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अभी दशहरे से एक दिन पहले अर्थात नवमी वाले दिन बड़े रामलीला मैदान में दूर दूर से आये कारीगरों ने कागज और बांस से निर्मित आतिश बाजी और पटाखों से भरपूर रावण, कुम्भकरण और मेघनाद के पुतलों को रस्सियों से बाँध कर किसी तहरा सीधा खड़ा किया ही था की – उन्हें एक गुर्राती हुयी जोर दार आवाज सुनाई दी अरे ! दुष्टों पापियों अधर्मियों तुमने फिर एक बार मेरी आत्मा को दुःख देने के लिए मुझे फिर से जलाने का पापपूर्ण इंतजाम कर ही दिया है ? माना कि मैंने कुछ अधर्म किया था जिस कारण से लोग मुझसे घृणा करते हैं लेकिन याद रखो कि यह सब पाप कर्म मैंने स्वयं ही किये थे और शायद तुम इस बात को नहीं समझ सकते क्योंकि मुझ में इतना अहंकार भर गया था कि मैंने किसी इश्वर की शक्ति को ही नकार दिया था, मैं किसी भी विद्वान से अधिक ज्ञानी था, मैं त्रिकाल दर्शी विद्या में निपुण था, मैंने अपनी तपस्या के बल पर अनेकों सिद्धियों को प्राप्त किया था, अनेकों देवताओं को परास्त किया था, राहू, केतु मेरे बंदी थे मैंने धन के देवता कुबेर को शिव शंकर ने अपनी स्वर्ण की लंका का प्रबंधक बनाया था मैंने स्वर्ण की लंका को छल से प्राप्त कर लिया था ?और उसको भी अपना बंदी बनाया था ! मैं ही वह व्यक्ति था जो विश्व में निवार्ध रूप से अपने पुष्पक विमान से विचरण करता था ? मैंने माता सीता का अपहरण किसी भोगविलास के लिए नहीं किया था यह तो मैंने अपनी मुक्ति के लिए ही सीता का अपहरण किया क्योंकि श्री राम विष्णु अवतार हैं और मेरे आराध्य भी है अतः सीता हरण के कारण राम व्याकुल एवं क्रोधित हो कर मेरी खोज में भटकते रहे ! थे मैं भी व्याकुल था ! मैंने ही अपने साधू स्वभाव के भाई विभीषण को लात मर कर इस लिए निकाल दिया था कि वह मेरी मृत्यु का कारण बने और मेरे सारे भेद राम को कह दे ! (२) परन्तु तुम भारत वासी हो कि सदियों पुरानी एक दकियानूसी परम्परा को इस आधुनिक युग में जीवित रक्खे हुए हो ? और कुंठा से ग्रस्त होकर रावण यानि कि मेरे पुतले को जलाते हो ऐसा करके मुझे बदनाम ही नहीं करते मेरी आत्मा को भी कष्ट देते हो, वैसे भी आज कि तिथि में मैं एक विदेशी मृत नागरिक हूँ अगर मेरे देश लंका ( श्री लंका ) वासी मेरे सम्मान की रक्षा के लिए तुम्हारे देश भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ तक ले जा सकते है जहाँ निश्चित ही एक विदेशी को मृत्यु के बाद प्रताड़ित करने के अपराध में तुम्हारे देश पर कई तरह के प्रतिबंध भी लग सकते है (३) और सुनो मैं मर कब था मेरी नाभि में अमृत कुम्भ था जो विभीषण के कहने पर राम चन्द्र जी ने उसे केवल फोड़ दिया था मैं तो आज भी अपनी संतानों के रूप में जीवित हूँ क्या तुम उन्हें नहीं पहंचाते अगर जानना ही चाहते हो तो सुनो !! — उन्नीस सौ सैंतालिस में जब अनेकों अनेक देश भक्तों की क़ुरबानी के बाद देश को स्वतंत्रता मिली तो मेरी ही संतानों ने देश देश के बंटवारे के समय आपस में एक दुसरे की जान ली थी / उन्नीस सौ चोरासी में एक राजनितिक नेता की हत्या के बदले मेरी ही संतानों ने पूरे देश में एक विशेष समुदाय के लोगों का चुन चुन कर नर संहार किया था / वह भी मेरी ही संताने है जो समय समय पर देश में साम्प्रदायिक दंगें करवाते है / वह भी मेरी ही संताने है जो दिन दहाड़े बालिकाओं अबलाओं को प्रताड़ित करते है उनके साथ बलात्कार करते है / इस लिए मैं तुम्हारे माध्यम से भारत देश के लोगों से कहना चाहता हूँ कि जब तक केवल मुझे बुरा समझ कर मेरा पुतला हर वर्ष जलाते रहोगे तुम्हारा कोई भला नहीं होगा अगर तुम्हे बुराई को ही समाप्त करना है तो अपने देश में पनप रहे इन अपराधों को समाप्त करना होगा, तुम इतने सक्षम तो बनो जो बुराई से लड़ सकों केवल मेरा पुतला जला कर तुम बुराई को समाप्त नहीं कर सकते | (४) तुम जब भी मेरा पुतला जलाओंगे तो उसकी जितनी चिंगारियां पृथ्वी पर गिरेंगी उतने ही मेरे वंशज तुम्हारे देश में पैदा हो जायंगे और जैसे वर्ष २००२ में विशेष समुदाय के लोग क़त्ल किये गए / वर्ष १९९२ जो हुआ / वर्ष २०१० में खेल के नाम पर देश को लूटा २०१२ कोयला खाया वैसे ही आगे आने वाले समय में कला बाजारी महंगाई व्यभिचार साम्प्रदायिक दंगे मेरी ही संताने करेंगे और तुम देखते रहना ? (५) इस लिए हे ! भारत वासियों अब इस आधुनिक युग में तुम मेरा पीछा छोड़ दो और अगर तुम्हे अपने देश से प्रेम है तो देश में होने वाले भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्तियों को जलाओ, निरीह बच्चियों से बलात्कार करने वालों को जलाओ, खाद्ध्य पदार्थों में मिलावट करने वालों को जलाओ, देश को लूटने वालों को जलाओ, तो तुम्हारा कुछ भला हो सकता है केवल मेरा प्रतीक पुतला हर वर्ष जलाकर तुम्हे कुछ नहीं मिलने वाला /इस लिए मैं लंका पति त्रिकाल दर्शी दशानन रावण तुम्हारे देश वासियों से प्रार्थना करता हूँ कि आज से सपथ लो कि मेरा पुतला जला कर अपने धन और शक्ति को क्यों बेकार नष्ट करते हो मेरा पुतला जलाने के स्थान पर अपने देश के अन्दर छुपे हुए रावणों को जलाओगे तो तुम्हारा कल्याण होगा ?
एस.पी.सिंह,मेरठ
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