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दो चेहरे एक साथ

पाठक नामा -
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क्या अब यह साफ़ नहीं हो गया है की बाबा राम देव को आर एस एस का वरदहस्त प्राप्त है क्योंकि जब से बाबा राम देव ने अपनी अलग से पार्टी बनाने की घोषणा की है तभी से बी जे पी की बेचैनी बाद गई थी इसी लिए बी जे पी अध्यक्ष और आर एस एस प्रमुख उनके पास दौड़े चले गए और आखिर में बाबा राम देव को मना ही लिया की अभी नयी पार्टी बनाने की घोषणा नहीं करेंगे —- क्योंकि आज उनके हाथ आन्ना हजारे के रूप में जन आन्दोलन खड़ा करने वाला एक सशक्त हथियार मिल गया है यह हम नहीं कह रहे है यह बात आज अखबारों ने छापी है
रामदेव ने दिया हजारे को समर्थन
हरिद्वार: योग गुरु स्वामी रामदेव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन पर बैठे अन्ना हजारे को समर्थन दिया है। कांग्रेस के खिलाफ लगातार हमला बोल रहे स्वामी रामदेव ने भाजपा को भी क्लीन चिट देने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि देश में कोई भी राजनीतिक दल पाक-साफ नहीं है। उन्होंने कहा कि वह राजनीति में नहीं आएंगे, लेकिन विकास की खातिर राजनीतिक हस्तक्षेप करने से नहीं चूकेंगे। गुरुवार की शाम पतंजलि योगपीठ में मीडिया से बातचीत में स्वामी रामदेव ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी तरह की मुहिम का पूरी निष्ठा के साथ समर्थन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कानून बनाने व अमल में लाने की जरूरत है। भ्रष्टाचारियों को सजा-ए-मौत होनी चाहिए। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कानूनों में खामियां हंै और प्रभावशाली लोग आसानी से बच निकलते हैं। भाजपा से नजदीकी के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कोई भी दल पहले स्वयं का शुद्धिकरण कर पाक-साफ हो जाए, तो फिर किसी से उन्हें कोई परहेज नहीं है। कहा कि मौजूदा लोकपाल बिल में कई छेद हैं, जिसके लिए नए प्रावधान करना जरूरी है। संघ प्रमुख मोहन भागवत और भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के पतंजलि आगमन के बारे में उन्होंने साफ किया कि भागवत का कार्यक्रम पूर्व निर्धारित था, जबकि गडकरी के आगमन का कार्यक्रम तय नहीं था। उन्होंने कहा कि इन दोनों लोगों ने उनकी राजनीति में आने के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई है
आखिर रंग लाई दिग्गजों की मुहिम
देहरादून: आखिरकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के प्रयास रंग ले ही आए। पिछले दो दिनों के दौरान पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी और फिर गुरुवार को संघ सर संघ चालक मोहन भागवत की स्वामी रामदेव से लंबी मीटिंग के बाद रामदेव मान ही गए कि वह राजनीति में प्रवेश नहीं करेंगे। भाजपा के लिए स्वामी रामदेव का यह फैसला खासा सुकूनभरा माना जा रहा है। मंगलवार से, जब देश की निगाहें जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन पर लगी थीं, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने स्वामी रामदेव को मनाने की मुहिम को अंजाम देना शुरू किया। दरअसल, स्वामी रामदेव जिस तरह के तेवर पिछले कुछ समय से अपनाए हुए हैं, उससे भाजपा ही नहीं कांग्रेस समेत तमाम सियासी दल भी पसोपेश में हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लगातार मुखर रहे रामदेव अपने अनुयायियों की लंबी फौज और योग के जरिए विश्र्व स्तर पर पहचाने जाते हैं। इस नाते वह जो कुछ भी कहते-करते हैं उसके निहितार्थ खासे महत्वपूर्ण बन जाते हैं। स्वामी रामदेव द्वारा राजनीति में प्रवेश और अलग पार्टी बनाए जाने के ऐलान के बाद से ही राष्ट्रीय स्तर पर सियासी हलकों में खासी बेचैनी नजर आई है। हालांकि बाबा का भाजपा के प्रति रुख अपेक्षाकृत नरम रहता आया है लेकिन इसी कारण उनके राजनीति में उतरने के ऐलान से भाजपा ही सबसे ज्यादा असहज महसूस हुई। ऐसा इसलिए, क्योंकि चुनावी राजनीति में इन हालात में भाजपा को कही न कहीं बाबा से भी मुकाबला करना पड़ता, जो पार्टी कतई नहीं चाहती। इस संभावित असहज स्थिति को भांपकर भाजपा और संघ एक साथ सक्रिय हुए
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अब क्या इन्ही जज्बातों से काले धन के खिलाफ जंग लड़ी जायगी –शायद नहीं क्योंकि ऐसे कोई भी राजनितिक पार्टी नहीं है जिसके नेताओं के पास काला धन न हो सभी हमाम में नंगे की तरह से हैं अर्थात चोर चोर मौसेरे भाई ?

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