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यह तो होना ही था !!!!!

पाठक नामा -
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वैसे यह सब भारत वासियों का कर्त्तव्य है की स्वतंत्रता के बाद जितना भी भ्रष्टाचार शासन/सरकार/न्याय/सार्वजनिक जीवन या जहाँ कही भी हुआ है या वर्तमान में चलन में है उसकी समाप्ति के लिए या उसे मिटाने के लिए समस्त लोगो को आगे आना चाहिए या जो जैसे भी योग दान दे सके उस सहयोग करना चहिये, परन्तु यह ऐसा ही है जैसे कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव और पांडवों की सेना के बीच का युद्ध क्योंकि जो लोग भ्रष्टाचार में लिप्त है वह भी इस भारत माँ की ही संतान है और जो इसके शिकार है वह भी भारत माँ के सपूत हैं इस लिए युद्ध हो तो कैसे हो ? यही सबसे बड़ा प्रश्न है ?
सरकार/शासन//न्याय/सार्वजनिक जीवन का भ्रष्टाचार तो सभी को एक बड़े भूत के समान दिखाई भी देता है परन्तु जो भ्रष्टाचार शिक्षा के क्षेत्र में है जहाँ डाक्टर की पढ़ाई के लिए २५-३० लाख इंजिनियर के लिए १०-२० लाख यह तक की नर्सरी के दाखिले के १-५ लाख तक की भेंट करनी होगी यह किसी को दिखाई ही नहीं देता अगर दीखता है तो विकास की अंधी दौड़ में किसी को परवाह ही नहीं क्योंकि वह स्वयं या उसके बच्चे थोडा सा भी रुके तो पीछे रह जायंगे ?
चूँकि इस कलयुग में कृष्ण का पदार्पण असंभव ही है, फिर भी कोई कल्कि अवतार तो अवश्य ही आएगा क्योंकि हमारा काम बिना किसी अवतरित पुरुष के संभव ही नहीं है, अगर हम याद करे तो पायेंगे कि १९७४ के वर्ष में एक योगी सामान व्यक्ति श्री जय प्रकाश नारायण ने एक आवाज उठाई और लोग उससे जुड़ते गए जिसके परिणाम में आपात काल भी देखना पड़ा और लोगों को जेल की यात्रा भी करनी पड़ी पर उसका परिणाम भी सुखद ही हुआ सत्ता परिवर्तन से नया सवेरा हुआ और जो जेल यात्रा से बाहर आये उनके लिए सता के द्वार खुले मिले जिसका भरपूर उपयोग भानुमती के कुनबे के उन लोगो ने उठाया भी जो होना था हुआ भी क्योंकि सत्ता है ही महा ठगनी कहीं जानवरों का चारा खाया गया कहीं खाजाने को लूटा गया कहीं भूमि बेच कर पैसा बनाया गया जिसको जहाँ से मिला उसने खूब ही मजे किये और फिर भानुमती का कुनबा बिखर गया ? चूँकि देश प्रेम केवल सत्ता पाने तक ही हिलोरें मारता है सत्ता प्राप्त होने के बाद तो जमीर भी मर जाता है इस लिए सत्ता फिर घूम फिर कर उन्ही हाथों में आ गई जो आपात काल के दोषी थे ऐसा कैसे संभव होता है यह जनता पर निर्भर है जिसको वह चुनती है ?
चूँकि राजनितिक पार्टिया क्षेत्रीयता के रोग से इतनी ग्रसित है की वे अपने बूते कुछ कर नहीं सकती और राष्ट्रीय पार्टियों की इतनी औकात नहीं है की अकेले परिवर्तन की बयार बहा सके इसलिए , कहीं कोई योगी, कहीं कोई सन्यासी, कहीं कोई कलाकार, कोई नेता, कोई अभिनेता, कोई समाज सेवी, कोई सिविल सोसाइटी (अन्सिविलाइज), कोई सेवा निवृत अधिकारी यदा कदा आवाज भी उठाते है की देश में भ्रष्टाचार बहुत है और व्यस्था परिवर्तन का घोष करते है परन्तु इनमे से कुछ लोग , नदी के उसी उद्गम स्थल से नहा धोकर अवतरित हुए है जिसको भर्ष्टाचार की जननी कहा जाता है ?
आजकल हवा में एक शोर व्याप्त है कि मीडिया जिसको चाहे उसको एक दिन में ही जीरो से हीरो बना देता है जैसा की एक त्रिकाल दर्शी बाबा की निर्मल कृपा को टी वी चैनलों के द्वारा बांटा भी जा रहा है और परिणाम स्वरूप उसके खाते में रोजाना करोड़ों रुपया जमा हो रहा है ? इतना ही नहीं कुछ बाबाओं का तो अपना चैनल भी है और यदा कदा प्रोग्रामों को प्रायोजित भी करते है , ऐसा ही (अप्रैल से लेकर नवम्बर २०११) में दिल्ली से लेकर देश के विभिन्न भागों में तथा जंतर मंतर पर देखने को मिला जब एक योगी सामान व्यक्ति ने वहां बैठ कर अनशन किया और सरकार को हिला ही नहीं दिया धो कर निचोड़ भी दिया, अब यह कहना निरथर्क ही होगा की इसमें मीडिया का कितना सहयोग था, क्या इसमें मिडिया को भी कुछ धन मिला या नहीं इस बारे कुछ नहीं कह सकता लेकिन अनुमान अवश्य है ? आनन् फानन में एक सिविल सोसाइटी अस्तित्व में आई (इसको अन सिविल सोसाइटी या प्राइवेट लिमिटेड कंपनी कहना अधिक उचित समझता हूँ ) जिसके दो मनेजिंग डायरेक्टर है , कुछ नामजद डायरेक्टर है, कुछ स्वयंभू डायरेक्टर है, और कुछ अतिथि डायरेक्टर है ? इस कंपनी ने सीधे सादे योगी पुरुष को अनशन पर बैठा कर जैसा वातावरण बनाया शायद ऐसा वातावरण आजादी की लड़ाई में भी नहीं हुआ होगा ऐसा मेरा अनुमान है, जिसके परिणाम स्वरूप करोड़ों रुपया भी एकत्र किया जिसका आधे से अधिक केवल प्रचार पर ही व्यव् किया गया ? इसी से उत्साहित होकर एक बार फिर अगस्त २०११ में बाबा को फिर अनशन पर बैठा दिया जहाँ १३ दिन के उपवास के बाद उनको मृत्यु के द्वार तक भेजने का कार्य किया फिर देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई में अनशन पर बैठाया लेकिन वांछित परिणाम न मिलने पर दुसरे दिन ही अनशन समाप्त कर दिया ?
चूँकि यह कंपनी का खेल है इसलिए डायरेक्टर जैसा चाहते है वैसा ही करते जो इनको भाता नहीं है उसे दूर का रास्ता दिखा देते है एक भगवा धारी को बहार किया एक दाढ़ी को निकाल दिया जासूसी के आरोप में क्या यह लोग सरकार के विरुद्ध कोई अपराधिक साजिस करते है मीटिंग में जो यह गोपनीयता का नाटक कर रहे थे , लेकिन अब तो हद हो गई जब श्री अन्ना हजारे के स्वास्थ्य कारणों से डाक्टरों ने उन्हें अनशन करने से परहेज करने को कहा तो टीम को लगा की आन्दोलन हमारे हाथों चला न जाय क्योंकि दूसरी और योग गुरु अपनी ढपली बजाने को उतावले ही नजर आप रहे थे इस लिए आनान फानन में मूल मांग को एक किनारे करते हुए सरकार पर डाइरेक्ट अटैक करने के उद्देश्य से २५ जुलाई को जिस दिन महामहिम राष्ट्रपति को पद की सपथ दिलाई जानी थी उसी दिन जन्तार्मंतर पर उनके विरुद्ध आरोपण किया जा रहा था यही नहीं प्रधान मंत्री सहित १४ मंत्रियों को जेल भेजने की मांग भी की जारही थी ? ( मैं यह नहीं कहता की इनकी यह मांग गलत है क्योंकि लोकतंत्र में सब को अपनी बात कहने का हक़ है ) अब यह तो देश का बच्चा बच्चा जनता था की इनकी इन मांगो को सरकार कभी भी नहीं मान सकती थी लेकिन यह बर्चस्व की लाड़ाई है जिसमे अभी तो बाजी आन्ना की टीम के हाथ है ? लेकिन मेरी एक बात सच साबित हुई है की इस असंतुष्ट सेवा निवृत बुरोक्रेट्स ग्रुप्स का उद्देश्य ही राजनीती में आना रह है ( अन्ना को छोड़ कर ) और अपने आपको राजनीती में स्थापित करना ? जो आज पूरा होता हुआ दिख रहा है ? अब केवल राजनितिक पार्टी का नाम भर घोषित करना बाकी है मेरा सुझाव है पार्टी का नाम “भारतीय जन पार्टी (अन्ना )”

लेकिन यहाँ मैं श्री अन्ना हजारे जी को बहुत बधाई देना चाहूँगा की उन्होंने देश को एक संभावित गृह उदध की विभीषिका से बचाने का कार्य किया और आन्दोलन को अपने हाथ में लेकर अपने नौसिखिये नौजवानों को की शर्मिंदा होने से बचा लिया अन्यथा उनकी मांगे तो ऐसे थी की कोई बच्चा कहे की मुझे चादं ही ला दो ? लेकिन देर से ही सही एक अच्छा स्वागतयोग्य निर्णय ?

अभी एक और घोषणा होनी बाकी है योग गुरु भी काले धन के विरुद्ध अनशन के दौरान ९ अगस्त के बाद किसी भी शुभ दिन अपनी राजनितिक पार्टी की घोषणा कर देंगे और उनकी पार्टी का नाम भी कुछ ऐसा ही होगा जैसे ” भारत स्वाभिमान जन पार्टी “
जैसा की आन्दोलन का परिणाम होता है राजनीती ठौर वही हुआ भी चाहे गाँधी जी का आन्दोलन हो जब के गांधी जी कभी भी कांग्रेस के चवन्नी छाप मेंबर नहीं रहे परन्तु बंटवारे के बाद कांग्रेस के दोनों हाथो में लड्डू आ गए क्योंकि कांग्रेस गाँधी का हाथ थामे रही थी इसी प्रकार से जय प्रकाश नारायण का आन्दोलन जिसके परिणाम स्वरूप जनता पार्टी का उदय हुआ लेकिन आपसी कलह और स्थायित्त्व और ठोस विकल्प के आभाव में जो होना था वही हुआ – कमोबेस यही हाल भारतीय जनता पार्टी का भी हुआ की २८ पार्टियों के साथ कभी भी ठोस विकल्प नहीं बन पाई और सत्ताच्युत होना पड़ा ? यही बात सब को समझनी चाहिए की कांग्रेस का ठोस विकल्प कौन बन सकता है क्योंकि जैसा कहा जाता है देश में एक बार आपातकाल लगाने के बाद कांग्रेस को दुबारा कभी भी सत्ता में नहीं आने देना चाहिए था लेकिन ठोस विकल्प के आभाव में वह फिर सत्ता पर काबिज है आखिर इसका क्या कारन है यह राजनितिक के पंडितों को मनन करना चाहिए ? नहीं तो फिर इन आन्दोलनों को राजनितिक अवतार लेने के बाद भी मरने से कोई नहीं बचा सकता है ?

मैं आपने उन सभी ब्लागर साथियों को यह कहना चाहता हूँ जिन्होंने ने मेरे लेखों पर कमेन्ट करते हुए बहुत ही कठोर शब्दों का उपयोग किया उनसे यह कहना है की वह लोग मेरे पुराने सभी लेख जो अन्ना हजारे और रामदेव पर लिखे है दुबारा से पढ़े और फिर मेरी कही हुई बातों को आज होने वाले परिणामो से तुलना करे क्योंकि मैंने अपने लेख समर्थन या विरोध में नहीं लिखे केवल अपने अनुभवों का विश्लेषण किया था जो आज सिद्ध हो गया है ? और टीम अन्ना ने तो संसद की सर्वोच्चता को स्वीकार कर लिया है अब केवल बाबा राम देव बचते है वह भी शीघ्र ही जब अपनी राजनितिक पार्टी की घोषणा करेंगे तो वह भी संसद की सर्वोच्चता को स्वीकार करते नजर आयंगे ? लेकिन आज जनता जिसको एक आस जगी थी की कोई गैर राजनितिक संघठन उनके हित के लिए बिना हथियार उठाये लड़ने को तैयार है तो उनके कष्टों का निवारण अवश्य होगा आज उनके लिए अन्धकार के सिवाय कुछ नहीं है इन दो वर्षो में जनता खूब ठगी गई इन दो आंदोलनों के द्वारा – वह दो वर्ष पहले जहाँ थी आज उसी चौराहे पर भटकने को खडी है ?

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