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“सबका मालिक एक !!!”
सुदूर गाँव में एक पंडित जी थे जो अपने कर्मकांड (पंडिताई) के साथ साथ अपने आयुर्वेद के ज्ञान के अनुसार गावं के लोगों का दवा के द्वारा इलाज भी करते थे प्रत्येक मरीज को सभी अन्य दवाओं के साथ त्रिफला जरूर देते थे इस त्रिफले को तैयार करने में उनका पुत्र ही उनकी मदद करता था और साथ ही अपने पिता के निर्देशों के अनुसार मरीजों को दवाओं की पुडिया भी बाँध कर देता था | अचनाक पंडित जी स्वर्ग सिधार गए गावं के लोगों को बहुत कष्ट होने लगा सब लोगों ने मिल कर गाँव की पंच्यात की और पंडित जी के स्थान पर उनके पुत्र को मान्यता दे दी की अब से यही पुरे गाँव के लोगों का इलाज और पंडिताई भी करेंगे ? पहले दिन ही एक कुम्हार उनके पास आया और बोला पंडित जी मेरा गधा खो गया है, बताएं की वह कहाँ मिलेगा – पंडित जी क्या करते उन्हें तो त्रिफले के अतिरिक्त कुछ आता ही नहीं था बहुत सोंच समझ का नाटक करते हुए पंडित पुत्र ने कुम्हार को त्रिफले की छ पुडिया थमा दी और कहा एक दिन में तीन बार पानी के साथ लेना – अब त्रिफला लेने के बाद कुम्हार का जो होना था वही हुआ बेचारा कुम्हार सात बार तो किसी प्रकार गिरता पड़ता सौंच के लिए गाँव से बहार हो आया लेकिन आठवीं बार में उसकी हिम्मत जवाब दे है लेकिन पंडित जी का आदेश था इस लिए किसी प्रकार से गिरता पड़ता जब वह सौंच के लिए गया तो उसे सामने ही अपने गधे को चरता हुआ पाया – बस फिर क्या था पंडित जी की तूती अपने गाँव के अतिरिक्त दुसरे गांवों में भी फैलने लगी?
अब अगर हम बात करे अपने देश की तो जहाँ यह कहावत है की कोयले की दलाली में कुछ काला हो न हो पर हाथ जरूर काले हो जाते है इसलिए अगर सरकार कोयले की बन्दर बाँट करे तो उसके मुंह पर तो कालिख लगेगी ही इस लिए कालिख से पीछा छुड़ाने की कोसिस में सरकार ने खूब हाँथ पाँव चलाये परन्तु कोयला है कि पीछा ही नहीं छोड़ रहा था अब हमारे प्रधान मंत्री क्या करते उन्होंने भी सतरंज के शातिर खिलाड़ी के समान एक चाल चल दी क्योंकि उन्हें भी पंडित पुत्र के सामान त्रिफले के नुस्खे रिफार्म/ ऍफ़ डी आई/ सब्सिडी के अतिरिक्त कुछ नहीं आता इसलिए उन्होंने त्रिफले का जबरदस्त फार्मूला पूरे देश को ही पिला दिया है – संगी साथी की बात ही अलग है पूरा विपक्ष ही दिशाहीन होकर रह गया अर्थात ठगा गया सा महसूस कर रहा है सब अपने अपने गधे ( सत्ता रूपी सिंहसान ) को ढूढने के लिए निकल पड़े है कोई धरने प्रदर्शन कर रहा है कोई टांग घसीट रहा है कोई समर्थन वापस ले रहा है कोई बंद के लिए तारिख तय कर रहा है कोई साथी चेतावनी दे रहा है – यानि की हर पार्टी अपना अपना त्रिफला (नुस्खा ) लिए सत्ता रूपी गधे को ढूंढ़ रही है लेकिन यह तभी संभव है जब सत्ता-स्वयंबर २०१४ से पहले हो जाय अन्यथा त्रिफला पीने के बाद और खेतों में कवायद करने के बाद भी सारा का सारा पुरुषार्थ बेकार न हो जाय क्योंकि ऍफ़ डी आई यानि की प्रत्यक्ष वेदेशी निवेश का यह कर विरोध केवल इस लिए कि इसकी वजह से खुदरा दुकानदारों अर्थात छोटे छोटे दुकानदारों का व्यापार बंद हो जायगा जबकि वस्तुस्तिथि इसके विपरीत है छोटे छोटे दुकानदारों को इस प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से कोई फर्क ही नहीं पड़ेगा केवल थोक का व्यापार करने वाले मोटे पेट के व्यापारियों को ही कष्ट होगा ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है – यह बात किसी से छिपी नहीं है कि नासिक से ३ रूपये किलो की खरीद की गई प्याज उत्तर प्रदेश के शहरों में २०-२५ रूपये बिकती है यही हाल टमाटर का भी है यही हाल दालों और आनाज के मामले में भी हैं सारा मुनाफा केवल बड़े आढती और मोटे दलाल खा जाते है ? फिर भी जब दल विशेष किसी गरीब के हित की बात करते हुए मोटे मोटे मोटे घडियाली आँशु बहाते नजर आते है तो उसके पीछे दर्द केवल मोटे व्यापारियों और पार्टियों को दान दाताओं का ही हित रहता है
अब बात है डीजल की तो यह तो आवश्य ही है की इसके दाम बढ़ने से केवल और केवल गरीब का ही पेट कटेगा आधे पेट के स्थान पर अब केवल चौथाई पेट ही भरेगा क्योंकि डीजल के दाम में वृद्धि होते पर माल भाडा बढेगा तो कीमतों में भी बेह्तासा वृद्धि होगी जिसको कोई नहीं रोक सकता ? इसलिए सरकार का त्रिफला केवल गरीबों का ही हाजमा बिगड़ेगा – इसके स्थान पर तो यह होना चाहिए था की बड़ी डीजल कारों का उत्पादन ही बंद कर देना चाहिए था तो सरकार अगर बड़ी डीजल कारों उत्पादन नहीं बंद कर सकती तो इन कारों पर हैवी कर लगाने चाहिए किससे कि गरीबों के हित का डीजल पिने वाली बड़ी कारों के मालिको से कुछ अधिक टेक्स वसूला जा सके परन्तु सरकार ऐसा नहीं कर सकती उसको भी इन्ही मोटे लोगों से चंदा जो मिलता है ? अंत में अगर बात गैस की जाय तो यहाँ भी गरीब के नाम पर केवल प्रचार हो रहा है २० रूपये से कम कमाने वाला गैस पर खाना तो बना ही नहीं सकता वह तो अपना खाना बनाने के लिए आज भी पारम्परिक तरीके को अपनाता है दुधारू जानवरों के गोबर पर और गाँव ग्राम के जंगलों से एकत्र कि सुखी झाड झंकड़ एवं लकड़ियों पर ही निर्भर है जिसके लिए उस गरीब का परिवार आज भी दिन भर जी तोड़ मेहनत के पश्चात जलावन का समान एकत्र करता है – दूसरी बात यह कि इन गरीबों के नाम से ही अवैध गैस कैंनेक्सन गैस वितरकों की मिली भगत से अस्तित्व मैं है अगर ऐसा नहीं होता तो आज जो लोग घरेलु गैस का उपयोग करके अपना व्यापार चला रहे है वह गैस कहाँ से लाते है कोई है बताने वाला ? प्रत्येक चाय वाला / चाट पकोड़े वाला/ चाऊ मीन का ठेला लगाने वाला / हलवाई / छोटे रेस्तुरा /सड़को के किनारे बने होटल या पका कर सामान बेचने वाले कहाँ से गैस लाते है ? भले ही कोयला कुछ समय के लिए पीछे रह गया है परन्तु कोयले की कालिख पीछा छोड़ेगी कि नहीं यह कहाँ तक संभव है कुछ नहीं कहा जा सकता, परन्तु जिनके हाथो और मुंह पर कालिख लगी है वह त्रिफ़ले से मिटने की कोशिस में है साथ ही विरोधी उसका रंग और पक्का करने के प्रयास में त्रिफ़ले से ही अपनी गोटियाँ फिट कर रहे है कि शायद उनका अपना खोया हुआ गधा (सत्ता कि सवारी ) दोबारा मिल जाय !!! हम तो साईं बाबा के शब्दों में यही कह सकते है कि “सब का मालिक एक है”
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