बात नहीं कर रहा हूँ | इसलिए संसद को ठप्प करके माननीय सांसद भ्रष्टाचार के दानव को उर्जा देने का कार्य ही कर रहें है —-होना तो यह चाहिए की भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कोई और अधिक स्पष्ट प्रभावी क़ानून को पास करके देश को एक उदहारण दे. रोज रोज का नाटक बंद होना चाहिए —– और अगर नाटक ही करना है तो उसके लिए और बहुत से मंच है संसद भवन को बक्श दें —ऐसा नहीं है की जानता कुछ जानती नहीं है जानता सब कुछ जानती है केवल मौके का इन्तजार करती है यह समझ सभी राजनितिक पार्टियों को होनी चाहिए ?

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