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“आ बैल मुझे मार”
अब अगर कोई व्यक्ति कीचड़ के गड्ढे में कंकड़ फैंके तो उसके कपड़ों पर छींटे पड़ना तो लाजिमी है लेकिन अगर कोई व्यक्ति कीचड़ के तालाब में ही बहुत बड़े बड़े पत्थर ही फैंकने लगे तो कपडे तो अलग वह स्वयं भी कीचड़ में फंस सकता है फिर तो यह ऐसे ही हुआ की “आ बैल मुझे मार” इसी लिए भले लोग लड़ाई झगडा नहीं करते क्योंकि उन्हें मालूम है लड़ाई झगडे में कपडे फटना जरूरी है इसी कारण जब दो पहलवान कुश्ती लड़ते हैं तो केवल एक लंगोटी ही बाँध कर अखाड़े उतरते है जिसका सीधा मतलब है उन्हें कपडे फटने का भय रहता है (अब यह बात अलग है की वह लंगोटी भी क्यों बाँधते है) क्योंकि अभी हमने देखा की लन्दन ओलम्पिक में हमारे एक पहलवान ने अपने विरोधी की लंगोटी ही पकड़ कर “धोबी पाट दांव” से चित ही नहीं किया बल्कि उसे अपने कंधे के ऊपर भी उठा लिया था / इस लिए अगर लड़ाई झगड़े में लंगोटी न भी पहनी जाय तो जीतने के बहुत अवसर है और यही कारण है की हमारे प्रदेश के भूतपूर्व पहलवान मुख्य मंत्री लखनऊ से दिल्ली आकर कभी भी दिल्ली की गद्दी नहीं जीत सके कारण वह हमेशा पूरी लम्बाई की धोती पहनते है और उसे ही संभालने में कभी कभी “पल्टी दांव” भी मार देते है की सामने वाला चकित हो जाता है जैसे २००९ में वामपंथियों को एक ही दांव में चित कर दिया था यह बात अलग है की उनको इस पल्टी दांव मरने से सरकार से क्या क्या लाभ मिले थे फिर अभी २०१२ में भोली भाली ममता की मूरत को पलट दांव से राष्ट्रपति के चुनाव में अकेला छोड़ दिया था लेकिन अगर देखा जय तो वर्तमान सरकार भी उन्ही के रहमों-करम पर चल रही है ?
इसलिए अगर कोई पी टी टीचर ( स्वयंभू साधू सन्यासी) योग गुरु बन कर , योग के जनक आदि गुरु पतंजलि को ही धता बता दे और फिर व्यापारी का चोला ओढ़ कर विदेशों में जमा काले धन की दुहाई देकर इन्द्रप्रस्थ के रामलीला मैदान से कीचड़ की पोटली बांध बांध कर सौ सरों वाली सरकार पर फैंकना शुरू करे तो आप अंदाजा लगा सकते है कि कितना कीचड़ स्वयं उनके ऊपर गिरेगा क्योंकि उन्होंने तो लंगोटी के स्थान पर धोती तो पहनी ही है ऊपर से पूरा तन भी ढक रखा था अब अगर उनसे कोई यह पूंछे कि इस रामलीला मैदान में बुराई के प्रतीक दस सिरों वाले रावण को हर वर्ष जलाया जाता है लेकिन बुराई है कि इस देश का पीछा ही नहीं छोडती तो क्यों आप सौ सरों वाली सरकार पर केवल कीचड़ उछाल कर आप अपनी भी ऐसी तैसी क्यों करा रहे हो कभी एन्फोर्समेंट डिरेक्टर के द्वारा कभी स्वास्थ्य विभाग के द्वारा कभी सर्विस टेक्स विभाग के द्वारा कभी आयकर विभाग के द्वारा और तो और अपने बाल सखा को ही जेल में सडवा दिया, हमारे एक व्यापारी मित्र बताते है कि उन्हें व्यापार चलाने में सरकार के बत्तीस विभागों को झेलना पड़ता है तो भैय्या अगर एक छोटी सी जबान जब बत्तीस दांतों के बीच में रहकर सुरक्षित रह सकती है लेकिन जब भी जरा सी गलती करती है तो कट भी जाती है तो प्यारे भैय्या जी आपको भी व्यापारी होने के नाते कुछ सीख तो लेनी ही चाहिए थी , अगर सरकार को काले धन के मुद्दे पर घेरना ही था तो पहले अपना घर तो साफ़ कर लेते जहाँ बहुत से धर्मात्माओं का कुछ काला वाला धन तो अवश्य ही लगा है और यही कारण है कि जून २०११ में जब आपने इसी मैदान में अष्टांग योग करना चाहा तो सरकार ने भी पलक पांवड़े ही बिछा दिए थे परन्तु ऐसा क्या था की आपने सरकार से समझौता नहीं किया ( शायद उसके गर्भ में भी वही काला धन ही था ) और इसी कारण से सरकार ने भी धकिया ही नहीं बल्कि आधी रात में डेरा तम्बू सब उखाड़ दिया था तो फिर अष्टांग योग के स्थान छलांग योग करना पड़ा था और फिर जान के भी लाले भी पड़ गए थे जिस कारण किसी महिला के वस्त्रो में लीला करनी पड़ी थी परन्तु इस बार अगस्त २०१२ में ऐसा कुछ नहीं हुआ इस बार तो गुरु जी स्वयं ही राजनैतिक गुरुओं के बनाये जाल में फंसे ही नहीं बल्कि उसी राजनैतिक बिरादरी की जुंटा के सामने दंडवत होकर अपनी पार्टी बनाने की घोषणा की बलि गुरु दक्षिणा के रूप में देकर किसी प्रकार अपनी लाज बचाई वह भी बिना किसी आश्वासन के ही रामलीला मैदान से डेरा उठाकर ५ घंटे तक इन्द्रप्रस्थ की सड़कों पर जाम लगा कर शक्ति प्रदर्शन करने के पश्चात आखिर में संविधान के निर्माता के नाम से बने एक क्रीडा स्थल पर जाकर अपने ताप को शांत किया और फिर उड़ लिए पतित पावनी गंगा में स्नान करने के लिए अब यह बात अलग है की बेचारी पतित पावनी गंगा उनके संताप को ( पाप नहीं ) कितना शांत करती है या बढ़ाती है ?
वहीँ दूसरी ओर इन्द्रप्रस्थ में प्रसिद्ध अंग्रेज आर्किटेक्ट लुटियंस द्वारा बनाए गए स्मारक यानि कि हमारे लोकतंत्र के प्रतीक संसद भवन को ही कुछ अति बुद्धिमान लोगो ने अखाड़ा बना लिया है यहाँ तक तो ठीक लेकिन भैय्ये ये कहाँ तक ठीक है कि आप पूरे कपडे पहन कर अखाड़े में पहलवानी करो अगर पहलवानी ही करनी है तो इन्द्रप्रस्थ में बहुत से अखाड़े (स्टेडियम) हैं वहां जाकर आप पूरी मस्ती से जोर कर सकते हो और अपने मन की आग को शांत कर सकते हो क्योंकि लोकतंत्र का प्रतीक संसद भवन आपके बाप की जागीर तो है नहीं जो इसको अखाड़ा बना रहे हो , इस पर जो पैसा खर्च होता है वह इस देश की जनता द्वारा दिया जाता है, वैसे भी चोर चोर मौसेरे भाई वाली कहावत सही है आपके छै भाई भी इस दलदल में फंसे है (छै राज्य सरकारें इस कोयले की दलाली में अपने कपडे पहले ही काले कर चुकी हैं ) इस लिए जहाँ तक अंधी बहरी संवेदन हीन सरकार को उखाड़ने की बात है वह आपके बस की बात नहीं है उसे भी जनता ही समय आने पर अपने आप ही उखाड़ कर फैंक देगी और जनता की अदालत की यही सजा उचित भी हो सकती है ? क्योंकि जनता की अदालत से अब कोई नहीं बच सकता भले ही जनता को जगाने वाले लम्बी चादर ओढ कर सो भी जायं तो भी अब इस जनक्रांति को कोई नही रोक सकता — धन्यवाद जयहिंद ?
एस पी सिंह, मेरठ
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