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१० मई अट्ठारह सौ सत्तावन और १० मई २०१३ हमने क्या पाया ?

पाठक नामा -
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हमारे एक मित्र है मुंशी जी यानि कि मुंशी इतवारी लाल वैसे तो वह सेवा निवृत हैं और निवृति पाए भी बीस वर्ष हो गए है पर उनकी एक खास आदत है की वह हमसे मिलने के लिए जब भी आते है इतवार को या फिर सार्वजानिक छुट्टी के दिन ही आते है ! लेकिन आज दस मई यानि कि आजादी के संघर्ष का पहला दिन ऊपर से मेरठ निवासी होने का गर्व, उन्हें आज उनके घर से बाहर निकाल ही लाया ! आज हमने देखा की मुंशीजी में गजब उत्साह भरा हुआ था ! हमने –“कहा यार मुंशी आज तो इतवार नहीं है फिर तुम्हारी सवारी घर से बाहर कैसे निकल आई ? मुंशीजी बोले: ” यार छोडो इतवार और सोमवार को तुम्हे मालुम है की आज कौन सा दिन है – बेटा आज दस मई है यानि कि दस मई अट्ठारह सौ सत्तावन के ही दिन आजादी की लड़ाई की तारिख जिस दिन भारत से अंग्रेजों को खदेड़ने का शुभारम्भ हुआ था आज ही के दिन इसी शहर मेरठ से अंग्रेजों को चुन चुन कर मारा गया था” हमने कहा –” हाँ, यह तो सही है लेकिन फिर भी अंग्रेजों को क्रांति द्वारा नहीं निकाल सके परन्तु कूटनीति के सहारे अहिंसा के सिद्धांत पर ही तो हम इस कार्य को कर पाए, और इस कार्य में भी सौ वर्ष का लम्बा समय लग ही गया ? यह बात भी गर्व करने की है कि इस आन्दोलन में देश के कितने ही शहीदों को अपनी जान भी देनी पड़ी थी. पर मुंशी जी हम तो आज तक यह बात नहीं समझ पाए कि जो आन्दोलन इतना विशाल और उग्र था उसके बाद भी देश को आजादी मिलने में ९० वर्ष लग ही गए ( अट्ठारह सौ सत्तावन से उन्नीस सौ सैंतालिस )” मुंशी जी बोले — “अमां यार तुम भी किस चक्कर में पड़ गए हो यह सब तो इतिहास के पन्नो दर्ज है किसी दिन पुस्तकालय में जाकर पढ़ लेना तुम्हे मालूम हो जायेगा – आज तो जाने और अनजाने शहीदों को श्रधांजलि अर्पित करने का दिन है और तुम इतिहास को लेकर बैठ गए हो, चलो उठो शहीद स्मारक चलते हैं वहां जाकर हम भी श्रधान्जली दे देंगे !” मुंशी जी कि इस बात पर हमें तो क्रोध ही आ गया और हम बोले : ” अबे मुंशी तू तो सठिया गया है तुझे भी नेताओं के साथ खड़े होकर फोटो खिचवाने का शौक लग गया है क्या ? तुम्हे मालूम है इन्ही नेताओं ने देश को बर्बाद कर के रख दिया इन्हें केवल और केवल अपने वोट बैंक और अपने बैंक बैलेंस का ही ध्यान रहता है > तुम तो रोज ही देखते होगे इन नेताओं ने संसद को ही पिकनिक स्पाट बना दिया जहाँ जाकर यह लगभग फ्री ( मामूली कीमत ) का नास्ता खाना खा कर जब संसद में विधाई कार्य करने के स्थान पर केवल राजनितिक हानि लाभ के हिसाब से हंगामा और केवल हंगामा करते है और हँसते हुए बाहर निकल जाते है तो तुम्हे कैसा महसूस होता है – इन लोगो को आखिर शर्म क्यों नहीं आती कि जनता के पैसे पर पलने वाले ये नेता ऐसा क्यों कर करते है :\? इस लिए मुंशी जी मैं तो शहीद स्मारक नहीं जाऊंगा तुम्हे जाना हो तो जाऊं. ” मैं तो शहीदों को श्रधान्जली अपने घर में ही दे दूंगा ? ” बेचारे मुंशी जी का तो सारा उत्साह ही ठंडा हो गया बहुत ही धीमी आवाज में बोले –” भैया कहते तो तुम ठीक ही हो पर हम भी क्या कर सकते है / मैं तो केवल शहीदों को श्रधान्जली ही देना चाहता था मुझे इन छोट्टे नेताओं से क्या लेना देना – अब तुम ही देखो कि कर्णाटक में एक भ्रष्ट पार्टी का शासन गया तो दूसरी महाभ्रष्ट पार्टी का शासन आ ही गया अब इसमें जनता का ही दोष है क्योंकि उसके पास कोई विकल्प ही नहीं है – इस लिए यह सारा दोष तो केवल राजनितिक व्यस्था का ही है जहाँ हमें कभी नाग नाथ को और कभी सांप नाथ को ही चुनना होता है अगर गलती से कभी किसी बिना जहर वाले सांप को चुन भी लिए तो राजनितिक व्यस्था से उसमे भी जहर भर जाता है ? जैसा उत्तर प्रदेश के दो बड़े नेता और नेत्री पर आय से अधिक संपत्ति का केश चल रहा है , झारखंड का मधु कौड़ा जेल यात्रा कर ही चुके है कर्णाटक में सत्ता परिवर्तन इस कारण से ही हुआ है”

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