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एक सुन्दर और रोचक व्यंग “आजादी की मनमानी” जनवाणी समाचार के ”तीखी नजर” कॉलम में छपा था …………आजादी एक ६६ वर्षीया कन्या का नाम हो गई है एक व्यंगकार की क्या मजाल कि ६६ वर्ष की होने पर भी आजादी को बुढिया कहने का रिस्क मोल ले ———-आजादी शब्द को प्रत्येक स्थान से परमानेंट डिलीट कर देना चाहिए आप मेरे इस सुझाव से सहमत है न / अगर है तो क्यों न हम अपनी आजादी अंग्रेजों को वापस लौटा कर चैन की सांस ले ————–? इतना पढ़ते पढ़ते न जाने कब आँखे बंद हो गई ( परमानेंटली नहीं ) तभी हमने देखा कि एक विशाल काय शाया कपड़ों में लिपटा हुआ प्रकट हुआ, एक तो डर दुसरे बिजली न होने से गर्मी की घबराहट हमारी घिग्गी बांध गई हमने बहुत ही कठिनाई से थूक निगल कर हकलाते हुए पूछा ——- “आप!!!!! ——कौन!! है!” हमें सुनाई दिया या शाये ने कहा —— “बेटा मैं तेरी माँ हूँ?” “तेरी ही नहीं मैं तो पूरे देश की माँ हूँ” फिर कुछ रूककर साए ने कहा ——“मैं भारत माता हूँ ” अब तो इतना सुनते ही हमारी सारी घबराहट और हकलाना जाने कहा काफूर हो गया शरीर में ताकत सी भर गई तुरंत ही हमने दंडवत होकर भारत माता के चरणों में अपने सर को रख दिया ! न आशीर्वाद न हाथों के द्वारा थपथपाना केवल एक आवाज सुनाई दी “उठ ! बेटा उठ !!” — भारत माता बोली और उन्होंने अपना लबादा एक झटके में उतार दिया, हमतो उनकी दशा देख कर आश्चर्यचकित हो गए दोनों हाथ कटे हुए थे और उनमे से खून टपक रहा था | हमसे रहा नहीं गया और हमने पूंछ ही लिया—-” माँ तेरे हाथों को क्या हुआ” — माँ बोली —“बेटा तेरी आयु कितनी है” मैंने कहा —-“मेरी आयु तो लगभग उतनी ही है जितनी आजादी केवल फर्क इतना है कि मैं आजादी मिलने से दो वर्ष 12 दिन पहले ही इस संसार में आ गया था” — ” हाँ तब तू मेरी दुर्दशा के बारे में क्या जान सकता है, सुन मैं तुझे बताती हूँ, मुगलों कि गुलामी सहते सहते जब में पस्त हो चुकी थी तभी कुछ सफेद मुंह के बन्दर नुमा यूरोप के व्यापारी अंग्रेज लोगों ने मेरे वैभव कि गाथा अपने साथियों से सुन कर यहाँ आना आरम्भ किया और धीरे धीरे अपना साम्राज्य ही स्थापित कर लिया और मेरी वैभव सम्पदा को जी भर कर दो सौ वर्षों तक लूटा, उनकी लूट तो न जाने और कितने दिन चलती मेरे कुछ उग्र स्वभाव के स्वाभिमानी पुत्रों ने जब यह देखा की ये अंग्रेज हमारा ही माल खाते है और हमें गुलाम भी बना रखा है तो उन्होंने इन गोरे मुंह के बंदरों अंग्रेजो को यहं से भगाने के लिए सशस्त्र संघर्ष आरम्भ कर दिया लेकिन मेरे कुछ उदार वादी शांत स्वभाव के पुत्रों ने अहिंसा को ही अपना धर्म मानकर शांतिपूर्वक अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ किया मेरे इन दोनों ही पुत्रों के आंदोलनों से डरकर आखिर में अंग्रेजों को भारत छोड़ने की घोषणा करनी पड़ी | लेकिन अंग्रेज जाति बहुत धूर्त किस्म की है उन्होंने भारत से जाते जाते भी मेरे साथ एक बहुत बड़ा छल किया आजादी से ठीक एक दिन पहले यानि की १४ अगस्त १९४७ को मेरे दोनों हाथों को काट कर अलग कर दिया और “नापाक” पाकिस्तानियों के हवाले कर दिया, जिस कारण से तब से लेकर आजतक मेरे शरीर से खून बह रहा है”
मैं तो इतना सुन कर ही सन्न रह गया, माँ फिर बोली —“सुन बेटा मेरी इस दुर्दशा का अंत यहीं नहीं हुआ था अंग्रेज जाते समय कुल मिला कर लगभग सात सौ छोटी बड़ी देसी रियासतों को भी आजाद कर गए थे जो बेलगाम होकर मदमस्त हो गए थे वो तो भला हो मेरे पुत्र सरदार पटेल का जिसने अपनी प्रशासनिक दक्षता के बल पर इन सभी रियासतों को भारत गणराज्य (संघ ) में मिला दिया लेकिन फिर भी एक जिद्दी बेटा हरि सिंह कश्मीर का शासक नहीं माना और उसी की गलती के कारण नापाक पकस्तिनियों ने कबाइलियों के भेष में मुझ पर आक्रमण कर दिया और मेरे मस्तिष्क को ही दो भागों में काट दिया” इतना कह कर भारत माँ ने अपने सिर पर पड़ा कपडा हटा दिया — यह क्या!!! कपड़ा हटते ही मैंने जो देखा वह आश्चर्यजनक दृश्य था भारत माता का सिर दो भागों में फटा हुआ था बांये भाग से लाल खून बह रहा था और दांये भाग से हरे रंग का चिपचिपा पदार्थ निकल रहा था और उस हिस्से में कुछ चीनी चूहे भी फुदकते फिर रहे थे, बहुत ही हृदयविदारक दृश्य था जिसे देख कर मैं कुछ छण के लिए स्तबद्ध रह गया, और अचानक मेरे मुंह से निकला —–” माँ तुम इतना कष्ट सहने के बाद जीवित कैसे हो ” माँ बोली —- ” बेटा मैं जीवित कहाँ हूँ !मैं तो बहुत पहले ही मर गई थी ! तभी तो मुझे मरा समझकर तेरे बहुत से भाई बंधु मेरे इस मृत शरीर से ही खुरच खुरच कर, लोहा, तांबा, जस्ता, कोयला, तेल, गैस, और न जाने कौन कौन से खनिज पदार्थ निकाल निकाल कर मुझे खोखला किये दे रहे है और अपनी तिजोरियों को धन दौलत से भर रहे है ? और बेटा ! जिस शरीर को तू देख रहा है यह तो मेरी आत्मा है और केवल इस लिए भटक रही है कि किसी न किसी दिन मेरा कोई सपूत बेटा जरूर आकर मेरा इलाज करेगा और कम से कम मेरा मस्तिष्क ही दुबारा से किसी सर्जरी से जोड़ दे जिससे कि बिना हाथों के भी मैं अपनी दोनों आँखों से अपने उन नौनिहालों वैज्ञानिकों , डाक्टरों, इंजीनियरों और कामगारों को जी भर कर देख सकूँ जो आज दुनिया के बड़े बड़े शहरों में भारत देश का नाम रोशन किये हुए हैं.” बेटा इस लिए आज मैं तुमसे और तुम्हारे माध्यम से तुम्हारे भाई बंधुओं से यह कहना चाहती हूँ आज ६६ वर्षों की आजादी के समय में कोई ऐसा सपूत सर्जन तो अवश्य ही जन्मा होगा जो मेरे इस फटे हुए मस्तिष्क की सर्जरी करके दुबारा से जोड़ सके ?” अब मैं कुछ जवाब दे पाता इससे पहले ही हमारे सुपुत्र ने हमें जोर जोर से आवाज देकर जगा दिया कि पापा चालों मुझे स्कूल छोड़ कर आओ देर हो रही है !
और अब यह स्वपन लिपिबद्ध करके आप सब भाइयों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ ! धन्यवाद.
एस पी सिंह, मेरठ
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