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अब यह तो कोई भारतीय नागरिक बहुत आसानी से भूल नहीं सकता कि वर्ष १९९९ तात्कालिक भारतीय प्रधान मंत्री द्वारा की गई मित्रता पूर्ण यात्रा का परिणाम उसे कारगिल के रूप में झेलना पड़ा था जिसमे ५० दिन के संघर्स में सैंकड़ो भारतीय फौजी शहीद हुए थे और हजारों घायल हुए थे ? और यह भी भूलने वाली बात नहीं है कि उस समय पाकिस्तान के में मियां नवाज शरीफ ही पाकिस्तान के प्रधान मंत्री थे लेकिन यह भी सच है कि उनके हाथ से सत्ता छीन लेने के बाद तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान में सेना का तानाशाही राज स्थापित किया था। यह वो समय था जब पहले से ही अपने अस्तित्व और वैश्विक पहचान सुधारने की कोशिशों में लगे पाकिस्तान को एक ऐसा झटका लगा जिससे वह आज तक उभर नहीं पाया। सत्ता सेना के हाथ में चले जाने के बाद मुल्क की तकदीर जो शायद बदल सकती थी वह गर्त की खाई में जाती रही। पाकिस्तान की आवाम तो शुरुआती समय से ही ध्वस्त अर्थव्यवस्था, भ्रष्टाचार और दिनोंदिन मजबूत होते तालिबान से जूझ रही है लेकिन इस मुल्क की वजह से बाहरी देशों में भय और आतंकवाद का जो माहौल बना हुआ है उसकी वजह से वैश्विक पटल पर भी पाकिस्तान पर आतंकवादी राष्ट्र होने का ऐसा दाग लगा जिसे आज तक धोया नहीं जा सका है। जहाँ नागरिक शासन जनता के प्रति उत्तरदायी होने के कारण अपने पड़ोसियों से अच्छे संबंधों का इच्छुक था वहीँ पाकिस्तानी फ़ौज का मंतव्य भारत के साथ हमेशा दुश्मनी का ही रहा है ? यह भी पाकिस्तान कि जनता का दुर्भाग्य ही है कि दुनिया का सबसे दुर्दांत आतंकवादी ओसामा बिन लादेन जिसको अमेरिका पूरी दुनिया में बैचैन होकर तालाश रहा था वह पाकिस्तान में ही फौजी छावनी के नजदीक या यूँ कहिये कि फौजी संरक्षण में चैन की बंसी बजा रहा था ? लकिन क्या मियां नवाज शरीफ वास्तव में ही शरीफ बनकर पकिस्तान का भविष्य उज्जवल कर पायेंगे ऐसा कहना शायद जल्दबाजी ही होगी ? इस लिए हमें तो अभी बहुत इन्तजार करना होगा ?
नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही जहां कुछ बुद्धिजीवी ऐसी उम्मीद कर रहे हैं कि शायद अब पाकिस्तान की भीतरी और बाहरी गतिविधिया नियंत्रित होंगी जिसके परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधरेंगे वहीं कुछ इसे मात्र एक कल्पना मान रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि अभी भी उस मुल्क पर कट्टरपंथ पूरी तरह प्रभावी है जो उसे अन्य देशों के साथ संबंध सुधार की कवायद को प्रभावित करेगा।
और शायद पकिस्तान का (कुक ख्यात ) ख्याति प्राप्त संघठन आई० एस० आई ० जब तक फ़ौज के नियंत्रण में रहेगा भारत पकिस्तान के संबंधन कभी भी नहीं सुधर सकते क्योंकि इस संघठन का जन्म ही भारत विरोध कि लिए हुआ है इस लिए जब तक यह संघठन पकिस्तान में रहेगा भारत पाकिस्तान के सम्बन्ध कभी नहीं बन सकते ?
पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का कहना था कि उन्हें कारगिल युद्ध के बारे में भनक भी नहीं थी, वह इस बात से पूरी तरह बेखबर थे कि पाकिस्तान की सेना ने भारतीय सेना के साथ युद्ध छेड़ दिया है। जाहिर है वह भारत के साथ युद्ध कर संबंध और नहीं बिगाड़ना चाहते थे और अब जब पाकिस्तान की सत्ता पर फिर एक बार नवाज शरीफ का राज स्थापित होने वाला है तो भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधार जैसी उम्मीद की जा सकती है।vपाकिस्तान के इस सत्ता परिवर्तन के बाद महत्वपूर्ण सुधारों की उम्मीद कर रहा वर्ग इस बात की पैरवी करता है कि नवाज शरीफ 13 वर्ष के इस अंतराल के बाद परिपक्व नेता के तौर पर देश के बाहरी और अंदरूनी गतिविधियों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए तैयार हैं। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की लगभग अधिकांश जनता ऐसी है जिसका पारिवारिक यहं तक कि शादी विवाह का संबंध भारतीय मुसलमानों से है, इसीलिए राजनैतिक संबंध के साथ-साथ जमीनी स्तर पर भी बहुत हद तक संभव है कि पाकिस्तान, भारत के साथ संबंध सुधारे। नवाज शरीफ अपनी गलतियों से सबक लेकर सत्ता संभालने जा रहे हैं इसीलिए अब उनसे ऐसे किसी कदम की अपेक्षा नहीं है जिससे उनके संबंध पड़ोसी मुल्कों के साथ बिगड़ें। सेना की तानाशाही में उन्होंने पाकिस्तान के बिगड़ते हालातों और देश की जनता की त्रासदी को बहुत करीब से देखा है इसीलिए उम्मीद है कि वो ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिसकी वजह से हालात बद से बदतर हो जाएं।
यह भी सच है कि पाकिस्तान का नागरिक प्रशासन कितना भी इमानदार होकर भारत के साथ सामाजिक आर्थिक और सामरिक संबंधों को सुदृढ़ करना चाहता हो परन्तु जब तक पकिस्तान का फौजी गुट इसके लिए तैयार नहीं होता सब कुछ बेमानी ही है ?
वहीं दूसरी ओर वह वर्ग जो नवाज शरीफ की कार्यप्रणाली और भविष्यगत योजनाओं पर ज्यादा विश्वास नहीं कर रहा है, का कहना है कि इस बदलाव से पाकिस्तान और भारत के संबंध में सुधार की उम्मीद करना खुद को भ्रमित करने जैसा है। पाकिस्तान की ओर से हमेशा से ही पहले आश्वासन दिए जाते हैं और उसके बाद पीठ पर छुरा घोंपा जाता है। पाकिस्तान के इतिहास पर नजर डाली जाए तो ऐसे कई उदाहरण मिल जाते हैं जब पहले दोस्ती का हाथ बढ़ाकर दगा दिया गया है। नवाज शरीफ पहली बार गद्दी संभालने नहीं जा रहे बल्कि यह उनका तीसरा कार्यकाल होगा। जब पहले वे मुल्क के सरताज थे तब भी भारत के साथ पाक के संबंधों में किसी प्रकार का सुधार नहीं था इसीलिए अब भी उनसे कोई अपेक्षा नहीं रखी जानी चाहिए। इस वर्ग में शामिल बुद्धिजीवियों का यह भी कहना है कि भले ही नवाज शरीफ भारत-पाकिस्तान के संबंध सुधारने की कोशिश करें लेकिन पाकिस्तान में व्याप्त कट्टरपंथ इन कोशिशों को साकार होने ही नहीं देगा।
और इसमें मियां नवाज शरीफ को भी यह साबित करना होगा कि वास्तव में वह कितने शरीफ है ? और इस कारण से भारतीय जनमानस जो पाकिस्तान से अच्छे संबंधों का हामी है वह यह सोचता है कि :
1. नवाज शरीफ सत्ता की कमान फिर एक बार संभालने जा रहे हैं, उनकी पूर्व की कार्यप्रणाली, प्राथमिकताएं और निर्णय क्षमता का आंकलन कर क्या इस बार सुधार की उम्मीद की जा सकती है? यह अपने आपमें एक ज्वलंत प्रशन हर भारतीय के मन में है कि हमें पाकिस्तान से दोस्ती करके क्या मिलेगा क्या एक और आतकवाद का स्वाद क्या एक और कारगिल क्या एक और हमला पार्लियामेंट पर या फिर एक मुंबई जैसा भयंकर हादसा ?
2. नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने से भारत और पाकिस्तान के संबंध किस हद तक प्रभावित होंगे?
शायद इस विषय में कुछ भी कहना जल्दबाजी ही होगा क्योंकि पाकिस्तान के पैदा होने से लेकर अब तक के घटना कर्म के अनुसार उस पर विश्वाश नहीं किया जा सकता ?
3. भारतीय प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भारत आने का न्यौता दे चुके हैं, क्या हमारी यह पहल हमेशा की तरह हमारे लिए ही तो घातक सिद्ध नहीं होगी?
इसमें शक की कोई वजह नहीं है कि हमारी यह पहल शायद हमें फिर से शर्मसार न कर दे वह भी हमारे कार्य कलाप से नहीं अपितु पकिस्तान के अपने अब तक सार्वजानिक चरित्र के कारण ?
4. पाकिस्तान में कट्टरपंथी गुट क्या पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधार की कोशिशें सफल होने देंगे?
पाकिस्तान का कट्टरपंथी गुट यह कभी नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान भारत के साथ अच्छे और सुमधुर शांति पूर्ण सम्बन्ध बनाए क्योंकि अगर भारत पाकिस्तान के सम्बन्ध शांति पूर्ण हो गए तो फिर कट्टर पंथी लोगों का क्या काम उनका तो अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा अब यह तो कोई बेवकूफ ही होगा जो अपना अस्तित्व समाप्त करना चाहेगा ? एस पी सिंह, मेरठ !
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