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राजनैतिक मैदान में टीम अन्ना – पूर्वनिश्चित पैंतरा या भ्रष्टाचार समाप्ति की तरफ अगला कदम ?– “Jagran Junction Forum”

पाठक नामा -
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नोट::: आदरणीय पाठक एवं ब्लागर बंधुओं यह पोस्ट मैं जागरण मंच द्वारा “Jagran Junction Forum” इसी विषय पर आमंत्रण के अंतर्गत लिख रहा हूँ कृपया मेरे विचार और विश्लेषण उसी सन्दर्भ में ले / धन्यवाद.

 

बहुत हो चुका टीम अण्णा टीम अण्णा न तो वास्तिविक रूप पहले ही टीम अण्णा थी और न ही आज यानि २ अगस्त २०१२ के बाद तो टीम अण्णा का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है फिर टीम अन्ना का क्या बचा ? ५ अप्रैल २०११ को जब श्री अण्णा हजारे को जो वास्तिविक रूप में एक साधू के ही सामान व्यक्तित्व के व्यक्ति है जो अपने जीवन काल में ही उस गावं के पूजनीय हो गए हैं जहाँ उन्होंने ने समाज को बदलने के उत्कर्ष कार्यों की श्रंखला सी बना डाली है, और वैसे भी अण्णा को यह नाम उनके अपने गाँव के लोगो का ही दिया हुआ नाम है उनका वास्तिविक नाम तो किशन राव बाबु राव हजारे ही है लोग प्यार और आदर से उन्हें अण्णा कहते है! इस लिए इस देश में अण्णा के द्वारा( टीम अण्णा नहीं ) आरम्भ किया गया आन्दोलन अण्णा के जीविन काल में तो कभी समाप्त नहीं हो सकता यह बात और है की आगे इसको कौन चलाएगा यह समय तय करेगा ?


भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने 2 अगस्त को जंतर मंतर पर जब राजनीति में कूदने की बात कही तो भारतीय राजनीति सहित पूरे देश में हड़कंप मच गया। किसी ने अन्ना हजारे के इस निर्णय को सही करार दिया तो किसी ने आंदोलन के लिए इसे आत्मघाती बताया। वहीँ दूसरी ओर उन कार्यकर्ताओं को तो एक छ्ण को तो शायद विश्वाश ही नहीं हुआ होगा की अण्णा ने क्या कह दिया, लेकिन अण्णा के पास इसके अतिरिक्त कोई और रास्ता बचा ही नहीं था क्योंकि चेलों ने गुरु की प्रतिष्ठा को हो दावं पर लगा दिया था (अपनी मांगों का पिटारा खोल कर जो शायद वर्तमान तो क्या आगे आने वाली सरकारें भी नहीं स्वीकार करने की स्तिथि में नहीं हो सकती ) इसी लिए अण्णा ने एक महान परम्परा को कायम रखते हुए स्वयं अपने आप को झुकाते हुए सरकार और आन्दोलन कारियों दोनों के जीवन मरण के प्रशन को ही विराम लगा कर उचित ही किया ? टीम आन्ना अपने फैसले को सही बताते हुए टीम के वरिष्ठ सदस्य और देश के पूर्व विधि मंत्री शांति भूषण कहते हैं जब सरकार जनता की अपेक्षा पर खरी न उतरे और जन दबाव को भी न माने तो राजनीतिक विकल्प देने के अलावा कोई चारा नहीं है यह कहने से पहले श्री शांति भूषण शायद यह भूल गए की वह खुद ही भ्रष्ट आचरण के जिम्मेदार है नोयडा में १० हजार वर्ग गज जमीन सस्ते दामों में यह यूँ कहे की प्रदेश की मुखिया के विरुद्ध मुकद्दमा लड़ने के कारण उपकृत किये गए और इलाहाबाद में स्टंप चोरी में एक करोड़ चौतीस लाख का जुर्माना लगा क्या यह इमानदारी का सबूत है ?। इसके अलावा समाजशास्त्रीय और राजनैतिक विचारधाराओं पर समग्र रूप से काम करने वाले लोगों का अभिमत है कि अण्णा हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ त्याग, समर्पण और नैष्ठिक कर्तव्यों की जो मिसाल कायम की है वह लोगों के दिलों में कई सालों याद रखी जाएगी।

लेकिन टीम अण्णा के सदस्यों ख़ास कर के केजरीवाल और मनीष का व्यहार केवल यह दर्शाता है की जैसे वह किसी कंपनी के डायरेक्टर है और सब कार्य उनके हिसाब से चलना चाहिए शायद यह ऐसा ही था जैसे किसी कंपनी को प्रचार का ठेका मिला है जो जनता को एक हद तक केवल जाग्रत/जागरूक करने तक का ही था इस लिए अगर आप देखे की टीम की ओर से ऐसी मांगे रखी गई जिसका पूरा होना असंभव ही था ?

वहीं टीम अण्णा के राजनीति में आने के फैसले का विरोध करने वाले लोग मानते है कि टीम अन्ना की सोच दोहरे मापदंड पर चल रही है। एक तरफ टीम अण्णा कहती है कि वह भ्रष्ट राजनीतिक पार्टियों के विरुद्ध लोगों को जागरुक करेगी वहीं दूसरी तरफ वह खुद ही उस भ्रष्ट राजनीति का हिस्सा बनने जा रही है। टीम अण्णा की सोच पहले दिन से ही राजनीति से प्रेरित थी। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका आंदोलन एक ढोंग था जिसे जनता पूरी तरह से समझ चुकी है। अण्णा आंदोलन का समर्थन करने वाले इस फैसले से नाखुश बताए जा रहे हैं और टीम अन्ना को इस पर लोग बारा विचार करने की बात भी कर रहे हैं।
उपरोक्त चर्चा के बाद इस मसले से जुड़े निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने आते हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना बहुत जरूरी है, जैसे:

1. टीम अण्णा का राजनीति में प्रवेश आत्मघाती तो नहीं? :यूँ तो किसी को भी राजनीती में आने और चुनाव लड़ने में किसी भी प्रकार की अनैतिकता नहीं है लेकिन जहाँ श्री अण्णा हजारे की आंतरिक इच्छा राजनीती से दुराव ही थी और अभी भी है लेकिन बाकी के सदस्यों का अभिमत शायद इसके विपरीत अर्थात उनकी आंतरिक लक्ष्य राजनितिक शक्ति प्राप्त करना ही था जो उनके कार्यकलापों से परिलक्षित भी होता है (जैसे धन संघ्रह ) जब आप अपने गुरु/मास्टर/आदर्श की शिक्षा के विरुद्ध कोई कार्य करेंगे तो क्या आप सफल होंगे इसलिए अब इसको आत्मघाती कदम के अतिरिक्त क्या कहा जा सकता है ?

2. क्या टीम अन्ना का राजनीति में आने का फैसला देश की तकदीर बदलेगा? : भारतीय राजनीती में जब भी कोई नई पार्टी बनती है या कोई व्यक्तिगत तौर पर इस में शामिल होता है तो यह तो निश्चित ही है की उसका वोट बैंक भी उसके साथ आकर्षित होगा तो राजनीती में भूचाल आना तो स्वाभाविक ही है लेकिन इससे देश की तकदीर बदलेगी ऐसा शायद संभव ही नहीं हो सकता क्योंकि हमारे पडोसी देश पकिस्तान में इसी प्रकार से एक आन्दोलन प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी ने वहां की राजनीती में जब अपनी पार्टी बना कर प्रवेश किया तो उन्हें जन समर्थन तो अथाह मिला लेकिन वो समर्थन वोट में नहीं बदल सका ?
3. राजनीति में स्वच्छ चरित्र वाले व्यक्तियों का प्रवेश होना चाहिए किंतु टीम अन्ना स्वयं स्वच्छ चरित्र की परिभाषा पर कितनी खरी उतरती है? :

अब अगर टीम अण्णा के किसी व्यक्ति के स्वच्छ चरित्र की बात करेंगे तो शायद कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगेगा लेकिन उनका जैसा भी चरित्र है राजनीती में उसका कोई मोल नहीं है और न ही कोई बाधा है लेकिन जब टीम के लोगों को संसद ही समस्या की जड़ लगती है तो फिर उनके प्रवेश के बाद कैसी लगेगी संसद तो यह बात तो स्वयं टीम ही बता सकती है ?

4. 2014 को देखते हुए टीम अन्ना के राजनीति में प्रवेश करने से कांग्रेस और भाजपा के मजबूत विकल्प की कितनी संभावना है? : हाँ यह बात निश्चित है कि अगर टीम स्वयं ही चुनाव लडती है तो दोनों ही दलों के लिए चिंता जरूर पैदा करेगी लेकिन साथ ही विकल्प तो दूर शायद सशक्त विपक्ष भी न बन सकेगी टीम टीम में लगभग १५-२० हार्ड कोर कार्यकर्त्ता जो इस आन्दोलन से टी वी का चेहरा बन गए है उनकी संख्या गिनती की है इसलिए अगर टीम ने बहुत ही जोर लगाया तो इतना अवश्य हो सकता है १०-१५ लोग चुन कर आ भी जायं तो उससे यह अवश्य होगा की अगर बीजेपी की सरकार बनती है तो जिस प्रकार महाराष्ट्र के शरद पवार ने ७ सदस्यों के बल पर यु पी ऐ-२ में अपनी पार्टी के कोटे से दो केबिनेट मंत्री और कई राज्य मंत्री बना लिए इससे अधिक कुछ नहीं हो सकता और अगर किसी प्रकार से यु पी ऐ-२ सत्ता में आया (जिसकी संभावना नहीं है ) तो विपक्ष में बैठने के अतिरिक्त और क्या हो सकता है टीम अण्णा विकल्प का पर्याय नहीं बन सकती एसा मेरा मत है ?

साथ ही जब यह ब्लाग लिख रहा हूँ उसी समय बाबा राम देव भी राम लीला मैदान से हुंकार भरते नजर आ रहे है और आन्दोलन आरम्भ होने से पहले ही विवादों में आ गया क्योंकि मंच और पंडाल में चारो ओर जो पोस्टर और बैनर लगे थे उसमे बाबा राम देव के सहयोगी बल कृषण जो अब फर्जी सर्टिफिकेट से पास पोर्ट बनवाने के आरोप में सरकारी मेहमान बने हुए है उनका बहुत भव्य चेहरा देश के उन शहीदों और महापुरुषों के साथ दर्शा कर महिमा मंडित करने का असफल प्रयास किया गया लेकिन जब मीडिया ने इस खबर को जोर शोर से विरोध दर्ज कराया तो आनन् फानन में बाबा राम देव के मंच पर बैठने से पहले ही सभी बैनर और पोस्टर हटा दिया गए / अब यह तो समय ही बताएगा की कौन विकल्प बनता कौन नहीं वैसे राजनीती संभावनाओं का ही खेल है हर कोई अपनी संभावना तलाश करने के लिए स्वतंत्र है !!!!! एस.पी सिंह, मेरठ

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