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स्वतंत्र भारत में “अंग्रेजी मानसिकता के फौजी”!!!!!!

पाठक नामा -
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हमारा मेरठ जोकि एक एतिहासिक नगर होने के साथ 1857 की क्रांति का साक्षात गवाह भी है, मयराष्ट्र का अपभ्रंस शब्द ही हो सकता है, ऐसा भी कहा जाता है की जब श्रवण कुमार अपने माता पिता को कावड़ में बैठा कर अपने कन्धों पर लेकर हरिद्वार जा रहा था तो तब के मयराष्ट्र (जो आज का मेरठ ही है) की सीमा में प्रवेश करने पर उसने अपने माता पिता से कहा की आप लोग यह बताओ की मैं बिना प्रश्र्मिक आपको क्योंकर हरिद्वार लेकर जाऊं, तब उसके मातापिता ने पूंछा की बेटा यह बताओ की यह कौन सा स्थान है, तब श्रवणकुमार ने कहा की यह मयदंत राक्षस की राजधानी मयराष्ट्र है, उसके मातापिता को समझते देर नहीं लगी की दैत्य राज रावण के स्वसुर मयदंत दानव का राज्य है इसीलिए श्रवण कुमार की मति भी भ्रमित हो गई है , उन्होंने कहा बेटा चलो आगे चलो वहां चलकर हम तुम्हारा प्राश्र्मिक दे देंगें ! लेकिन आगे जाने के बाद श्रवण कुमार को बहुत ग्लानि हुई और उसने अपने मतमिता सत माफ़ी भी मांगी ! भारतवर्ष की आजादी की लड़ाई के विषय में है ऐसा कहते है कि 10 मई , 1857 जब मेरठ के फौजियों ने जब गाय/सूअर की चर्बी लगे कारतूसों को चलाने से इनकार कर दिया था तो अंग्रेजों ने उनको बंदी बना लिया था इस पर बाकी फौजियों ने विद्रोह कर दिया था और अपने साथियों को आजाद कर दिया था और फिर जो खुनी जंग आरम्भ हुई तो उसमे मेरठ में पदस्थापित अंग्रेज अफसरों की तो शमात ही आ गई थी विद्रोही फौजियों ने अंग्रेजों को ढूँढ ढूँढ कर क़त्ल कर दिया था वह माल रोड जो आज का महत्मागांधी रोड है इसका मूक दर्शक बना सब कुछ देख रहा था उस समय माल रोड पर किसी भी भारतीय व्यक्ति का चलना प्रतिबंधित था जिस पर 10 मई 1857 को उन्ही भारतियों ने अंग्रेजों की लाश से भर दिया था इस विषय में एक किवदंती भी प्रचलित है की उस समय के मरे हुए अंग्रेजों की आत्माएँ आज भी इस माल रोड पर विचरण करती रहती है ? लेकिन अगर इस घटना क्रम को हम आजके परिपेक्ष्य में देखें तो भी कुछ समानता अवश्य सही प्रतीत होती लगती है ? आज उन्ही अंग्रेजो की विरासत रुपी भव्य कोठियों में रहने वाले कुछ फौजी अधिकारी में भी उन्ही अंग्रेजों की आत्माएं प्रवेश कर गई है इसीलिए आज तरह तरह के प्रतिबंध लगा कर छावनी क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों को परेशान ही नहीं कर रहे हैं बल्कि माल रोड पर दोपहिया वाहन पर चलने वालों को प्रतिबंधित भी कर रहे है ?इतना ही नहीं विश्व प्रसिद्ध औघड़ नाथ मंदिर जो 1857 की क्रांति का प्रेरणा स्थल काली पलटन मंदिर के नाम से प्रसिद्ध मंदिर को जाने वाले रास्तों को भी सुरक्षा के नाम पर प्रतिबंधित कर दिया है ? वहीँ फौजियों द्वारा संचालित छावनी परिषद जो की केंद्र से मिले करोडो रूपये हजम करने के बाद न तो छावनी परिषद् के क्षेत्राधिकार क्षेत्र में अवैध रूप से कब्जा की हुई संपत्तियों को वापस लेती है और न ही उन पर बने अवैध निर्माणों को ध्वस्त कर पाती है बल्कि अपनी आमदनी का अवैध श्रोत अवश्य पैदा कर लिया है छावनी क्षेत्र से गुजरने वाले प्रत्येक व्यासायिक वाहन से टोल टेक्स के रूप में वसूलते है – नागरिक प्रतिनिधियों द्वारा विरोध करने पर फौजी जनरल कहते है हम छावनी क्षेत्र की अपनी भूमि पर जैसा चाहे वैसा निर्माण और प्रतिबंद लगाने में सक्षम है ? जनरल साहब शायद यह भूल जाते है की वह पहले एक भारतीय नागरिक है उसके बाद ही फौजी जनरल या कुछ और हैं/ हमें तो ऐसा ही लगता है की शायद जनरल साहब में भी1857 की क्रांति में मारे गए किसी अंग्रेज अफसर की आत्मा प्रवेश कर गई है ? इसीलिए उन्हें छावनी क्षेत्र में रहने वालों से कुछ नफरत सी होने लगी है / इस लिए उद्धरण हमारे सामने ही है कल तक जो जनरल फ़ौज की कमान संभाले हुए थे आज एक समाज सेवी जो कभी एक अदना सा फौजी था के संरक्षण में अपनी पहचान बनाने के लिए गाँवों और शहरों की ख़ाक छानते फिर रहे है ? चूँकि भारतीय फ़ौज और फौजी भारतीय नागरिकों के मन में एक सम्मान जनक स्थान रखती है उसकी गरिमा को बनाए रखने में फौजी अधिकारीयों को भी अपना योगदान अवश्य ही देना चाहिए ? एस पी सिंह, मेरठ

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