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जैसे बिना हज के हाजी वैसे ही केजरीवाल बिना शहर के शहर काजी !!!!

पाठक नामा -
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arvind kejrewal विश्व का एक प्रसिद्ध शहर नई दिल्ली भारत की राजधानी जहाँ २५ जुलाई २०१२ को भारत के तेरहवें राष्ट्रपति महामहिम प्रणब मुखर्जी की ताजपोशी की तैयारियां जोर शोर से चल रही थी वहीँ कुछ दूरी पर जंतर मन्त्र पर एक बेचारा अच्छा भला व्यक्ति जो कहीं किसी वातानुकूलित भव्य आफिस में आयकर आयुक्त की कुर्सी पर बैठ कर बड़े बड़े व्यापारियों की धोती ढीली कर रहा होता आज जन्तर मंतर पर बैठ कर एक मदारी के सामान कभी कोई सी फ़ाइल उठाकर कभी कोई किताब उठा कर कभी कोई परचा दिखा कर कभी भ्रष्ट मंत्रियों की फोटो दिखा कर जनता को अपनी मिमयाती हुई बुलंद आवाज में संदेश देने की कोशिस करता हुआ दिखाई देता है की देखो देश में कितना भ्रष्टाचार फ़ैल रहा है देश की केंद्रीय सरकार के १४ मंत्री और खुद प्रधान मंत्री भ्रष्टाचार कर रहे है मेरे पास सबके विरुद्ध प्रमाण है इस बात पर सामने बैठी जनता जोर जोर से ताली बजती है और फिर एक और विषय पर भाषण नहीं अपितु किसी और विषय वस्तु पर प्रचार जैसा होने लगता है तभी एक प्रख्यात वकील उठते है और जनता को बताते है (जैसे वह कानूनी बारीकियों की व्याख्या वह सर्वोच्च नयायालय की किसी पीठ के समक्ष खड़े होकर दलील दे रहे हों ) पर जनता है की ताली भी नहीं बजाती ?

सबसे बाद में बारी आती है आन्दोलन के पर्वर्तक श्री अण्णा हजारे की लेकिन यह क्या वह तो अपने जन लोकपाल के लिए छटपटाते नजर आने लगे और बोले ये सरकार मेरे साथ पिछले डेढ़ वर्ष से धोका धडी कर रही और जन लोक पाल नहीं बना रही है क्योंकि सरकार को डर है की जन लोक पाल के बनने पर सरकार के आधे मंत्री जेल में होंगे और अगर हमारी मांगे नहीं मानी गई तो में भी 29 जुलाई से आमरण अनशन पर बैठ जायूँगा यानि की बड़ी अजीब मांग है कि कोई बकरा कसाई से कह रहा है की तू अपने हाथ में थमा हुआ हथियार मझे देदे मैं तेरी गर्दन काटूँगा और फिर तेरा पेट फोडूंगा अब तो यह कोई बेवकूफ व्यक्ति भी नहीं कर सकता की ऐसी मांग को मान ले फिर सरकार के काबिल मंत्री क्योंकर इस प्रकार की मांग को स्वीकार करेंगे तो फिर अन्ना साहेब सरकार तो आपकी माँग नहीं मान रही है फिर समय सीमा का क्या मतलब क्योंकि काल करे सो आज कर आज करे सो अब पल में प्रलय होयगी बहुरि करो के कब कर ?

एक बार थोड़े समय के लिए कुछ हंगामा सा होता हुआ दिखाई दिया आरोप लगे कि कांग्रेस के कुछ गुंडे एन एस यु आई के छात्र शाखा के हल्ला कर रहे है पर मामला तुरंत ही शांत हो गया !

तभी खबर आई कि महामहिम प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद कि सपथ दिला दी गई है, आननफानन में उनकी तस्वीर को एक काले कपडे से ढांक दिया जाता है लेकिन फिर उसी अंदाज में महामहिम पर भारत की १३० करोड़ की जनता की ओर से आरोप लगाने का पवित्र कार्य, मिम्याती हुई बुलंद आवाज में आरोपों का एक नया दौर बार फिर से चालु हो जाता है ?

एक बात और देखने को मिली कि जंतर मंतर पर न तो अप्रैल २०११ जैसा माहोल था है और न ही उत्साह ही दिखाई दिया कारण कुछ भी हो सकता है, नाम अन्ना का अवश्य होता है टीम अन्ना लेकिन अन्ना का महत्त्व इस बार बिलकुल नहीं है जहाँ टीम अन्ना १४ मंत्रियों और प्रधान मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोपों में केन्द्रित भाषण और प्रचार कर रही है वहीं अन्ना केवल अपने जन लोक पाल कि बात कर रहे हैं क्या यह जनता को भ्रमित करने का प्रयास नहीं है लेकिन फिर साम होते होते खबर आने लगी कि अन्ना की टीम राजनितिक विकल्प देने को तैयार है और आने वाले २०१४ के आम चुनाव में अच्छे और साफ़ सुथरी छवि के प्रत्यासियों को समर्थन देगी और उनका प्रचार करेगी अतः अब यह बिलकुल साफ़ हो गया है कि भले ही अन्ना राजनीती में आने से गुरेज करते हों पर उनकी टीम कि महती महत्वकांक्षा ही राजनीती में प्रवेश करना रहा है जो पहले से परिलक्षित होता रहा है भले ही किसी को दिखाई नहीं दिया हो परन्तु सभी प्रकार के आंदोलनों का आखिरी ठिकाना राजनीती ही होती है ऐसा माना जाता है ? आपको याद होगा कि स्वर्गीय कांशी राम ने भी दलित और पिछड़ों को जोड़ कर जातिगत संघठन के द्वारा अगडी जातियों के विरुद्ध खूब जम कर आन्दोलन किया था परन्तु उनका आखिरी निशाना राजनीती ही थी और कालांतर में उसी का उनको फल मिला जो आज माया वती के रूप में सबके सामने है ?

सवाल उठता है कि जब आपको लोकतंत्र में विश्वाश ही नहीं है, न तो सांसद पर और न ही संसद पर न कार्यपालिका पर न न्यायपालिका पर तो क्या आप जन क्रांति के लिए लोगो को तैयार कर रहे है और देश में कौन सी नयी व्यस्था लाना चाहते है आप जिस जनता का प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं यह भी जनता को बताना होगा क्योंकि कभी कभी ऐसा लगता है कि टीम अन्ना कुछ नहीं है केवल और केवल अरविन्द कजरीवाल ही अकेला व्यक्ति है जो इस आन्दोलन को चला रहा है क्योंकि यह अपने आप में स्वयं सिद्ध है जब स्वामी अग्निवेश ने आन्दोलन के समय किसी केंद्रीय मंत्री से फोन पर बात कि तो उन्हें टीम से निकाल दिया गया उसी कड़ी में किसी मीटिंग में मौलाना शमून काजमी ने फोन से कुछ रिकार्ड करना चाह उनको भी बहार का रास्ता दिखा दिया गया चूँकि अब उसी कड़ी में श्री अन्ना हजारे ने पूना में किसी गुप्त स्थान पर केंद्रीय कानून मंत्री श्री सलमान खुर्शीद से मुलाकात कि तो उन्हें बहार का रास्ता तो नहीं दिखाया गया है परन्तु अब उनको एक चौखटे के रूप में स्टेज पर स्थान जरूर दिया गया है क्योंकि शायद उनको टीम से निकालने कि हिम्मत किसी में नहीं है और फिर उनको निकालने के बाद बचेगा क्या ? ( नंगा नहायेगा क्या और निचोडेगा क्या ) ?

मेरे इस विचार से बहुत से लोग सहमत नहीं हो सकते और सवाल भी कर सकते है मेरा उत्तर केवल एक होगा वह यह कि लोक तंत्र में जनता के पास केवल अपनी समस्या आक्रोश को व्यक्त करने का एक ही रास्ता है प्रोटेस्ट/ धरना /आन्दोलन/अनशन / आमरण अनशन आदि आदि जिसके विरुद्ध सरकार भी पंगु हो जाती है लेकिन अगर हम अपने देश के भ्रष्ठाचार को समाप्त करने कि बात करें तो पायंगे कि यह इतना विकराल रूप धारण कर चूका है कि इसका निदान केवल और केवल सरकार के बस का नहीं है सरकार केवल इतना कर सकती है कि एक और कानून बना दे चाहे लोकपाल बना दे ? इस बात कि कोई गारंटी नहीं दे सकता कि भ्रष्टाचार सौ प्रतिशत समाप्त हो जायगा अन्ना ने स्वयं कहा है कि लोकपाल बनाने से ६० प्रतिशत तक भ्रष्ठाचार पर अंकुश लग सकता है तो इसका मतलब साफ़ है कि ४० प्रतिशत भ्रष्ठाचार तो फिर भी बाकी रहेगा ? इस लिए मेरा यह कहना है कि भारत देश इतना बड़ा है कि जहाँ एक ओर अभी भी देश कि ६० -७० प्रतिशत आबादी रोटी कपड़ा और मकान पाने के लिए जद्दोजहद में जीवन बिता देती है दूसरी ओर ३०-४० प्रतिशत लोग देश को बाँट कर खाने में बिता रहे है उनमे से भी लोवर मिडिल क्लास अपना स्तर बढ़ाने के लिए मिडिल क्लास थोडा और पाने के लिए और अपर क्लास और अधिक सम्पनता के यत्न करता नजर आता है और उसके लिए वह इस माया जाल में भ्रमित होकर कैसा भी भ्रष्ट आचरण करने को तैयार रहता है इस लिए मेरा मानना है कि भ्रष्ठाचार एक कोढ़ के सामान सामाजिक बिमारी है ! 06TH_ANNA_HAZARE_522121f-300x250 और इसका इलाज भी समाज को ही करना होगा और इसके लिए मैं श्री श्री अन्ना हजारे कि जितनी भी प्रसंसा करू वह कम है क्योंकि महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव रालेगन सिद्दी से उन्होंने जो सफर इस उत्कर्ष कार्य को करने के लिए आरम्भ किया था आज भी उसी कार्य के आगे बढा कर पुरे भारत के समाज को ही बदलने की जरूरत है न कि इस प्रकार के राजनितिक आन्दोलन / आन्दोलन का महत्त्व अपनी जगह कायम है जो कार्य सरकार को करने है वह सरकार से कराये जायं ?

इस लिए मुझे ऐसा लगता है कि श्री केजरीवाल कुछ दिग्भ्रमित से हो गए है क्योंकि अभी तो उनके public cause research foundation ने कोई रिपोर्ट प्रकाशित नहीं कि है केवल आंदोलनों के जरिये धन एकत्र किया है एक एन जी ओ से काम नहीं चला तो दूसरा इंडिया अगेंस्ट करप्सन बना डाला और अब तक शायद कोई और भी अस्तित्व में आ गया होगा – लेकिन एक बात सच है कि केजरीवाल कि भ्रष्ठाचार से लड़ने कि या केवल दिखावा करने कि क्षमता बहुत है तभी तो जैसे बिना हज के हाजी वैसे ही केजरीवाल बिना शहर के शहर काजी, और दिल्ली में ही अपना तम्बू लगा कर दोषियों पर दोषारोपण कर रहे है चाहे राष्ट्रपति हों या फिर प्रधान मंत्री हो या १४ मंत्री – देखिये क्या होता है क्या इन सब को सजा दिला पायंगे ????????????

आज २६ जुलाई को टीम अन्ना के अनशन का दूसरा दिन है और आज ही हमारे फौजियों द्वारा कारगिल युद्ध का समापन कर दिया गया था और आज हम उस बेवजह थोपे गए युद्ध की तेरहवीं बरसी भी मना रहे है पर दूसरी ओर जंतर मंतर पर कोई उत्साह नहीं दिख रहा है न तो आन्दोलन कर्ताओं में और न ही समर्थकों में कोई हलचल है इसी कारन से भीड़ भी बेहद कम है जब की आयोजकों द्वारा दावे किये गए थे की यह अनशन पहले वाले से भी व्यापक होगा – लेकिन साम होते होते अनशन कर्ताओं की दशा में ही नहीं हिम्मत भी जवाब दे गई और उन्हें डाक्टर की सलाह पर आराम करने के लिए पीछे बने रेस्ट रूप में लेटना पड़ा – इन बातों से एक बात तो साफ़ है टीम अन्ना के सदस्य ( श्री अन्ना को छोड़ कर ) कितना भी मजबूत होने का दावा करें उनमे न तो आत्म बल है और न मानसिक शक्ति ही बची जो न तो एक दिन की भूख सहन कर सके और न ही मौषम की मार गर्मी को झेल सके ?

यहाँ एक बात बहुत ही साफ़ हो गई है की भीड़ जुटाने का कौशल अन्ना की टीम को नहीं आता अन्ना के आन्दोलनों में अब तक जो भीड़ जुटती रही है उसमे सबसे बड़ा योगदान भारत के सबसे बड़े सांस्कृतिक संघठन आर एस एस का ही योगदान रहा करता था परन्तु टीम अन्ना की आर एस एस से दुरी बनाना और बेहूदी मांगो को लेकर आन्दोलन में नए नए प्रयोगों ने और राजनीती में प्रवेश की मंशा ने इस संघठन को आन्दोलन से दूर कर दिया है ? अब यह आन्दोलन कर्ताओं के विवेक पर है की वह अपने इस अनिश्चित कालीन आन्दोलन का समापन किस प्रकार से करते है क्योंकि सरकार की मंशा किसी भी प्रकार के समझौते की नहीं दिख रही है ?
एसपी सिंह, मेरठ

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