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भारत माँ के लुटेरे — लोकतंत्र और आरक्षण

पाठक नामा -
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जब से हमने होश संभाला है हम यह सुनते आये हैं कि भारत एक सोने की चिड़िया था — लेकिन लुटेरों ने लूट-लूट कर अब तक उसकी खल तक उतार ली है पर पापी लोग अब भी बाज नहीं आ रहे हैं लूट अब भी जारी है !!!!!!!!!!!!
सतयुग या त्रेता युग का कुछ मालुम नहीं पर कलयुग का इतिहास देखने पर ऐसा विदित हुआ की मुस्लिम आक्रान्ताओं ने समय – समय पर पूरा जी भर कर लूटा चाहे वह चंगेज खान हो या तैमूर लंग हो, सिकंदर हो, महमूद गजनवी हो जब इससे भी जी नहीं भरा तो मुगलों ने यहाँ राज्य ही कायम कर लिया और फिर भारत की जो दशा की उसका दंश तो आज भी झेलना पड़ रहा है ;
फिर फिरंगी क्यों पीछे रहते सोने की चिड़िया के आकर्षण ने उन्हें भी हजारों मील की समुंद्री यात्रा करने पर मजबूर कर दिया वह भी यहाँ व्यापर करने के बहाने आ धमके और फिर जब तक व्यापर के बहाने लूट सकते थे लूटा फिर यहाँ के शासक बन बैठे और दो सौ वर्षों तक जम कर शासन किया वह तो भला हो कुछ भले अंग्रेजों का कि उन्होंने कुछ हिन्दुस्तानियों को इंग्लेंड में शिक्षा दिला दी जिससे यहाँ के लोगो में भी स्वतंत्रता के मायने समझ में आ गए — १८५७ की आधी – अधूरी क्रांति के बाद अंग्रेज भी यह बखूबी समझ चुके थे की अब उन्हें भारत से बोरिया बिस्तर बंधना ही पड़ेगा चूँकि अब उन्हें लगा की लूटने के लिए अब यहाँ कुछ बचा नहीं है — अन्तोगत्वा १५ अगस्त १९४७ को भारत को दो टुकडो ( भारत और पाकिस्तान) में बाँट कर अंग्रेज यहाँ से इस आशा में रुक्सत कर गए की अब जल्दी ही वापस आना पड़ेगा पर ऐसा हुआ नहीं?
अब तो देशी शासको अर्थात कांग्रेस की पौ बारह हो गई पूरे देश में कांग्रेस का सत्ता का डंका बजने को था – पर इससे पहले अंग्रेजों की करतूत से निपटाना था जो देशी रिसायतों के रूप में छोटे -छोटे राज्यों को स्वतंत्र छोड़ गए थे | लौह पुरुष सरदार पटेल ने गृह मंत्री के रूप में इन सब को भारत गणराज्य में किस प्रकार से संगठित किया था यह तो वाही जाने — पर वर्ष १९९० में N.D.A. के शासन काल में तीन बड़े राज्यों का विघटन अपनी सहूलियत के लिए अवश्य किया – उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड, मध्य प्रदेश से छतीसगढ़ और बिहार से झारखण्ड का निर्माण किया गया इन छ: राज्यों में से पाँच राज्यों में आज भी N.D.A. का शासन है
—— वर्तमान रूप में २७ राज्य (१- आंध्र प्रदेश, २-अरुणाचल प्रदेश, ३-असम, ४-बिहार ,५-छत्तीसगढ़, ६-गोवा, ७-गुजरात,८-हरयाणा, ९-हिमाचल प्रदेश, १०-जम्मू एंड कश्मीर, ११- झारखण्ड,१२-कर्णाटक, १३-केरला, १४-मध्य प्रदेश, १५-महाराष्ट्र , १६-मणिपुर, १७-मेघालय, १८-मिजोरम, १९-नागालैंड, २०-ओरिसा, २१-पंजाब , २२-राजस्थान, २३-सिक्किम , २४-तमिल नाडू , २५-त्रिपुरा , २६- उत्तर प्रदेश, २७-उत्तराखंड एवं २८-दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी ) इसके बाद ६ केंद्र शासित प्रदेश १-अंडमान निकोबार २-चंडी गढ़, ३-दादरा नगर हवेली, ४-दमन एंड दिउ, ५- लक्ष्य द्वीप, ६ पुदुचेरी ,—–
फिर आई बारी संविधान को बनाने के तो नेहरु ने बड़ी चालाकी से भीमराम आंबेडकर का नाम आगे कर दिया फिर तो आम्बेडकर के नेतृत्व में संविधान सभा की प्रारूप कमिटी का गठन हो गया और उन्होंने कही की ईंट कहीं का रोड़ा वाली कहावत चरितार्थ कर दी और संविधान का प्रारूप तैयार कर दिया जो की ब्रिटेन – अमेरिका – जर्मनी -फ़्रांस आदी के संविधान की नक़ल करके तैयार किया गया –जब की जरूरत थी आजाद भारत को एक नए मौलिक संविधान और कानून की पर कानूनों को तो आज तक नहीं बदला गया – केवल संविधान का प्रारंभ “जानता द्वारा –जनताके लिए- -जानता का शासन ” नाम जरूर दे दिया — अब जब जानता का शासन हो तो सोने की चिढिया अछूती कैसे रह पायेगी लूट तो असंभावि होनी ही थी जहाँ जानता के द्वारा चुनी हुई सरकारे शासन करती है एक तरफ जहाँ स्वच्छ छवि और ईमानदार नेता, अफसर( वैज्ञानिक ) और कर्मचारी इस देश को आगे ले जाने के लिए तन-मन से अपना कर्तव्य निभा रहें है वहीँ कुछ भ्रष्ट नेता, अफसर व् कर्मचारी जम सब जम कर लूट रहें है जो आज नहीं लूट सकते वह कल की आश में बैठे है और इन्ही कुछ गिने चुने भ्रष्ट तत्वों के कारण देश की छवि खराब हो रही है —–अंग्रेज तो भारत को एक इकाई के रूप में लूटते थे पर आजके कुछ भ्रष्ट नेता, अफसर व् कर्मचारी राजनीतिकों से साजिश करके भारत के २८ राज्य और ६ केंद्र शासित इकाइयों में जम कर लूटने की प्रतियोगिता चाल रही है इसके अतिरिक्त एक केंद्र की इकाई और है जिसके अधिकार भी असीमित है वहाँ भी कुछ भ्रष्ट तत्वों के द्वारा लूट का कोई मुकाबला नहीं लूट भी असीमित होती है ?
आंबेडकर महाशय ने बड़ी चालाकी से अपने अछूत /दलित भाइयों के लिए सरकारी नौकरियां में दस वर्षों के लिए २२ प्रतिशत से अधिक आरक्षण जरूर निशित करा लिया जो अब ६० वर्ष बीत जाने के बाद भी चालू है और शायद अगले ६० वर्षों तक भी चालू रह सकता है —–जिसकी परिणिति यह हुई की कुछ और पिछड़ी जातियों में जैसे जाट जो मूलतः खेती किसानी पर निर्भर थे , भी सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग कर दी एवं गुर्जर फिर पीछे क्यों रहते गुर्जर जोकि वनों एवं पशुओं पर ही निर्भर थे ( कुछ लोगों का ऐसा मानना है की राहजनी का कार्य भी इनके नाम से जुड़ा है ) आरक्षण की मांग में सबसे आगे हैं —– सही भी है जब कोई व्यक्ति अगर राज-काज में शामिल नहीं हो सकता तो उसे लूटने के लिए कोई प्लेटफार्म तो चाहिए इस लिए नौकरी ही क्या बुरी है अत: आरक्षण भी बहुत जरूरी है पर गुर्जर भाइयों को खासकर करोड़ी सिंह बैंसला को यह अच्छी तरह से जान लेना चाहिए की आरक्षण न तो रेल की पटरी पर धरने देने या उसे उखाड़ने से मिलेगा और न ही सड़क जाम करके ट्राफिक रोकने से मिलेगा —- पर जानता जरूर परेशान होगी — और जिस आन्दोलन से जानता नहीं जुड़ती वह आन्दोलन कभी सफल ही नहीं हो सकता ऐसा विद्वानों का मानना है — आन्दोलन के स्थान विधान भवन या लोकसभा, और सरकारी कार्यालय होने चाहिए न की रेल या रोड या फिर कानूनी प्रक्रिया के द्वारा मांग होनी चाहिए तीसरी बात यह की इस पांच प्रतिशत आरक्षण के बल पर वह अपनी जाती के कितने लोगों को सरकारी नौकरी दिला सकते है? स्वाभिमानी व्यक्ति न तो खैरात मांगता है और न ही उपद्रव करता है हाँ अपना हक़ अवश्य चाहता/*//////एस.पी.सिंह

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