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कर्णाटक में ध्वस्त होने के बाद भारतीय जनता पार्टी के मातृक आका ( आरo एसo एसo ) को आत्ममंथन करना ही होगा की क्या भारत में दिन्दुत्व्वाद ही एकमात्र चुनावी चरखा है जिस पर मन चाहा सूत कात कर एक चादर बनाई जा सकती है जिसमे पुरे भारत को बाँधा जा सकता है ? शायद ऐसा दिवा स्वप्न देखने वालों की कमी नहीं है जो बिना ‘सूत कपास’ के कपड़ों के थान बुन देते हैं ? कर्णाटक के चुनाव से यह तो सिद्ध हो ही गया है कि प्रदेश कि जनता ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध मतदान किया है परन्तु यह उससे भी अधिक चौकाने वाला तथ्य है कि केंद्र में आकंठ भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी कांग्रेस पार्टी को प्रदेश की जनता ने पूर्ण बहुमत से विजयी बनाया है / आखिर यह विरोधाभास क्यों ? इससे तो यही लगता है कि चुनाव में स्थानीय मुद्दे ही प्रभावी होते है यहाँ न तो मोदी मॉडल चलता है और न आर o एस o एस o का हिंदुत्व वाद ? और न ही कांग्रेस का तथाकथित भ्रष्टाचार तो हम तो यही समझे कि भ्रष्टाचार के भी अलग अलग रंग होते है प्रदेश का रंग अलग और केंद्र का रंग अलग- क्योंकि भ्रष्टाचार एक ऐसा विषय है जो ब्रहमांड के सभी देशों में विद्यमान और अपने भारत में तो व्यक्ति इसको आत्मसात किये हुए ही है उसे तो उठते बैठते सोते जागते – हर पल इस भ्रष्टाचार रूपी दानव का सामना करना ही होता है ? अब देखें की अगले लोकसभा के चुनाव में उंट किस करवट बैठेगा ?कहाँ लुप्त हो गया भ्रष्टाचार ? एस पी सिंह, मेरठ
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