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नागपुर के संतरे – खट्टे या मीठे !!!!

पाठक नामा -
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भारतवर्ष का एक प्रदेश महाराष्ट्र उसमे स्थित एक शहर नागपुर जो अपने मीठे रसीले और स्वादिष्ट संतरों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है / साथ ही वहां एक सासंकृतिक केंद्र है जो पिछले कई दशकों से अपने अथक प्रयासों के द्वारा राष्ट्र निर्माण के लिए अपने स्वयं सेवकों को अपने तौर तरीकों से तैयार करता रहा है जिनकी राष्ट्र भक्ति पर किसी को भी गर्व हो सकता है / वहीँ से एक कार्य करता प्रयास करते करते देश भरमें नामी गड्ढा खोदू – गड्ढा भरू विभाग के नाम से प्रसिद्ध पी डब्लू डी के मंत्री बन गए तो उन्होंने अपने राज्य की सड़कें गड्ढों से मुक्त ही नहीं की बल्कि बहुत सी नई सड़कें और पुलों का निर्माण भी कराया था लेकिन बिचारे केवल चार वर्ष ही मंत्री रह सके ? समानता सज्जनता से इतने भरपूर है कि उन्हें जब भी मौका मिला अपने डराईवर/चपरासी/सहायक/पुरोहित तक के लिए कंपनियों का गठन करा कर उन्हें डाइरेक्टर तक बना दिया यह बात और है यह बात उन बिचारे गरीबों को मालुम नहीं हो सकी. अब चूँकि हमारा लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यह सब काम हमारे ही देश में संभव भी हैं. क्योंकि इसी समानता के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत एक थे लल्लू जी, जो पशुओं और इंसान में फर्क ही नहीं समझते थे तभी तो उन्होंने भी बेचारे निरीह पशुओं का राशन आदिमियों में बंटवा दिया था उन्होंने तो यहाँ तक किया जब वह रेल के मंत्री थे तो रेल का कभी किराया बढाया ही नहीं उलटे जब तक मंत्री रहे हर वर्ष किराया कम ही किया यह बात और है कि घटे में चल रही रेल को भी आंकड़ों का खेल करके लाभ में दर्शया था यह उनका समानता का दर्शन था लेकिन आज कल उनका समय दूसरों का दर्शन करने व्यतीत होता है ?
अब जब नागपुर इतना मीठा शहर है तो अपने सांस्कृतिक संगठन ने भी अपने गड्डा-करने भरने वाले साहेब को भी संतरों का बोरा समझ कर पार्सल बना कर दिल्ली भेज दिया और कहा कि कब तक नागपुर में ही जमे रहोगे चलो अब दिल्ली में जगह जगह गड्ढे बन गए है उन गड्ढों को भरो और अपना हुनर दिखाओं बेचारे करते क्या न करते किसी तरह से काम काज सम्हाला और कुछ काम किया लेकिन अपनी गड्ढा खोदू प्रवर्ती के कारण हमेशा किसी न किसी गड्ढे में फंस ही जाते है एक तो उत्तर की भाषा खड़ी बोली, बोली जाती है हम भी खड़ी बोली के कारण उनको कभी भी गडकरी नही कह पाते हमारे मुंह से अपने आप ही उनका नाम गड्डाकरी (गडकरी) ही निकल जाता है, तो हम बात कर रहे थे अपने गड्डाकरी (गडकरी) जी कि हिंदी भी बोलते है तो खड़ी भाषा में वह भी खड़े होकर इसलिए लोग और मीडिया भी कभी-कभी उनकी बातों का अर्थ गलत लगा ढंग से लगा लेते है और शुरू हो जाते हैं उनकी खिचाई करने में अब यह तो भारत का स्वतन्त्र मीडिया हैऔर लोकतंत्र के नाम पर जिसकी चाहे वाट लगा दे/ अभी हाल में यही हुआ कि अपने गड्डा करी जी ने एक संवादाता सम्मलेन में कह दिया कि एक ओर जहाँ स्वामी विवेक नन्द थे जिनकी आई क्यू इतना उच्च था कि वह अध्यात्म द्वारा कितनी उंचाई पर पहुंचे पर साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि एक है डान दाउद इब्राहीम उसका भी आई क्यू अपने स्वामी विवेक नन्द जैसा ही है पर दाउद ने अपनी सारी ताकत अपराध के कामों में लगा दी इसमें बुरा क्या कह दिया लेकिन यह सब उनकी अपनी गड्डा खोदू गड्डा भरू प्रवर्ती का असर था जो वह एक संत की तुलना एक अपराधी से कर गए अब कर गए तो कर गए सब ठीक लेकिन घर में बैठे हुए लोग भी उनसे किनारा करते नजर आ रहे है / अपने गड्डा करी साहेब बड़ी मुसीबत में है एक ओर सरकार उनकी कंपनियों की जांच करवा रही है दूसरी ओर घर में बैठे लोग भी उनके आसन को ही हिला रहे है बेचारे करे तो क्या करे/ अब न जाने ये ऊँठ किस करवट बैठेगा बैठेगा भी कि नहीं बैठेगा कौन क्या कह सकता है ? अभी ऊँठ को बैठने का इन्तजार में ही थे कि सांस्कृतिक संघठन के एक भूतपूर्व (भूतपूर्व के पास दिव्या दृष्टि होती है ऐसा माना जाता है ) चिन्तक ने विस्फोट ही कर दिया कि गुजरात के भाई अब दिल्ली में गड्डा भरना चाहते है इस लिए अपने गड्डा करी साहेब को बोरिया बिस्तर बांध लेना चाहिए यह तो कोई अच्छी बात नहीं हुई अगर वर्तमान चिंतकों की भाषा समझने में अपने गड्डा करी साहेब अनजान बने रहन चाहते थे तो क्या आपत्ति हो सकती है जो किसी भूतपूर्व को मैदान में उतरना पड़ा लेकिन लगता है कि अब समय आ गया है जब उत्तर भारत की खड़ी बोली की कहावत ” हम तो डूबेंगे सनम मगर तुम्हे साथ लेकर “चरितार्थ होने को है ? पर अगर बात डूबने की ही करे तो वर्तमान धर्म निरपेक्ष ( धर्म से विरक्त ) पार्टी की सरकार कि उलट फेर (फेल) का मतलब भी कुछ ऐसा ही है कभी कानून के मंत्री रहे व्यक्ति ने एक सामाजिक व्यक्ति (भले ही वह बात राजनितिक करता है ) को लहू से इबारत लिखने की धमकी खुले आम दी लेकिन उलट फेल में उसे देश का ही नहीं विदेश का भी मंत्री बना डाला अब कबीर दास कि बाणी को कौन झुटला सकता है ” चलती चाकी देख कर दिया कबीरा रोय दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय ? साबित तो लोग जब बचंगे जब कोई बचने देगा ? एक हैं हमारे परम पूज्य योग गुरु महान संत उन पर जब सरकारी माल खजाने के लोगो ने नोटिस क्या भेजा कि पाँच करोड़ रूपये का टेक्स सरकारी खजाने में भरो तो बेचारे आग बबूला हो गए और एलान दिया कि सरकार तो डूबता हुआ जहाज है अब अगर जहाज डूबेगा ही तो फिर डर काहेका , इसलिए भाई गड्डा करी जी मस्त हो कर अगर हो सके तो शिवजी की बूटी लेकर चैन की नींद सो जाओ रामजी भली करेंगे मगर ठहरो ! रामजी क्या भली करेंगे उन्हें तो राम जी भाई जेठा भाई ने नाराज कर ही दिया होगा क्योंकि वह आपको पहले ही धकिया चुके है अब राम जी को ही उलटे सीधे शब्दों से सेवा कर दी है लगता है अब उत्तर भारत में आपको कोई सुखी नही देखना चाहता उत्तर ही क्यों उधर पश्चिम से भी ऐसी ही आवाज सुनाई दे रही है वहां भी २० दिसंबर को दिवाली मनाने कि बात जोर से शोर मचा कर की जा रही है ? तो लगता है सूरजकुंड का चिंतन भी अब बेमानी होता नजर आ रहा है क्योंकि हमें तो इतना मालुम है की सूरजकुंड में चिंतन नहीं बल्कि कोप-भवन जैसा कुछ है तभी तो 1977 में हमारे एक किसान नेता सरकार गठन से पहले उसी सूरजकुंड के कोप-भवन में आराम फरमा रहे थे और इधर दिल्ली में सरकार बन बिगड़ रही थी ? अब देखने वाली बात यह है कि यह नागपुर के संतरे मीठे ही रहते हैं या खट्टे हो कर वापस नागपुर को पार्सल के रूप में प्रस्थान करेंगे ?भाई गड्डा करी साहेब आप हमारी ओर से चिंता न करे हमारी शुभकामनाएं आपके ही साथ हैं. एस पी सिंह, मेरठ

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