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32/97 Vs गोधरा/नरोडा पाटिया

पाठक नामा -
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माना कि वर्ष १९८४ में स्वर्गीय इंदिरा गाँधी कि ह्त्या के बाद हुए एक ख़ास वर्ग (सिखों) के विरुद्ध दंगे जिसमे हजारों लोगों को क़त्ल ही नहीं बेबस बच्चों और महिलाओं को भी जला कर मार दिया गया था , किसी भी सभ्य देश के लिए उचित नहीं थे परन्तु वर्ष २००२ गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में एक डब्बे में यात्रा कर रहे लोगों को जला कर मार देने कि घटना उससे भी अधिक जघन्य आपराध कि श्रेणी में आती है लेकिन उसकी परिणिति में सरकारी मशिनिरी द्वारा प्रायोजित दंगे उससे भी अधिक नराधम अपराध कि श्रेणी में शुमार होते हैं इसलिए गुजरात के मुख्य मंत्री श्री नरेन्द्र भाई दामोदर भाई मोदी जी को बधाई इस बात की कि उनके लाख चाहने के बाद भी गोधरा के साबरमती काण्ड के बाद सरकार के गुर्गों के द्वारा प्रायोजित दंगों का सच उनके अपने कार्यकाल में ही देश प्रदेश और जनता के सामने आ ही गया है जिसके लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी एक अहम् भूमिका निभाई जिसने राज्य सरकार की लचर मशीनरी से ही दूध का दूध पानी का पानी वाली कहावत चरितार्थ करवा दी अन्यथा गुजरात की सरकार और प्रशासन तो पांच वर्ष तक लिपा-पोती ही करता रहा था और अगर माननीय सर्वोच्च नयायालय का हस्तक्षेप नहीं होता तो यह सच कभी भी जनता के सामने नहीं आ सकता था modimayaben and bajarangi और न ही ३२ लोगों को २८ वर्ष से लेकर उम्र कैद की सजा ही मिल सकती थी साथ ही इस अकेले निर्णय से देश में न्याय व्यस्था में जनता का विशवास भी बढेगा ? लेकिन बातों के जादूगर मोदी को इस बात से भी कुछ असर नहीं होने वाला क्योंकि मोदी में वह कलाकारी है कि अपने विपरीत होने वाली हर नकारात्मक बातों को वह सकारात्मक रूप में ढाल लेने की कला में माहिर हैं ? – एसपी सिंह, मेरठ

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