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विकल्प क्या और कहाँ है ?

पाठक नामा -
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आज 65 वर्षों के बाद देश की जनता बूढ़े बच्चे नौजवानों को लगता है की देश में जो कुछ भी बुरा है वह केवल कांग्रेस की देन है सब कुछ कांग्रेस के कारण से ही हो रहा है ऐसा लगना और सोंचना सौ प्रतिशत सही भी है क्योंकि उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इन 65 वर्षों में लगभग 55 वर्षों में देश का शासन केवल कांग्रेस के हाथों में ही रहा है भले ही कभी उसे सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ा हो , और यह स्वाभाविक है कि जिसका शासन होगा कमियों का दोष भी उसी पर लगेगा इसलिए अगर कांग्रेस ने सत्ता का स्वाद चखा है और मलाई भी खाई है तो जरूरी है उसे अपनी कमियों के लिए गाली भी खानी पड़ेगी इससे कोई इनकार नहीं कर सकता ?

, 1964 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस1 जवाहरलाल नेहरू 15 अगस्त, 1947 27 मई
* गुलज़ारीलाल नन्दा 27 मई, 1964 9 जून, 1964 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
02 लालबहादुर शास्त्री 9 जून, 1964 11 जनवरी, 1966 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
* गुलज़ारीलाल नन्दा 11 जनवरी, 1966 24 जनवरी, 1966 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
03 इन्दिरा गान्धी 24 जनवरी, 1966 24 मार्च, 1977 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
04 मोरारजी देसाई 24 मार्च, 1977 28 जुलाई, 1979 जनता पार्टी
05 चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई, 1979 14 जनवरी, 1980 जनता पार्टी
** इन्दिरा गान्धी 14 जनवरी, 1980 31 अक्तूबर, 1984 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
06 राजीव गान्धी 31 अक्तूबर, 1984 2 दिसंबर, 1989 कांग्रेस (आई)***
07 विश्वनाथ प्रताप सिंह 2 दिसंबर, 1989 10 नवंबर, 1990 जनता दल
08 चन्द्रशेखर 10 नवंबर, 1990 21 जून, 1991 जनता दल
09 पी. वि. नरसिंह राव 21 जून, 1991 16 मई, 1996 कांग्रेस (आई)
10 अटल बिहारी वाजपेयी 16 मई, 1996 1 जून, 1996 भारतीय जनता पार्टी
11 एच. डी. देवेगौडा 1 जून, 1996 21 अप्रैल, 1997 जनता दल
12 इन्द्र कुमार गुजराल 21 अप्रैल, 1997 19 मार्च, 1998 जनता दल
** अटल बिहारी वाजपेयी 19 मार्च, 1998 22 मई, 2004 भारतीय जनता पार्टी
13 मनमोहन सिंह 22 मई, 2004 कांग्रेस (आई)

अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के अतिरिक्त कोई और दल /पार्टी /संघठन इतना सक्षम क्यों नहीं है कि वह देश कि सत्ता अपने हाथों में ले सके और कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर सके जनता ने यह प्रयोग भी किया और 1976 में आपात काल के गर्भ से पैदा हुए जनता के आक्रोश ने देश को एक नया विकल्प दिया यह प्रयोग सफल भी रहा लेकिन जब सत्ता मिली तो झगड़े शुरू हो गए पहले दलित श्री जगजीवन राम को पीछे करके मोरारजी भाई प्रधान मंत्री बने लेकिन कुछ लोगों कि सत्ता के शिखर पर पहुचने की ने अतृप्त लालसा ने उन्हें सफल नहीं होने दिया फिर सत्ता का खेल आरम्भ हुआ और जनता के द्वारा दिया प्रचंड बहुमत का अनादर करते हुए जनता पार्टी का पतन हुआ और १६ महीने(24 मार्च, 1977 28 जुलाई, 1979) तक शासन करने के बाद मोरारजी भाई किनारे लगा दिया गए क्योंकि आजकी भारतीय जनता पार्टी जो उस समय जनता पार्टी का एक घटक थी अपनी दोहरी भूमिका ( आर० एस० एस० से संबंधता के कारण ) उस समय की जनता पार्टी से अलग हो गई फिर हुआ सत्ता का खेल अल्पमत में होते हुए भी चौधरी चरण सिंह की प्रधान मंत्री बनने की अति महत्वाकांक्षा ने उन्हें उसी कांग्रेस (आई ) से समर्थन लेने पर मजबूर कर दिया जिस इंदिरा गाँधी को उन्होंने अपनी जिद के कारण संसद की सदस्यता से ही वंचित नहीं किया था अपितु जेल भी भेजा था अब ऐसे गठबंधन का जो हस्र होना था वही हुआ भी चौधरी साहब ५ माह और १६ दिन सत्ता सुख भोग कर भूतपूर्व प्रधान मंत्रियों की श्रेणी में आगये और अन्तोगत्वा सत्ता फिर कांग्रेस के हाथ में आगई क्योंकि जनता ने जब भी कांग्रेस को सत्ता से अलग किया है विपक्ष एक जुट न होकर अपने अपने स्वार्थों के कारण अपने आप ही बिखर जाता है इसमें जनता का क्या दोष ?

इस लिए जनता को दोष देना कहीं से भी उचित नहीं है जनता को जब भी मौका मिला उसने कांग्रेस को उसके आचरण का हमेशा जवाब दिया है लेकिन जब जनता के सामने कोई सक्षम विकल्प है ही नहीं तो जनता क्या करे ले दे कर फिर सत्ता कांग्रेस के हाथ में आ जाती है और फिर खेल आरम्भ होता है निरंकुशता का क्योंकि सत्ता का नशा ही ऐसा होता है ? जहाँ तक कांग्रेस की कमियों की बुराई करने की बात है वह सबके सामने है केवल नजरिये के जरूरत है क्योंकि पानी से आधा भरा गिलास,किसी को आधा खाली नजर आता है और किसी को आधा भरा हुआ क्योंकि जो घोटाले आज की तारिख में उजागर हो रहे है वह कोई नए नहीं है पिछले साठ वर्षों से यही सब कुछ हो रहा है इस बार मीडिया के कारण कुछ अधिक प्रचार हो रहा है ?

वैसे भी देश के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु के कार्यकाल में जो प्रोजेक्ट बने है भिलाई, बोकारो, बी एच ई एल, एच एम् टी, एच ऐ एल, सी ई एल, बी ई एल, चितरंजन रेल कारखाना आदि, जिस कारण देश का सर सदैव ऊँचा रहता है जो आज भी देश का गौरव कहलाने का हक़ लिए हुए है ? लेकिन अपने पूर्वजों की उपलब्धियों को आज की कांग्रेस की नई पीढ़ी ने केवल सिम्बल के रूप में दिखा दिखा कर लोगों भ्रमित करने के अतिरिक्त कुछ नही दिया

दोष राजनितिक पार्टियों में है जो जाति/धर्म/समुदाय/और क्षेत्रीयता में ही उलझी हुयी हैं इससे बहार ही नहीं निकलती/ कहीं भाषा की समस्या है तो कही आइडियोलोजी की भिन्नता है ? इस लिए कांग्रेस का विकल्प देश में नहीं है तो इसके लिए जनता दोषी नहीं है किसी नेता के विचार इतने संकीर्ण हैं की वह यह भूल जाता है कि एक ख़ास प्रदेश का व्यक्ति अगर उसके प्रदेश में आएगा तो वह उसे मार कर निकल देगा जब कि स्वयं उसके पूर्वज भी उसी प्रदेश से आये थे परन्तु यही प्रवासी अब ऐसा व्यवहार करते नजर आते हैं जैसे प्रदेश उसके बाबा की जागीर है ?

जहाँ तक घोटालों और घपलों कि बात है यह तो एक निरंतर चलते रहने वाली प्रक्रिया है न तो यह पहले कभी बंद हुए थे और न ही आगे भी कोई बंद कर सकता है ? इसके प्रचार प्रसार का सबसे बड़ा कारण आज का इलेक्ट्रोनिक मीडिया इतना तेज हो गया है कि किसी भी बात को रातदिन दिखता रहता है ?इसके बाद भी हजारों घपले घोटाले और भी है जिनको यह मीडिया दिखाता ही नहीं ऐसा भेद भाव मीडिया किस लालच में करता है उसको तो वही बता सकता है ? क्योंकि अब राजनीती एक धंधा यानि व्यापार हो गई है इस लिए धंधे में कोई व्यक्ति घाटे के लिए कोई व्यापार नहीं करता और जब केवल इलेक्सन में ही करोड़ों रुपया खर्च करने के बाद कोई संसद या विधान सभा में आता है तो क्यों आता है देश सेवा तो इनसे बहार रह कर भी कि जा सकती है ? फिर भी जनता इन राजनितिक लोगों पर विश्वाश करके हर पांचवे वर्ष वोटो से इनकी झोली भर देती है अर्थात एक लाइसेंस दे देती है घपले घोटाले करने के लिए ? अब यह तो देश की राजनैतिक पार्टियों को सोंचना होगा कि वह देश से कांग्रेस को सत्ता से बहार कैसे करेंगी अगर आने वाले २०१४ के चुनाव में विभिन्न पार्टियाँ इसी प्रकार का व्यहार करती रही तो आगे भगवान् ही मालिक हैं |

वैसे भी जब तक देश का सबसे बड़ा सांस्कृतिक संघठन केवल परदे के पीछे से अपने उद्देश्यों की पूर्ती के लिए एक ख़ास राजनितिक पार्टी के कामकाज और चाल चरित्र चेहरे की देखभाल में रहेगा तब तक देश में राजनितिक का वर्तमान स्वरुप बदलना असंभव ही है क्योंकि सांस्कृतिक संघठन और राजनितिक पार्टी के स्वभाव और चरित्र में ऐसा ही फर्क है जैसे रात और दिन में ?

देश की वर्तमान अंधकारमय शून्यता के बीच में से, भ्रष्ट्राचार के विरुद्ध आन्दोलन चलाने वालों की कर्मठता के कारण एक उम्मीद भरी धुधंली सी किरण नजर आई भी थी लेकिन वे लोग स्वयं ही मतभिन्नता और राजनिति की महत्वाकांक्षा का शिकार होकर गुमनामी की राह पर चल निकले हैं क्योंकि जिस तीव्रता से एक व्यापक संगठन उभरता सा नजर आया था शीघ्र ही राजनिति की चपलता/कुशलता/या महत्वाकांक्षा के कारण धराशायी भी हो गया है ? लेकिन एक सबसे बड़ी विडंबना तो यही है कि देश की केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारे यहाँ तक कि सभी सामाजिक संघठन केवल देश के अंतिम गरीब व्यक्ति को लक्ष्य करके ही पिछले ६५ वर्षों से उसकी भलाई/उत्थान के लिए ही कार्यक्रम चलाते ही नहीं उसकी चिंता में दुबले हुए जाते है ऐसा दिखने और दिखाने के लिए सभी तरह के हथकंडे भी अपनाते है ? लेकिन देश का वह गरीब इतना निष्ठुर है कि अपनी दशा को सुधारने के लिए कुछ नहीं करता भले ही उसके नाम से चलने वाले कार्यक्रमों का सारा धन कोई भी हजम कर ले?  क्योंकि किसी भी अच्छे साफ़ सुथरे विकल्प के आभाव में जनता के पास और कोई चारा है ही नहीं, उसके सामने जैसा भी सामान होगा उसी पर निर्भर रहना होगा ? क्योंकि आज देश के सामने जो दो मुख्य राजनितिक गठबंधन है वह अपनी विश्वसनीयता लगभग खो चुके हैं हर रोज नए नए खुलासों ने इन सभी की पोल खोल दी है, भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो छुटपुट प्रयास विभिन्न संघठनों के द्वारा किये भी गए उनका हाल भी सब के सामने ही है ?

Sonia_GandhiPM4ngadkari-1_1349355019_matal and advani

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