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” लोकतंत्र के संरक्षक या अन्धो की जमात “

पाठक नामा -
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यह तो हम बचपन से ही देख रहे है कि जब से देश आजाद हुआ है हमारे देश के राजनैतिक नेतृत्त्व का दिवाला हर वर्ष ही नहीं हर रोज निकल रहा है और अपने इन्ही गुणों के आधार पर देश को भी दिवालिये पन कि ओर घसीट रहे है ? देश का राजनैतिक नेतृत्त्व चाहे किसी भी प्रदेश या पार्टी का हो सभी पार्टियाँ बहरी/ गूंगी /लंगड़ी /संवेदन हीन तो पहले से ही थी अब नेत्र हीन यानि कि अंधी भी हो गई है क्योंकि इन लोगों को केवल और केवल जिस प्रकार कोई अँधा केवल अनुभव के आधार पर किसी वास्तु को टटोल का पहचानता है उसी प्रकार इन पार्टियों को देश की जनता केवल वोट बैंक के रूप में ही दिखती है चाहे किसी भी प्रकार की समस्या हो उसका समाधान करने के स्थान पर केवल आरोप प्रत्यारोप ही लगाना इनका काम है ? या फिर संसद और विधान सभाओं में हंगामा करके केवल मीडिया के द्वारा अपनी दबंगई का प्रदर्शन करना एक मात्र उद्देश्य रह गया है ?

देश में किसी भी प्रकार का जन – आंदोलन हो सरकारें तब तक इन्तजार करतीं हैं जब तक आन्दोलन हिंसक न हो जाय जिसको कारण बना कर पुलिस कार्यवाही करने में आसानी हो जाती है या फिर आन्दोलन-कारी स्वय ही थक-हार कर आन्दोलन समाप्त कर दें ? लेकिन सरकारें सोती रहती है या अपने अपने वोट बैंक की सुरक्षा या उसकी बढ़ोतरी का ही उपाय करने में ही अपनी भलाई समझती हैं इसके अतिरिक्त उनकी समझ में कुछ आता ही नहीं / वहीँ असम की घटना के विरोध में मुंबई के आजाद मैदान में मुस्लिमों को विरोध प्रदर्शन की इजाजत देकर भयंकर गलती की गई और उपद्रव करने वालों को बहुत देर तक पकड़ भी नहीं सकी राज्य सरकार ? सरकार के पास कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख़ुफ़िया तंत्र है लेकिन वह भी अपने आकाओं के सामान सोते ही रहते है चाहे कोई आतंकवादी सड़यंत्र रच रहे हो लेकिन हमारे ख़ुफ़िया तंत्र उनका सुराग तो अलग घटना हो जाने पर भी नहीं पकड़ पाते इसी प्रकार देश में कोई सामाजिक सड़यंत्र हो रहा हो हमारा तंत्र बेखबर ही रहता है या फिर उन्हें इससे कोई मतलब नहीं अभी असम की घटना से पहले कुछ लोग (एक ख़ास समुदाय के ) टोलियाँ बना कर प्रत्येक गाव कसबे यहं तक की शहर के मोहल्ले और कालोनियों में धर्म प्रचार की आड़ में क्या कर रहे थे यह किसी भी ख़ुफ़िया तंत्र को भनक नहीं लगी यही बात सोशल साइटों के विषय में कही जा रही है की इन साइटों पर समाज में वैमनस्य बढाने की साजिश काफी दिनों पहले से चल रही है लेकिन न तो प्रादेशिक सरकारे और न ही केंद्र की सरकार ने कोई भी सुरक्षात्मक कदम उठाने की जुर्रत की आखिर इसका क्या कारण है कारण केवल एक ही है नाकारा पन और वोट बैंक की सुरक्षा? यही कारण है की नार्थ इस्ट के सीधे सादे लोग जो अपने घरों से दूर देश के विभिन्न महानगरों में रह कर शिक्षा ग्रहण कर रहे है या वही पर नौकरी कर रहे है उनको विभिन माध्यमों से डराया धमकाया गया जिसके कारण से उन लोगों के मन असुरक्षा की भावना बस गई और वह अपने प्रदेश को वापस जाने के लिए मजबूर हो गए? आखिर यह राजनैतिक अंधे अपनी रोटियां सेकने के लिए कब तक जनता को बेवकूफ बनाते रहेगें और देश और विभिन्न प्रदेशों को कब तक प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल करते रहेंगे, कभी धार्मिक उन्माद के रूप में पत्थर की मूर्तियों को दूध पिला कर कभी चाँद में शिर्डी के साईं बाबा की आकृति कभी होना बता कर अब तो हद ही हो गई जब क़ानून को ही धता बता कर असम में ख़ास मजहब के विदेशी/बाहरी व्यक्तियों के साथ दुर्व्यहार ही नहीं हत्याएं भी की गई जिसकी परिणिति में नार्थ इस्ट के हजारों होनहार बच्चों और नौजवानों के परिवारों को एस एम् एस के द्वारा धमकी दी गई की २० अगस्त तक अपने बच्चों को वापस बुला लो नहीं तो वह जहाँ भी होंगे उन्हें मार दिया जायगा और फिर जो हो रहा है वह सबके सामने है पूने/हैदराबाद/बंगलौर/बड़ोदरा/मुंबई में रह कर पढ़ाई कर रहे या नौकरी कर रहे बच्चे /नौजवान/ और महिलाए अपने क्षेत्र नार्थ इस्ट पलायन को मजबूर हो गए हैं और नेतागण अपनी रोटिय सेंकने में मस्त है टी वी मीडिया पर उन्ही अंधो के प्रतिनिधि समस्या के उपाय सुझाने के स्थान पर एक दुसरे पर ही आरोप प्रत्यारोप लगाने में ही मशगूल हैं और उनको सबसे बड़ी चिंता यही है की उनका वोट बैंक सुरिक्षित रहे ? आखिर लोकतंत्र के संरक्षकों इन अंधों को कब बुद्धि आएगी और इनकी आँखों की रोशनी लौटेगी भी या नहीं ? क्योंकि नार्थ इस्ट के पीड़ित लोग जिस प्रकार रेलवे स्टेशनों पर उमड़ रहे है अपने घर जाने के लिए न खाना है और न पानी रात में नौ बजे जाने वाली ट्रेन के लिए सुबह से आकर स्टेशन पर बैठें जाते है किसी को भी इनके मानव अधिकारों की चिंता नहीं है

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