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“Feedback” —– “जागरण जंक्सन पर सफरनामे पर अपना-अपना अनुभव”

पाठक नामा -
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जब से जागरण मंच पर इस प्रकार से विचार आमंत्रित किये गए हैं उसी दिन से मैं भी यह विचार कर रहा था कि मुझे भी कुछ लिखना चाहिए लेकिन अनुभवों को लिखना भी एक “टेढ़ी खीर” के समान है क्योंकि कुछ अनुभव तो सुखद हैं और कुछ दुखद तो नहीं कह सकते परन्तु कटु अवश्य हैं लेकिन जो क्रांति हम जैसे लिखने वाले व्यक्तयों को उपलब्ध कराई है उसका कर्ज मैं तो नहीं उतार सकता हूँ क्योंकि जागरण जंक्सन से ब्लॉग जगत में जिस धमाकेदार अंदाज में द्विभाषीय ब्लॉग मंच का आगमन हुआ उससे साहित्य व लेखन की विविध शैलियों में हजारों उत्कृष्ट रचनाकारों और अनेकों ऐसे नए व लेखन की शुरुआत करने वाले लेखकों को एक विशिष्ट मंच प्राप्त हुआ जहां पर उन्हें सारी दुनिया के साथ अपने विचारों को साझा करने का अवसर मिला। अपने दो वर्षों से अधिक के विकासावधि के दौरान मंच ने विविध वैश्विक आयामों को छुआ तथा ब्लॉग साहित्य के नए रंग- रूप व चित्ताकर्षक पृष्ठभूमि का सृजन किया।
परन्तु अनुभव तो अनुभव ही होते है मुझ जैसे बाथ-रूम सिंगर की श्रेणी के लेखन करने वाले व्यक्ति को भी स्थान दिया और कुछ रचनाओं के लिए सम्मानित भी किया परन्तु सुखद अनुभूति के साथ जो कटु अनुभूति हुई उसको चाह कर भी नहीं भूल सकता ? वह यह कि मेरे लेखों में विश्लेष्णात्मक शब्दों कि भरमार होती है ” जैसे मेरे सभी लेख राजनीती प्रष्टभूमि के होते है जो मेरे सरकारी सेवा के अपने लम्बे अनुभव/ सामाजिक शास्त्र और राजनितिक शास्त्र की शिक्षा एवं वर्तमान घटनाओं पर आधारित होते हैं परन्तु मंच के विद्वान जन ऐसे लेखों को आलोचना रूप में ग्रहण करते है कुछ तो गालियों के द्वारा स्वागत करने से भी नहीं चुकते ? मैं लोगों को समझाने में असमर्थ रहा हूँ. ? लेकिन मैं स्वयं में पूर्ण रूप से संतुष्ट हूँ क्योंकि मेरे द्वारा उठाये गए सभी मुद्दों का हस्र शत प्रतिशत सही निकला — जैसे मेरे वे लेख जिन में बाबा राम देव के विषय में लिखा था सभी कुछ मेरे आकलन के अनुसार हुआ और बाबा को किसी ढपोर – शंख के समान मंच छोड़ कर और महिलाओं के कपडे पहन कर भागना पड़ा क्योंकि मेरा आज भी यह मानना है कि यह सब कुछ बाबा एक राजनैतिक उद्देश्य के लिए कर रहे है न कि एक सन्यासी के रूप में क्योंकि जो आत्म बल एक सन्यासी का होता है वह बाबा उससे कोसों दूर हैं, उनमे जो खीज और दंभ है वह एक व्यापारी जैसा ही है और उसकी सुरुआत भी कोला के विरोध से हुई थी यह सर्विदित है इसीलिए सरकार ने भी रात के अँधेरे में बाबा कि इज्जत ही नहीं लूटी बल्कि उनको घुटनों के बल बैठने को मजबूर कर दिया कारण स्पस्ट है भारत में धार्मिक न्यासों (ट्रस्टों ) को छोड़ कर जितने भी ट्रस्ट है उनमे काले पैसे का उपयोग होता है और बाबा के ट्रस्ट भी इससे अछूते नहीं है और जिस बाबा के पास १०० कम्पनियाँ हो वो व्यक्ति सन्यासी है या व्यापारी इस लिए सरकार और सरकार के अधिकारी भी उनसे वैसा ही बर्ताव करते है ? आज सच सबके सामने है क्योंकि अगर कोई सच्चा सन्यासी होता और केवल जनता की भलाई की बात करता तो उस रात जीतनी जनता राम लीला मैदान में थी वहां अवश्य ही रावण लीला हो जाती लेकिन सवाल फिर वाही है आत्म बल की कमी | इसी प्रकार माननीय अण्णा हजारे के विषय में सभी लेखों में ऐसा ही विश्लेषण था क्योंकि आप जनता को उद्देलित करके अधर में छोड़ने का कार्य कर रहे हो आपके पास विकल्प क्या है/ विकल्प कोई नहीं है इस लिए आन्दोलन का उद्देश्य सफल होना तो था लेकिन पूर्ण होने कि कोई आवश्यकता नहीं समझी इसके प्रवर्तकों ने — और इसका भी निहित राजनितिक उद्देश्य ही था जैसा कि देखने को भी मिला था ? आज मैदान में न तो बाबा है न अण्णा और उनकी टीम है न ही श्री श्री है यह सब कार्य जिस मास्टर के आदेश पर किया गया वह केवल रिहर्सल मात्र ही है और इसको ही मैंने कहने कि कोशिस कि थी – क्योंकि सभी राजनैतिक पार्टिया अपने मूल उद्देश्य से भटक गई लगती है उनका मात्र लक्ष्य सत्ता प्राप्ति ही है इस लिए बड़े से बड़े प्रपंच रचने में किसी भी पार्टी को कोई शर्म नहीं होती –?
अब अगर मैं बात करू कुछ अलग हट कर लिखने कि तो मैंने एक लेख लिखा “वरिष्ट नागरिक मंच और नारी शसक्तीकरण ” लेकिन इसी मंच कि एक प्रसिद्ध लेखिका को मेरा लेख पसंद ही नहीं आया तो मैंने वह लेख डिलीट कर दिया लेकिन वह उनको इतना नापसंद था कि उन्होंने अपने किसी हेतैषी के द्वारा जागरण मंच को मेरी और से भेजी जाने वाली सभी मेल ही रुकवा दी है यह कैसे संभव हुआ मुहे नहीं मालूम क्योंकि मैं जो भी मेल भेजता हूँ वह तुरंत ही वापस आ जाती है इस टिपण्णी के साथ कि प्राप्तकर्ता का डोमेन आपकी मेल प्राप्त करने में असमर्थ है क्योंकि आपकी आई डी परमानेंट ब्लाक है ? मैंने अपने और से सभी प्रयत्न कर लिए सभी माध्यमो यहाँ तक कि अपनी दूसरी मेल आई डी से भी मेल भेजी वह भी तुरंत ही वापस आ गई ?
एक और दुखद अनुभव और है कि जागरण मंच से मतभेद होने के कारण बहुत से नामचीन सज्जन लोग यह मंच छोड़ कर भी जा चुके है जिसका मुझे बहुत दुःख है जिनमे से कुछ के नाम लेना भी चाहूँगा, सर्वश्री आर के खुराना (चाचाजी ), आर एन शाही, चातक , वाहिद काशीवासी , डा. एस शंकर सिंह , मुनीश , आदि आदि और साथ मैं यह भी अनुरोध करना चाहता हूँ कि अगर मेरे साथ भी यही भेदभाव रहा ( मेरी मेल कि प्राप्ति बंद कि हुई है ) तो मुझे भी मंच को अलविदा कहना ही होगा ?
क्योंकि मेरे एक लेख का प्रकाशन जब जागरण कॉम पर किया गया (दिनांक ३/४/२०१२) तो उसके लिए मुझे जागरण जंक्शन कि ओर से एक बधाई सन्देश भी आया था परन्तु उसको डाउन लोड करने के समय ही वह डिलीट हो गया और यह समस्या भी उसी समय से आरम्भ हो गई अगर मेरे प्रति जागरण जंक्शन के कंप्यूटर डोमेन को दुरुस्त नहीं किया गया तो फिर तो मेरी ओर से भी मंच को अलविदा ?
एस.पी.सिंह, मेरठ

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