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अंग्रेजो ने ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ा था जब उन्होंने ने गाँधी को अपमानित न किया हो लेकिन भारत के कुछ लोग तो मृत्यु के पश्चात भी कोई मौका नहीं छोड़ रहे है उनका उपहास करने में और विवाद का विषय भी बना रहे है ? शायद गाँधी जी की आत्मा जब भी इधर देखती होगी तो अवश्य ही रोती होगी, इसलिए मैं तो यह सोंचता हूँ की गाँधीको इस देश में पैदा ही नहीं होना चाहिए था ?
गडे मुर्दे उखाडना शायद लोगो के शौक मे शामिल हो गया या अभिव्यक्ति के नये नये शौक (ब्लाग लेखन/ twiter / facebook) ने भी लोगो को ऐसा करने के लिये प्रोत्साहित किया है ? इसलिए महात्मा गाँधी के अस्तित्व को ही विवादस्पद बना दिया है और नित नए विवाद पैदा किये जा रहे है, किसी नौ वर्षीय कन्या ने उत्सुकता वश अगर प्रधान मन्त्री कार्यालय से सूचना के अधिकार के माध्यम यह जानकारी प्राप्त करनी चाहि कि ” गान्धी जी ” को “राष्ट्रपिता” की उपाधि सरकार द्वारा कब् प्रदान कि गयी है ? तो जवाब् उससे भी अधिक हास्यास्पद है कि ” सरकार के पास ऐसा कोइ रिकार्ड नही है कि गान्धी जी को कब्, किसने और कौन सी तारिख को यह उपाधि दी है” ? शायद प्रधान मन्त्री कार्यालय मे बैठे मोटी सैलेरी पाने वाले अधिकारी बहुत ही अबोध् बच्चे है जिन्हे यह भी नही मालुम कि अभी तक सरकार द्वारा इस प्रकार की उपाधि देने का कोइ चलन ही नही है, तो जब ऐसा कोई चलन नहीं है तो उसका रिकार्ड कहां से आयेगा ?
आजादी के बाद जब कांग्रेस ने देश का शासन संभाला तो इस बात में भेद करना मुश्किल था की सरकार कांग्रेस की है या कांग्रेस ही सरकार है उस समय प्रत्येक कांग्रेसी व्यक्ति सरकार था या सरकार का अंग हुआ करता था और कब महात्मा गाँधी को महात्मा बनाया या कब राष्ट्रपिता बनाया इस बात की चिंता किसी को नहीं थी की इन सब का कोई रिकार्ड भी रखना होगा बस जो कुछ चलन में आ गया वही कानून बन गया ऐसा किसी को होश ही नहीं था कि कभी RTI Act भी इस देश आ सकता है , लेकिन जो लोग गाँधी को कभी सम्मान नहीं दे सके शायद उस वर्ग/समुदाय को यह स्वीकार नहीं है कि गाँधी भारतीय करेंसी पर छपने के बाद अमर हो जाएँ यही दर्द उन्हें बर्दास्त नहीं हो रहा है ? इसलिए इस मुद्दे को उछालने के साथ साथ इसको जीवित भी रखना चाहता है शायद ऐसा किसी विकृत मानसिकता के कारण भी हो सकता है ? या फिर यह बात हो सकता है की कुछ लोग गांधी को केवल कांग्रेस की बपौती ही समझते है और उन्हें केवल कांग्रेस तक ही सिमित रखना चाहते है , लेकिन ऐसा समझने वाले या करने वाले यह नहीं समझते कि गाँधी इस देश की वो धरोवर है जो न पहले कभी पैदा हुआ था और न आगे भी कोई उम्मीद की जा सकती है , आजादी के संघर्ष में जो योगदान या दिशा निर्देश गाँधी के द्वारा किया गया है और अहिंसा का जो पाठ उस समय भारत के लोगों को पढाया था उसका कोइ विकल्प न तो उस समय था और न आज के वैज्ञानिक में ही किसी के पास है ?
जहाँ पूरी दुनिया आज गाँधी के अहिंसा के सिद्धांतों का आदर करती है कई राष्ट्रआध्यक्ष उनके विचारों का अनुसरण करते ही नहीं गर्व से कहते भी है और गाँधी जी के विचारों को अपने जीवन में अपना रहे है वहीँ भारत में उन्हें विवाद का विषय बनाया जा रहा है ? कुछ लोग देश में दूसरी आजादी का नारा लगा कर एक और गाँधी को भी स्थापित करने की कोशिश भी कर रहे है ? कोई गाँधी टोपी लगा कर गाँधी बन सकता क्या ?
अभी दो दिन पहले ही एक स्वयंभू स्वामीजी , जो अपने लकवा ग्रस्त शरीर की विकृति को योग से दूर करते करते कथित रूप से योग के प्रवर्तक महान योगी पतंजली को भी पीछे छोड़ चुके है, भले ही स्वामीजी ने अपने शरीर को लकवा मुक्त तो कर लिया है परन्तु अभी मन मस्तिष्क से उसका असर नहीं गया है तभी उन्होंने भी गाँधी जी का नाम अपने साथ जोड़ने का अभियान भी छेड़ दिया है और कहा है कि नकली गांधियों ( राहुल/सोनिया ) को गाँधी नाम का उपयोग करने से रोका जाय ? जबकि यह स्वयं सिद्ध स्वामीजी जो स्वयं न जाने कितनी ही उपाधियों का उपयोग धडल्ले से करते है यह उपाधियाँ इनको किसने दी किसी को मालूम नहीं ? अब गाँधी को भी अपने नाम के साथ जोड़ने की चाह रखते है ?
जबकि इस देश में धूर्त प्रकृति के पाखंडी साधू, महात्मा, कथा-वाचक, कृपा बांटने वाले – निर्मल बाबा, जीने के कला सिखाने वाले गुरु आदि , आपने आप ही अपने को उपाधियों से अलंकृत करके टी वी पर खूब प्रचार करते है और धर्मभीरू जनता को मुर्ख बना कर करोड़ों रुपया कम रहे है ? और कमायें भी क्यों न इस भारतीय समाज को जिस प्रकार धर्म के ठेकेदारों ने सदियों तक मुर्ख बनाया है वह मानसिकता लोगों से समाप्त ही नहीं हो रही है बिना पुरषार्थ किये केवल गुरुओं कि कृपा के सहारे सबकुछ प्राप्त करने की चाह जो मन में रहती है ? अभी आज ही एक समाचार है कि कथित कृपा बांटने वाले एक निर्मल बाबा के खाते में रोजाना एक करोड़ रूपये से अधिक जमा हो रहे है और अगस्त २०११ से आज १२/४/२०१२ तक एक सौ नौ करोड़ रुपया बैंक में जमा हो चुका है परन्तु निर्मल बाबा ने स्वयं ही बताया है की उनका सालाना टर्न ओवर 238 करोड़ रुपये का है और उस पर वह टेक्स भी देते है अब यह विद्वान जानो के लिए खोज का विषय हो सकता है की केवल दैवी कृपा बाट कर ही कोई इतना पैसा कमा सकता है ? लेकिन प्रबुद्ध जनों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि ऐसे लोग कैसे इतनी जल्दी धनवान हो जाते है , उन्हें केवल गाँधी को ही बदनाम करना है जिस प्रकार से भी हो सके या फिर गाँधी एक बहुत बड़ा ब्रांड नाम है जिसके सहारे प्रसिद्धि पाई जा सकती है कुछ तो है शायद यह उसी प्रकार है जैसा किसी ने कहा है ? कोई न कोई हंगामा करते रहो जनता अपने आप ही आकर्षित होती जायगी या फिर लोगों के सीने में आग जलाते रहो कभी तो मंजिल मिलेगी ? ” वैसे भी गाँधी जी ने जिन लोगों के लिए अपने जीवन की आहुति दी थी वह लोग इस धरती के सीने पर उगे हुए अनाज को चाट कर बड़े हो जाते है परन्तु धरती को माँ कहने से नफरत करते है तो गाँधी को राष्ट्रपिता क्योंकर कहंगे ?
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