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जंतर मंतर, दिल्ली के हृदय, कनॉट प्लेस में स्थित है इसका निर्माण सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1724 में करवाया था। यह इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है। जय सिंह ने ऐसी वेधशालाओं का निर्माण जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी किया था। दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है। मोहम्मद शाह के शासन काल में हिन्दु और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थित को लेकिर बहस छिड़ गई थी। इसे खत्म करने के लिए सवाई जय सिंह ने जंतर-मंतर का निर्माण करवाया। ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं। सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से वक्त और ग्रहों की स्थिति की जानकारी देता है। मिस्र यंत्र वर्ष के सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन को नाप सकता है। राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है
यह एक वृहत आकार की सौर घड़ी है
राजा जयसिंह द्वितीय बहुत छोटी आयु से गणित में बहुत ही अधिक रूचि रखते थे। उनकी औपचारिक पढ़ाई ११ वर्ष की आयु में छूट गयी क्योंकि उनकी पिताजी की मृत्यु के बाद उन्हें ही राजगद्दी संभालनी पड़ी थी। २५जनवरी, १७०० में गद्दी संभालने के बाद भी उन्होंने अपना अध्ययन नहीं छोडा। उन्होंने बहुत खगोल विज्ञानं और ज्योतिष का भी गहरा अध्ययन किया। उन्होंने अपने कार्यकाल में बहुत से खगोल विज्ञान से सम्बंधित यंत्र एवम पुस्तकें भी एकत्र कीं। उन्होंने प्रमुख खगोलशास्त्रियों को विचार हेतु एक जगह एकत्र भी किया। हिन्दू ,इस्लामिक और यूरोपीय खगोलशास्त्री सभी ने उनके इस महान कार्य में अपना बराबर योगदान दिया। अपने शासन काल में सन् १७२७ में,उन्होंने एक दल खगोलशास्त्र से सम्बंधित और जानकारियां और तथ्य तलाशने के लिए भारत से यूरोप भेजा था। वह दल कुछ किताबें,दस्तावेज,और यंत्र ही ले कर लौटा। न्यूटन,गालीलेओ,कोपरनिकस,और केप्लेर के कार्यों के बारे में और उनकी किताबें लाने में यह दल असमर्थ रहा।
यंत्रों की सूची
जंतर-मंतर के प्रमुख यंत्रों में सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र,मिस्र यंत्र, आदि प्रमुख हैं, जिनका प्रयोग सूर्य तथा अन्य खगोलीय पिंडों की स्थिति तथा गति के अध्ययन में किया जाता है। जंतर-मंतर के प्रमुख यंत्रों में सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र,मिस्र यंत्र, आदि प्रमुख हैं, जिनका प्रयोग सूर्य तथा अन्य खगोलीय पिंडों की स्थिति तथा गति के अध्ययन में किया जाता है। जो खगोल यंत्र राजा जयसिंह द्वारा बनवाये गए थ, उनकी सूची इस प्रकार से है:
1. सम्राट यन्त्र
2. सस्थाम्सा
3. दक्सिनोत्तारा भित्ति यंत्र
4. जय प्रकासा और कपाला
5. नदिवालय
6. दिगाम्सा यंत्र
7. राम यंत्र
8. रसिवालाया
राजा जय सिंह तथा उनके राजज्योतिषी पं। जगन्नाथ ने इसी विषय पर ‘यंत्र प्रकार’ तथा ‘सम्राट सिद्धांत’ नामक ग्रंथ लिखे।
५४ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु के बाद देश में यह वेधशालाएं बाद में बनने वाले तारामंडलों के लिए प्रेरणा और जानकारी का स्त्रोत रही हैं।
जब से हमने होश संभाला था तब से ऐसा देखा की देश के जनता सरकार को अपनी परेशानियों को दर्शाने के लिए पूरे देश से यहाँ तक आदिवाशी क्षेत्रों से भी आकर एतिहासिक इंडिया गेट के दोनों ओर का जो क्षेत्र है जिसको वोट कल्ब कहते है जो साऊथ और नोर्थ ब्लाक के प्रशासनिक भवनों के साथ लगा हुआ है और वहां से संसद भवन और राष्ट्रपति भवन तक अपनी आवाज पहुचाने का आंदोलनों के रूप में वोट कल्ब का इस्तेमाल करती थी ? परन्तु ऐसा न जाने क्या हुआ की सरकार ने किन्ही कारणों से जनता को वहां एकत्र होने और मीटिंग या आन्दोलन करने पर प्रतिबंध लगा दिया है /
अब उसके स्थान पर दिल्ली के दिल कनाट प्लेस के साथ एक चौराहे पर स्थित जंतर मंतर पर को धरना प्रदर्शन और यहाँ तक की आमरण अनशन के लिए स्थायी अखाड़े के रूप से जनता के लिए निश्चित कर दिया है जहाँ से जनता आपनी राजनितिक/सामाजिक/ओद्धोगिक/ बिमारियों को सरकार को बताती है और फिर सरकार ग्रहों की दिशा और चाल के अनुसार उनका निदान करती है जैसा की हाल के आन्दोलन धरने और आमरण अनशन के दौरान हुआ लगता है सारकार ने सभी ग्रहों को अपने अनुकूल पाकर आमरण अनशन के द्वारा बलिदान देने वालों की ललकार को ऐसे अनसुना कर दिया जैसे की जंतर मंतर पर आठ दिन तक कुछ हुआ ही नहीं शायद जयपुर के राजा सवाई जय सिंह के द्वारा बनाया गया यंत्र जो की ग्रहों की दिशा दशा और समय को दर्शाता था कुछ भ्रमित और भ्रष्ट हो गया है जो ग्रहों की दशा के स्थान पर जनता और सरकार की दिशा और दशा की भविष्य वाणियाँ करने का अखाड़ा बन गया है / फिर तो यह जंतर – मंतर (जनता का जंतर – सरकार का मंतर ) रिसर्च के स्कालरों के लिए एक सब्जेक्ट हो सकता है?
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