Menu
blogid : 2445 postid : 386

कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सब की खैर ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर !!

पाठक नामा -
पाठक नामा -
  • 206 Posts
  • 722 Comments

आदरणीय टीम जागरण जंक्सन,
महोदय जैसा कि मैंने स्वयं को ३० नवम्बर तक के लिए आपके फोरम से प्रतिबंधित कर लिया है उसी कड़ी में एक पोस्ट आप को भेज रहा हूँ !
चूँकि कोई भी व्यस्क व्यक्ति अगर वह किसी विचार धारा से प्रभावित ( राज नीतिक ) नहीं है तो वह किसी के पक्ष या विपक्ष से कैसे सम्बंधित हो सकता है क्या इस देश में कोई व्यक्ति तटस्थ नहीं हो सकता या फिर उसे अपने विचार प्रकट करने के लिए किसी न किसी राजनितिक पार्टी की सदस्यता लेना आवश्यक है ? मैं इसको सही नहीं मानता | यह बात और है की अगर मैं किसी आन्दोलन का समर्थन नहीं करता तो इसका मतलब यह तो नहीं है की मैं उस आन्दोलन का विरोधी हूँ या मैं आलोचनात्मक कोई विचार प्रकट कर रहा हूँ तो मैं विरोधी हूँ ? यह विचार ही मुझे यह सोचने पर मजबूर कर रहे हैं की जिन लोगों ने भी मेरी आलोचना या भर्त्सना की या गाली गलोच की उनमे से किसी ने भी यह नहीं कहा की मेरे लेखों यह टिप्पणियों के तथ्यों में गलती थी लोग आगबबुला इस लिए हुए के लेखों में समर्थन नहीं था – अब तो सब कुछ सबके सामने है आईने के समान वे सब लोग अब अपना चेहरा स्वयं ही देख सकते है.
मैंने काफी चिंतन करने के पश्चात यह महशुस किया कि जागरण फोरम पर अधिकतर पाठक बंधू या टिप्पणी करने वाले पर्बुद्ध सज्जन लोग केवल एक पार्टी विशेष के फेवर में लेखों या टिप्पणियों को पसंद करते है विरोध में या तटस्थ लेखों या टिप्पणियों पर आगबबुला हो कर अनर्गल प्रलाप करते हुए गाली गलोज पर उतर आते है यह तो कोई उचित बात नहीं है ? चूँकि जैसा की महा कवि कबीर दास ने कहा है ” निंदक नियरे रखिये आँगन कुटी छावय | बिन पानी बिन तेल के निर्मल करे सुहाय || तो मेरे लेख और टिप्पणियां भी कबीर से प्रभावित हैं ?
चूँकि मेरे लेखों और टिप्पणियों में मेरी अपनी सोच और विचार जो मेरे अपने स्वयं के है जो कि मेरी अपनी शिक्षा, संस्कार, एवं सरकारी नौकरी प्रशासनिक अनुभव और सार्वजनिक जीवन के अनुभव पर आधार्रित होते है वह न तो किसी के विरोध में होते है और न ही किसी के फेवर में वह केवल तटस्थ श्रेणी में होते है लेकिन आपके फोरम के लोगों को पसंद नहीं आते तो ऐसे लेखों को लिखने का औचित्य क्या है ?
चूँ वर्तमान में सर्वश्री बाबु राव उर्फ़ अन्ना हजारे एवं राम सेवक यादव उर्फ़ योग गुरु बाबा राम देव के विषय में मैंने जो कुछ भी लिखा था या लिख रहा हूँ वह शतप्रतिशत अभी तक सही साबित हुआ है – तो मै इस असमंजस में हूँ कि मैं अब क्या करूँ इस लिए आज दिनांक १६ जुलाई २०११ को मैं यह पोस्ट लिख रहा हूँ
श्री बाबु राव हजारे उर्फ़ अण्णा हजारे के आन्दोलन के विषय में मेरे अपने विचार यह थे, चूँकि हम वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक/जनतांत्रिक व्यस्था में रह कर जीवन यापन कर रहे है ? यह शासन व्यस्था संसदीय चुनाव प्रणाली पर आधारित है जिसमे २८ प्रदेशो सहित कुछ केंद्रीय शासन के आधीन राज्य और एक केंद्रीय सरकार के द्वारा सम्पादित होते है? कुछ कानून संसद बनती है और कुछ राज्य के विषय के क़ानून राज्य सरकारों के द्वारा बनाये जाते है जो एक निश्चित प्रक्रिया के द्वारा ही संभव हो सकता है इसी कारण अण्णा हजारे के आन्दोलन के विषय में मेरे जो भी लेख/ टिपण्णी थे वह इन्ही विचारों पर आधारित थे और जिसमे मेरा अब भी यह मानना है कि कोई व्यक्ति या समूह आन्दोलन के द्वारा सार्वजनिक महत्त्व कि बातों को सरकार के सामने रख तो सकता है लेकिन कानून नहीं बना सकता कानून बनाने का काम सरकार का है और उसे बहस के द्वारा पास करने का हक़ केवल संसद को ही है संसद के अतिरिक्त किसी को नहीं ? तो यहाँ देखने वाली बात केवल यह है की क्या हमारे जन प्रतिनिधि ( एम् एल ए या सांसद ) अपना कार्य सुचारू रूप में कर रहे है ? हाँ यह सच है हमारे जन प्रतिनिधि अपना कार्य नहीं कर रहे है तभी तो समाज के प्रबुद्ध लोगों को आन्दोलन की राह पर चलने को मजबूर होना पड़ रहा है | अगर जन प्रतिनिधि अक्षम है तो उन्हें त्याग पात्र देकर जनता के साथ आन्दोलन की राह में चलाना ही श्रेयकर है न की चोरों की तरह पीछे से यह छद्म रूप से आन्दोलन का समर्थन करे ? मैं श्री अण्णा हजारे के आन्दोलन के विरुद्ध या उनके व्यक्तित्व के विरुद्ध कभी नहीं रहा और न ही ऐसा सोच सकता हूँ ? श्री अण्णा हजारे स्वयं एक कोमल और निर्मल हृदय के व्यक्ति है जो अपने लिए कुछ नहीं करते केवल समाज की सेवा की ही बात करते है अब चाहे वह रालेगन सिद्धि की बात हो या महाराष्ट्र के भ्रष्टाचार की बात हो लेकिन कुछ स्वार्थी और व्यस्था से असंतुष्ट (ब्यूरोक्रेट्स) लोगों के समूह और कुछ चुनाव में बुरी तरह से जनता के द्वारा ठुकराई राजनैतिक पार्टियों ने श्री अण्णा हजारे को केवल मोहरा बना के जंतर मंतर एक आन्दोलन के रूप खड़ा कर दिया यहाँ तक तो ठीक था लेकिन यह जिद करना की हम भी कानून बनाने की प्रक्रिया में भाग लेंगे कहाँ तक उचित है या था यह विषय अब इतिहास का विषय बन कर रह गया है जैसा की अण्णा हजारे ने स्वयं भी अनुभव किया होगा वह सभी नेताओं और पार्टियों के पदाधिकारियों के पास अपने जन लोकपाल कानून के लिए समर्थन मांगने के लिए गए लेकिन क्या मिला ? मेरे अपने आंकलन के अनुसार यही होना था जो मेरे लोखों में परिलक्षित हुआ था जो आज सच होता हुआ दिख रहा है – जैसे की सरकार ने घोषणा कर दी है की अब ड्राफ्टिंग कमेटी की कोई मीटिंग नहीं होगी केवल सरकार ही लोकपाल बिल का मसौदा संसद में पेश करेगी ? मेरी सारी सहनुभूति और समर्थन श्री अण्णा हजारे के साथ है भगवान् उन्हें दीर्घायु दे जिससे वे समाज सेवा की अपनी तपस्या को पूरा कर सके. ( उनके साथ जुड़े ड्राफ्टिंग कमेटी के लोगों के विषय में मेरे अपने विचार है जो फिर कभी प्रकट करूँगा )
लेकिन अभी (२६/१०/२०११) तक जो भी कुछ मिस्टर केजरीवाल के साथ हुआ है वह कुछ संक्षिप्त में इस प्रकार है (१) की कांग्रेश का विरिध करके उन्होंने अपने ऊपर जूते फिकवाए शायद यह प्रशिद्धि पाने का तरीका भी हो सकता है परन्तु गंभीर कारण कुछ और ही है वह यह की मीडिया की ख़बरों और केजरीवाल की खुद की स्वीकारोक्ति की मनीष सिसोदिया के साथ मिल कर जो ट्रस्ट “कबीर” वह चलते हैं उस ट्रस्ट को अमेरिका की किसी संस्था से चार लाख (4 ,00 ,000 ) अमेरिकी डालर मिले है अब यह तो जाँच के द्वारा ही पता चल सकता है की अमेरिका ने यह पैसा धर्मार्थ कार्यों के लिए दिया या देश में कांग्रेस हटाओ आन्दोलन चलने के लिए दिया था क्योंकि अन्ना की सोंच और केजरीवाल की सोंच में जमीन आसमान का अंतर है केजरीवाल का एक सूत्री कार्य-कर्म है कांग्रेस हटाओ और अन्ना का आन्दोलन है भ्रष्टाचार हटाओ, क्या कारण है की आना के आन्दोलन के समय एकत्र रुपया केजरीवाल ने अपनी एक और निजी संस्था “पब्लिक काज रिसर्च फाउन्डेसन ” के खाते में जमा किया जो की करीब अस्सी लाख रुपया है अगर यह अन्ना का आन्दोलन था तो पैसा केजरीवाल के खतों में क्यों गया ? किसी सवाल के उत्तर में केजरीवाल ने यह कहा की यह “आन्दोलन इण्डिया अगेंस्ट करप्सन” के द्वारा “पब्लिक काज रिसर्च फाउन्डेसन ” की निगरानी में चलाया गया था तो इसका मतलब यह हुआ की “पब्लिक काज रिसर्च फाउन्डेसन ” ने अन्ना हजारे को हायर किया था इस लिए सारा पैसा “पब्लिक काज रिसर्च फाउन्डेसन ” के खाते में जमा कराया गया तो फिर यह कहना की आन्दोलन अन्ना हजारे के द्वारा किया गया अपनी कहानी आप ही ब्यान कर देता है ? अब आज के सन्दर्भ में मेरा तो यह मानना है की इस आन्दोलन के तार विदेस से भी जुड़ रहे है तो सरकार भी कब तक चुप पैठेगी ? (२) दूसरी महारथी है अन्ना हजारे की सिपाह सलार श्रीमती किरण बेदी जी जो भूतपूर्व आई पी एस अधिकारी थी तथा डी जी पी के पद से त्याग पत्र देकर कई एन जी ओ चलती है उनके विषय में जो प्रकरण सामने आ रहा है वह कोई इमानदार व्यक्ति तो नहीं कर सकता खासकर भारत सरकार से बहादुरी समान प्राप्त व्यक्ति और जिसको उस समान के फलस्वरूप भारतीय विमान सेवा से यात्रा करने में ७५ प्रतिशत छुट मिलती हो ? जब उनके द्वारा की गई हेराफेरी पकड़ी गई तो उन्होंने यह कह कर पल्ला झाड लिया की में यह पैसा जिनसे लिया है उसे वापस दे दूंगी और यह सब गलती मेरे ट्रेवेल एजेंट के द्वारा की गई है ?
(३) है श्री प्रशांत भूषण जिन्होंने अतिउत्साह में आकर कश्मीर जैसे नाजुक मामले पर जनमत करने का समर्थन कर दिया फिर तो जो होना था वह हो गया आ गया किसी देश भक्त को जोश जिन्होंने उनके चेम्बर में घुस कर मार पीट कर दी सारी वकालत और मानवाधिकार का दर्शन दिखा दिया जो की दुर्भाग्यपूर्ण था अब बचे एक और कार्य कर्ता कुमार जोकि किसी कालेज में पढ़ाते है उनमे भी बहत्तर छेद वाली कहावत चरितार्थ होती है वह बिना छुट्टी लिए भ्रष्टाचार मिटाने के लिए शहीद होना चाहते है और कथित रूप से मेरठ विश्विद्ध्यालय के १० लाख रूपये डकार चुके है ? लेकिन दुर्भाग्य यह है की भ्रष्टाचार के विरूद्ध आन्दोलन चलाने वाले इन लोगों को क्या कहा जाय ? क्या भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो हीरो हमारे सामने आये है उनका चरित्र बेदाग़ नहीं होना चाहिए अगर यह कानूनी रूप नहीं पर में ये लोग तकीनीकी रूप में भी भ्रष्ट साबित हो रहे हैं तो फिर आन्दोलन किस लिए ? फिर ये कहना कहाँ तक उचित है की “हमारा जन लोक पाल ” पास करदो और हमें फांसी चढ़ा दी ” क्या जनता इसी प्रकार से छली जाती रहेगी ? अब जबकि उपरोक्त विचार निरथर्क हो चुके है क्योंकि सरकार और पार्टियों के (पूरी संसद के ) द्वारा जिस प्रकार लोकपाल बिल को पास करने के लिए जैसा आचरण किया गया है उससे स्पष्ट होता है की टीम अन्ना अपनी प्रसांगिकता खो चुकी है चूँकि चुने हुए प्रतिनिधि वास्तव में नहीं चाहते की उन्हें कोई हेंडल करे या अंकुश लगाये ?

अब रही बात दुसरे आन्दोलन काले धन और भ्रष्टाचार के विषय में :- हरियाणा प्रदेश का यह युवक जब तक राम सेवक यादव से बाबा राम देव बना तब तक तो सब ठीक ही था लेकिन जैसे ही बाबा राम देव से श्रधेय योग गुरु परम पूज्य बाबा राम देव में परिवर्तित हए तभी से उनकी इच्छाओं का आकार बढता गया (इसमें मेरे द्वारा ये शब्द कितने गलत है या सही है यह आप स्वयं अनुभव करे ) एक ट्रस्ट से दूसरी और दूसरी से तीसरी और फिर एशिया का सबसे बड़ा आयुर्वेदिक दवाओं का कारखाना और विदेशों में शाखाओं के साथ साथ पुरे टापू का खरीदना आदि आदि | अब इस आधुनिक युग में यह किसी से छिपा हुआ नहीं है की भारत में धार्मिक ट्रस्ट और धर्माथ ट्रस्टों का निर्माण किस प्रकार से होता है और उसमे दान कर्ता कौन सा धन- दान करते है / और अगर ट्रस्ट धर्मार्थ है तो उसमे लाभ कहाँ से आ रहा है – सेवा कार्य करने वाली ट्रस्ट कभी भी लाभ नहीं कमा सकती केवल धार्मिक आड़ में इस प्रकार के कार्य करने वाली ट्रस्ट ही धन दौलत कमाने वाली मशीन बन कर रह जाती है ? अब यह तो इस देश की ही विडम्बना ही है की जिस न्यास/ट्रस्ट की नीव ही काले धन रूपी ईंट पर रखी गई हो उस ट्रस्ट का सर्वे सर्वा व्यक्ति सार्वजानिक रूप से एक चुनी हुई सरकार को अगर चुनौती दे तो उसका परिणाम क्या होगा क्या यह अंदाज किसी पड़े लिखे व्यक्ति को नहीं हो सकता ?यह बात और है की अगर सावन के महीने सभी ओर हरियाली दिखती है और कुछ लोग उसके आदि हो जाते है उन्हें सभी मौसमो में हरा हरा ही दीखता है \ अब अगर किसी व्यक्ति को यह मालुम ही नहीं है की व्यक्ति जिस ईमारत पर खड़ा होकर सरकार को चुनौती दे रहा है उसकी नीव में भी काले धन का उपयोग हो रहा है तो फिर तो उसक व्यक्ति का मालिक केवल इश्वर ही हो सकता है – चूँकि इस विषय पर मेरा अपना अनुभव था जिस कारण से मैंने श्रधेय बाबा राम देव के विषय में यही लिखा था की जब भी बाबा कुछ ऐसा वैसा व्यक्तव्य देंगे या बोलेंगे सरकार उनके पीछे भी आयकर की धारा १३२ की कार्यवाही आरम्भ कर देगी – वैसे भी योगियों और संतो का काम राजनीती करना नहीं है संतो साधुओं का काम समाज को सद-मार्ग को दिखाना होता है – और राज निति को राजनैतिक व्यक्तियों के लिए ही छोड़ देना उचित होता है ? इसी लिए श्री अण्णा हजारे द्वारा चेतावनी देने के बाद भी बाबा राम देव केंद्रीय सरकार के चार घाग मंत्रियों के चंगुल में फंस ही गए और जो दुर्गति उनकी हो सकती थी वही हुई भी – कहाँ तो सरकार को बाबा रोज रोज धमकाते रहते थे आज उसका उल्टा हो रहा है ? इसी लिए तो कबीर ने कहा था की ” कबीरा तेरी बकरी गल कट्टन के हाथ, जो करेगा सो भरेगा तू क्यों होत उदास “ जिससे प्रभावित होकर ही मैंने बाबा राम देव पर कुछ पोस्ट लिखी थीं जिसका बहुत से लोगों ने विरोध किया था – अब सब सच सामने है और मेरा सोचा हुआ जो परिणाम होना था वही हुआ भी है ? एक बात और मैं आज उन सभी महानुभावों से जिन्होंने ने मेरी आलोचना की या गाली दी एक बात पूछना चाहता हूँ की क्या स्वतन्त्र भारत के इतिहास में कोई ऐसा उदहारण है की किसी गैर सरकारी व्यक्ति ने निजी तौर पर कोई कानून बनाया हो या उसके द्वारा बनाया कानून संसद में पास हुआ हो ? अगर ऐसा नहीं नहो सकता तो फिर लोग क्यों व्यर्थ में प्रलाप कर रहे हैं और जनता को बहका रहे है / हाँ जनता के द्वारा जागरूक होने पर क्रांति संभव है और वह क्रांति न तो इन्टरनेट पर संभव है और न ही एयर कंडीशन कमरों मैं बैठ कर होगी और न ही प्रलाप करने से होगी वह क्रांति होगी, गरीब -मजलूम, मजदूर, किसान भूखे पेट इंसान के द्वारा होगी लेकिन उसके लिए इन्तजार करना होगा ? अब सारे परिणाम आप सब के सामने है मुझे जो समझे आपकी मर्जी सब कुछ सर माथे – हाँ गाली देने वाले आदरणीय बंधुओं से एक अनुरोध है की वह सामाजिक सोचं के अपने चश्मे का नंबर जरूर सही कर ले अन्यथा हो सकता है की उन लोगो को आगे चल कर कुछ परेशानी न हो जाय, समाज का परिवर्तन तार्किक आधार पर सोच विचार के साथ के साथ साथ आकार लेता है न की एक दुसरे को गाली देकर ताना शाही के रूप में हुआ परिवर्तन केवल ताकत (तलवार ) के बल पर होता है – न की भेंडो के सामान आचरण करने से. एस.पी.सिंह, मेरठ

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh