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कसक, क्यों ?

अभी कुछ दिन पहले की बात है कि डिस्कवरी चैनल पर जंगल और जानवरों पर एक फिल्म दिखाई जा रही थी जिसमे यह दिखाया गया की कठिन परिस्थितियों मे जंगल के जानवर मिल जुल कर कैसा शांत जीवन बिताते है लेकिन एक ख़ास समय पर जब उनको जोड़े बनाने का समय होता है तो वह एक दूसरे की जान के दुश्मन भी बन जाते है फिर या तो अपने प्रतिद्वंद्वी को भाग जाने पर मजबूर कर देते हैं या जान से भी मार देते है लेकिन इसके विपरीत मानव जाति में मिलजुलकर रहने की परम्परा सदियों से है जिसका निर्वहन भी करते है यह बात अलग है की कभी कभी अपने स्वार्थों के कारण मानव में भी हिंसक प्रवर्ती पैदा हो ही जाती है वह भी ख़ास समय में जब सत्ता परिवर्तन का समय होता है या जब सत्ता को हथियाने के लिए परपंच किये जाते है ? जहां जंगल में जानवरों के मध्य यह परम्परा भी है की बूढ़े आसक्त और अवयस्क स्वयं ही युवा और ताकत वर जवान साथियों के लिए मौज मस्ती और जोड़े बनाने की राह छोड़ देते हैं मनुष्यों के बीच इसके विपरीत ही परम्परा है बूढ़े आसक्त बीमार वानप्रस्थ की आयु प्राप्तकर चुके नेता अब भी मंत्री, प्रधान मंत्री बनने के लिए दो दो हाथ करने को तत्पर रहते है और यही कसक उनको गाहे बगाहे मीडिया में ब्यान देने को मजबूर भी कर ही देती है ? हमारे लोक प्रिय नेता जो पहलवानी का शौक भी रखते है कई बार प्रदेश की कमान भी संभाल चुके देश की तीनो सेनाओं के मंत्री भी रह चुके नेता जी को इस बात की बहुत कसक है की अगर वह प्रदेश के मुख्यमंत्री होते तो प्रदेश की दिन प्रति दिन खराब हो रही कानून व्यवस्था को केवल 15 दिनों में दुरुस्त कर देते अब कोई यह कहे कि क्या यह गणित का सवाल है जो इस प्रकार की गणना करके हल किया जा सके यह तो यह संभव कैसे हो सकता है यह तो विशुद्ध रूप से परिवारवाद का सवाल भी नहीं है की जैसा पिता हो वैसा पुत्र भी हो सकता है कुछ समानता अवश्य हो सकती है ? अब क़ानून व्यवस्था पर टिप्पणी करता हुआ हर कोई यह कहने पर मजबूर है की इस समय प्रदेश में समाजवादी लिमिटेड कंपनी का शासन है जिसमे कानून व्यवस्था की अनदेखी की जा रही है जिस कारण से दुखी होकर वानप्रस्थ की और कूंच कर चुके पिताश्री को यह सब कहना पड़ा है तो पहलवान श्री जी को रोक कौन रहा है मारो जोर का धक्का और चढ़ जाओ गद्दी पर क्योंकि बहुमत आपके साथ है और यह तो और भी सुविधाजनक बात हुई की ठीक कर पाए तो वाह वाह !! नहीं तो चित भी आपकी और पट भी आपकी आपका विरोध कौन शूरमा कर सकता है ? अरे पिता श्री जी ! यह बात कुछ पची नहीं कि कानून व्यवस्था पंद्रह दिन में दुरुस्त कर देंगे ! जबकि एक अंडे में से चूजा निकलने में भी २१ दिन का समय लगता है तो आपके हिसाब से रस्सी को सौंप बना देने वाले विभाग को पंद्रह दिनों में किस प्रकार से सुधार कर आप कानून व्यवस्था ठीक कर सकते हैं ? ठीक इसी प्रकार के प्रवचन हमारे कभी के लौह पुरुष कहे जाने वाले वयोवृद्ध नेता जी जो पाँच वर्षो तक प्रधान पद के इंतज़ार में काट चुके है और जिनको अब बल पूर्वक वानप्रस्थ की ओर धकेल दिया गया था आये दिन मीडिया को कुछ न कुछ व्यान देते ही रहते है पर उनकी परिवार में सुनता कोई नहीं ? पर शायद उनको अपने देश के मीडिया पर भरोसा है कि उनकी बातों को मीडिया जन जन तक ज़रूर पहुंचा देगा और ऐसा संभव भी है क्योंकि मीडिया को तो काम ही यही है ! लेकिन हम तो यह समझते है कि जंगल के जानवरों द्वारा निभाए जाने वाले नियमों को अगर सभ्य कही जाने वाली मानव जाति भी अपना ले तो शायद इस देश का भविष्य ही बदल जाय और देश फिर से सोने की चिड़िया बन जाए ! लेकिन वानप्रस्थियों की मन की पीड़ा जो कसक पैदा करती है वह नैतिकता की सभी सीमाओं को पार कर जाती है !