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देश का अगला राष्ट्रपति राजनैतिक पृष्ठभूमि वाला होना चाहिए या फिर गैर राजनैतिक?”जागरण जंक्शन फोरम “

पाठक नामा -
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pranab_mukherjeePMhamid_ansari

हमारे भारत में राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक एवं तीनों सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर होने के साथ साथ सरकार का भी मुखिया होता है यह बात और है कि वह स्वयं के विवेक से कोई कार्य नहीं कर सकता केवल मंत्रिमडल के द्वारा प्रस्तावित अनुमोदित कार्यों को ही करने में सक्षम है यहाँ तक कि केंद्र सरकार का सारा कार्य उन्ही के नाम से होता है, चाहे केंद्र के कर्मचारियों का महंगाई भत्ता ही क्यों न बढ़ाना हो जब तक राष्ट्रपति मेहरबान नहीं होते तब तक कर्मचारियों का महंगाई भत्ता नहीं मिल सकता ? जैसे-जैसे वर्तमान राष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होने जा रहा है वैसे-वैसे भारत के अगले राष्ट्रपति से जुड़ी चर्चाएं भी बहुत तेज होती जा रही हैं। अगला राष्ट्रपति कौन होगा इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल यह है की निरंतर प्रगति के मार्ग पर अग्रसर भारत जो एक बहुत बड़ा उपभोगता बाजार भी है इसी कारण से दुनिया भर कि नजर लगी हुई है ?


बुद्धिजीवियों का एक वर्ग जो राजनैतिक पृष्ठभूमि वाले राष्ट्रपति की पैरवी करता है, का कहना है कि किसी भी देश का राष्ट्रपति उस देश का प्रथम नागरिक होता है। भारतीय लोकतांत्रिक व्य्वस्था में भले ही राष्ट्रपति को राजनैतिक तौर पर अधिक शक्तिशाली नहीं बनाया गया है लेकिन फिर भी देश के प्रथम नागरिक को राजनीति में अनुभव अवश्य होना चाहिए। उसे देश के राजनैतिक हालातों की समझ होगी तो वह सही समय पर सही निर्णय ले सकेगा। अगर राष्ट्रपति गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि से होगा तो उसके लिए राजनीतिक परिदृश्य पर अपनी पकड़ बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा।

वहीं दूसरी ओर कुछ विचारक ऐसे भी हैं जिनका कहना है कि देश के राष्टृपति को गैर राजनैतिक पृष्ठभूमि का ही होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि किसी पार्टी के साथ संबंध ना होने के कारण राष्ट्रपति पक्षपात नहीं करेगा। वह जो भी निर्णय लेगा वह पूरी तरह निष्पक्ष और जनता के हितार्थ होगा।

भारत के राजनैतिक इतिहास में बहुत से ऐसे राष्ट्रपति रहे हैं जो सीधे-सीधे तत्कालीन सरकार के फैसलों पर ही मुहर लगाते रहे हैं। जबकि हम यह उम्मीद करते हैं कि देश का राष्ट्रपति किसी भी प्रकार के राजनैतिक लाभ से मुक्त रहे। अगर राष्ट्रपति गैर राजनीतिक होगा तो उस पर किसी पार्टी का अहसान नहीं होगा, वह किसी पार्टी के सिद्धांतों पर नहीं चलेगा। राजनैतिक पृष्ठभूमि वाले राष्ट्रपति राजनीतिक लाभ-हानि को महत्व देते हैं और पार्टी छोड़ने के बाद भी वह अपने राजनैतिक मित्रों और साथियों के सुझावों पर ही चलते हैं। इसीलिए भारत का ऐसा राष्ट्रपति जो किसी पार्टी से संबंध ना रखता हो वही देश के लिए हितकर है।

१. भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में राष्ट्रपति के कार्य बहुत सीमित हैं, ऐसे में कहां तक जरूरी है कि उसे राजनीति का अनुभव होना चाहिए?
यह बात अपने स्थान पर तो सही प्रतीत होती है अपने देश में करने के लिए राष्ट्रपति के पास कोई कार्य नहीं होता मात्र औपचारिकता के नाते संसद का सत्र प्रारंभ होने पर दोनों सदनों को संबोधन के अतिरिकित और कुछ नहीं या फिर संसद से पास होकर आये कानूनी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करना मात्र ? बाकी समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से विभिन्न मंत्रालय स्वयं ही करते रहते हैं. इस लिए इस स्थान पर किसी भी व्यक्ति को बैठा दो वह सब कार्य करता रहेगा पर यह अपने आप में आसान नहीं है, राष्ट्रपति को प्रथम नागरिक होने के नाते विदेशों में देश का प्रतिनिधित्व करना होता है इस लिए अगर राष्ट्रपति राजनीती को नहीं जानेगा या समझेगा तो दुनिया भर में हो रही राजनीती के दावं पेज का क्या होगा, लेकिन अगर राष्ट्रपति किसी ऐसे व्यक्ति को भी चुना जाता है जो अपने क्षेत्र का माहिर हो जैसे विगत में डाक्टर राधा कृष्णन, या डाक्टर कलाम साहब थे जो क्रमश : शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र के सफल योधा रहे हैं. इस लिए इस विचार को भी नहीं नाकारा जा सकता ?
२. क्या जनता के हितों के बारे में सोचने के लिए राजनीतिक पृष्ठभूमि का होना आवश्यक है?
यह सवाल भी अपने आप में बहुत महत्त्व रखता है की जनता के हित की बात कौन करता है या करेगा, अगर कोई वैज्ञानिक होगा तो उसे अपने क्षेत्र का ही तो अनुभव होता या कोई डाक्टर है तो उसे केवल मनुष्य के अन्दर व्याप्त बीमारियों का ही ज्ञान अधिक है, कोई व्यापारी है तो उसे केवल व्यापार की चिंता होती है इसी प्रकार से हर क्षेत्र के विशेषज्ञ को उसके पाने क्षेत्र का अनुभव होताहै ? सामाजिक संरचना उसकी संवेदना उसकी आवश्यकता का आकलन जितनी तत्परता से कोई समाज शास्त्री या फिर राजनितिक व्यक्ति कर सकता है दूसरा कोई नहीं कर सकता है और सबसे बड़ी बात होती पार्टी का हित जिस कारण से राजनितिक नेत्रित्व ऐसे निर्णय भी ले लेता है जिसे एक गैर राजनितिक व्यक्ति नहीं ले सकता, हम लाख कहें की एक बार राष्ट्रपति बन जाने पर पार्टी से कोई सम्बन्ध नहीं होता शायद हम गलत सोंचते है, इस लिए देश हित में यह उचित ही होगा की देश का अगला राष्ट्रपति कोई राजनितिक व्यक्ति ही बने!!!!
३. क्या देश की जनता गैर राजनीतिक व्यक्ति की निर्णय क्षमता पर भरोसा कर सकती है?
यह सवाल तो महत्त्वहीन है क्योंकि जब जिस समय भी कोई व्यक्ति राजनिति से जुड़ जाता है वह न चाहते हुए भी राजनितिक हो ही जाता है जैसे की वर्ष 2004 में चौदहवीं लोक-सभा के गठन के समय ऐसा ही देखने को मिला, उस समय के तत्कालीन राष्ट्रपति जो गैर राजनितिक पृष्ठ-भूमि के व्यक्ति थे अपने आप को उपकृत करने वाली पार्टी के दबाव कहे या अपने गैर राजनितिक अनुभव के कारण से श्रीमती सोनिया गाँधी को प्रधान मंत्री मनोनीत करने में संकोच करते नजर आये थे अब कारण कोई भी रहा हो, लेकिन मनोनयन गैर संवैधानिक नहीं था – बात राष्ट्रपति की हो रही है लेकिन यहाँ यह सवाल भी गैर वाजिब नहीं होगा की हमारे देश के मौजदा प्रधानमंत्री एक गैर राजनितिक व्यक्ति ही हैं लेकिन राजनीती का एक लंबा अनुभव होने के बाद भी राजनितिक निर्णय लेने में संकोच ही नहीं करते बल्कि राजनीती के लिए अक्षम ही है ? इसलिए यह एक सुभ अवसर के समान ही होगा की देश का अगला राष्ट्रपति एक ऐसा व्यक्ति हो जो सक्षम /ईमानदार/ उच्च सार्वजनिक जीवन के मानदंड पर खरा उतरने वाला हो जिसमे निर्णय लेने की क्षमता हो क्योंकि आगे आने वाला समय राजनितिक दृष्ठि से उथल पुथल वाला ही होगा, इस लिए अगर अगला महामहिम कोई राजनितिक व्यक्ति हो तो उचित ही होगा.

 

लेकिन कौन होगा रायसीना हिल पर बनी इस इस भव्य और एतिहासिक ईमारत का अगले पांच वर्ष का मेहमान – २५ जून तक इन्तजार कीजिये !!!!!!!!!!!!

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