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रहिमन पानी रखिये बिन पानी सब सून
पानी गयो ना उबरे मोती मानस चून
ऐसा महाकवि रहीम ने बहुत पहले ही कहा था, लेकिन उसकी सार्थकता आज के युग में अति महत्वपूर्ण है
; पानी एक रासायनिक यौगिक है जिसके एक अणु में हाइड्रोजन के २ अणु और आक्सीजन का १ अणु मिलने से बनते है जिसका अपना न तो कोई स्वाद है न कोई गंध है न कोई रंग है यह तरल , ठोस, गैस तीनो अवस्थाओं में पाया जाता है अब तक की खोजो में यह पाया गया है की व्योम मंडल के किसी भी अन्य ग्रह पर पानी नहीं है जिस कारण से वहां किसी भी जीवन का होना भी असंभव ही है,
हमारे जीवन में माता पिता के द्वारा जीवन देने के बाद अगर सबसे अधिक किसी वास्तु की आवश्यकता होती है तो वह पानी ही है यही वजह है की शारीर में ६० से ६५ से प्रतिशत पानी ही होता है, हमारे जीवन का कोई भी कार्य बिना पानी के संभव ही नहीं है जीवन जीने के लिए ही नहीं, कृषि, निर्माण कार्य, व्यापार उद्द्योग के अतिरिक्त जल -परिवहन यहं तक की आज से पहले जब जेम्स वाट ने भाप से रेल इंजन चलाने की परिकल्पना की थी तो वह पानी ही था जिसको चाय बनाने की प्रक्रिया से भाप (वाष्प ) की शक्ति का आभास जेम्स वाट को हुआ था ?
जल के स्रोत आज भी दुनिया भर में पर्वतों पर जमी बर्फ और भूगर्भ में एकत्रित जल ही है वैसे तो समुन्द्र में भी जल ही जल है लेकिन वह केवल परिवाहन के काम ही आता है पीने के लिए नहीं ? पर हम हैं की अपने जल स्रोतों को दूषित करने से बाज ही नहीं आ रहे हैं. हमारी जीवन दायनी समस्त नदियाँ आज इतनी दूषित हो चुकीं है की अपने अस्तित्व को बचा पाने में नाकाम हैं. और इस आधुनिकता के दौर में हम हैं की उसके संरक्षण के बजाय उसमे औद्द्योगिक कचरा /रसायन /प्लास्टिक अवशेष भरते ही जा रहे है
लेकिन हद तो तब होती है जब हम किसी की मृत्यु होने पर हम अपनी परम्परा के अनुसार शवों का अंतिम संस्कार किसी नदी/नहर के तट पर ही करते है ईस अवधारणा से कि मृत्यु के पश्चात मृत आत्मा को स्वर्ग में स्थान मिलेगा या फिर शवों को नदियों/नहरों में ऐसे ही बहा देते ऐसा करने ने जो प्रदूषण बढ़ता है हम उससे अनभिज्ञ नहीं है पर परम्परा के नाम पर सब चलता है?
ऐसा भी नहीं है की सरकार इससे अनभिज्ञ है सरकार भी करोड़ों रुपया खर्च करके पता नहीं अपनी आँख में धुल झोंकती है या फिर जनता की आँख में समझ से परे ही है क्योंकि सफाई के नाम पर जो गोरख धंधा होता है i या बन्दर बाँट होती है वह जगजाहिर है ? क्योंकि यह तो विदित ही है कि आज भी हमारे देश में कुछ इलाके ऐसे है जहां शुद्ध तो क्या अशुद्ध पानी भी पीने के लिए नहीं मिलता !
आज भारत में बोतलों में बंद करके जो साधारण पानी बेचा जाता है उसका व्यापार भी अरबों रूपये का है इस लिए यह भी हो सकता है की जो लोग इस प्राकृतिक सम्पदा का व्यापार करते है यह उन लोगों की साजिश का नतीजा हो, क्योंकि तरह तरह के अप्राकृतिक पेय पदार्थ , जिनसे बाजार भरा पड़ा है,उनकी ओर कौन आकर्षित होगा जब तक प्राकृतिक स्रोतों से देशवासियों को शुद्ध जल मिलता रहेगा तो इस बाजार वाद के दौर में यह भी संभव है की बड़ी बड़ी कंपनिया भी इस खेल में शामिल हो सकती हैं ? मैं तो ऐसा सोंचता हूँ कि किसी भी प्रकार के अपराध, से अधिक बड़ा अपराध तो जीवनदायिनी नदियों/नहरों को प्रदूषित करने वाले लोग ही कर रहें है ?
अब सजा इनको कौन देगा सरकार या जनता !!!!!!
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