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“द मेकिंग ऑफ़ प्रधान मंत्री इन इंडिया “

पाठक नामा -
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‘ पार्टी विद डिफरेंस ‘ के छुटभैय्ये नेताओं नुमा कार्यकर्ताओं और देस के मीडिया क्षेत्रों में आज कल बहुत हलचल है . वहीँ बड़े स्थापित नेताओं में असंतोष की लहर किसी सुनामी आने के चेतावनी दे रही है ? देखें की क्या होता है क्या यह किसी को प्रधान मंत्री बनाने की दशा की ओर बढ़ते कदमों की आहट है या किसी आहत नेता की दर्द भरी आवाज की गूंज है ? पता नहीं क्या क्या हैं ? अभी कल एक प्रवक्ता ने कहा की “हम यहाँ समुद्र के किनारे सागर मंथन कर रहे है, अवश्य ही अमृत निकलेगा” लेकिन भैय्या जी, सागर मंथन में सबसे पहले तो गरल ही निकलता है उसको पिने या पिलाने वाला भी तो होना ही चाहिए तभी तो अमृत बच पायेगा ? परन्तु अभी तो वानप्रस्थ की आयु प्राप्त वयोवृद्ध लोग कोप भवनों में विराज मान है तो गरल कौन पिएगा और अमृत किसके हिस्से में आएगा /
राजनीती से परहेज रखने वाला संघठन जो अपने बहुत से स्वयंसेवकों को प्रदेशों का मुख्यमंत्री बना चुका है जो परदे के पीछे से कठुतिलियों को नचाता है और इस नाच को नचाने में महारत रखता है लेकिन बिना किसी उत्तरदायित्व के वह एक ऐसे विवादास्पद व्यक्ति को प्रधान मंत्री की दौड़ में शामिल करना चाहता है जिसको मानवाधिकारों के उल्लंघन में अमेरिका अपने देश में धुसने की इजाजत नहीं देता ?
तीसरे मोर्चे के प्रयोग के असफल होने के बाद जब “पार्टी विद डिफरेंस” को जब पहली बार सत्ता मिली तो बहुमत या जनादेश उसके पास नहीं था लेकिन जैसा संविधान में वर्णित है सबसे बड़े दल को सरकार बनाने का न्योता मिलता है तो इसी कारण राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अस्तित्व में आया था उस समय देश की छोटी बड़ी २८ राजनितिक पार्टियाँ शामिल थी जिसको उस समय के ख्याति प्राप्त लोकप्रिय व्यक्ति ने नेतृत्व दिया था और लगभग छ; वर्ष तक लगातार शासन भी किया लेकिन ऐसा क्या हुआ की भारत की जनता ने ६ वर्ष के बाद उस समय के राजग को ठुकरा दिया और १९९५ से लगातार सत्ता से बहार की गई कांग्रेस कोन२००४ में फिर से शासन की बागडोर थमा दी

जितनी तेजी के साथ इस व्यक्ति की ‘विकास पुरुष’ के रूप में छवि गढ़ी गई उतनी ही तेजी के साथ उनके व्यक्तित्व में तानाशाह नाम का शब्द भी जुड़ा. जो व्यक्ति अपने विरोधियों को संभलने नहीं देते चाहे वह विरोधी पार्टी का हो या फिर खुद की पार्टी का कोई नेता. ? संजय जोशी के साथ उनके विवाद को कौन भूल सकता है. एक ऐसा व्यक्ति जो अपने अहम् के कारन अपने साथी को जो अपने अनुभव और कौशल के कारण संघठन को संबल देता हो उसको बाहर का रास्ता किसने दिखाया.?

यहीं नही जिस व्यक्ति को संघठन आगे बढ़ाना चाहता है उसको जानने वाले यह भी मानते हैं कि यह व्यक्ति अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने से बड़े स्तर के नेताओं को भी पीछे ढकेल देते हैं. गुजरात में पार्टी को स्थापित करने वाले वयोवृद्ध नेता केशुभाई पटेल आज अपना वजूद खो चुके हैं. इसी व्यक्ति की वजह से ही पार्टी में उनकी उपेक्षा होने लगी जिसकी वजह से उन्होंने पार्टी छोड़ एक नई पार्टी भी बनाई. ऐसे में अगर यह व्यक्ति प्रधानमंत्री बनते हैं तो अपने से बड़े स्तर के नेताओं की न केवल उपेक्षा करेंगे बल्कि अपने विचारों को जबदस्ती थोपेंगे भी. यदि ऐसा होता है तो जाहिर है यह पार्टी विद डिफरेंस आपसी सिरफुटौव्वल की शिकार बन जाएगी.

फिर यही सवाल हवा में ही नहीं जनमानस के साथ साथ पार्टी के स्थापित नेताओं में भय पैदा करेगा और फिर वह कैसे पचाएंगे इस अति महत्वकांक्षी व्यक्ति को ?

इस व्यक्ति का स्वभाव जिस तरह का है उससे पार्टी के बड़े नेता उन्हें स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. उन्हें लगता है कि यह व्यक्ति यदि प्रधानमंत्री बन गया तो सबको दबाकर रखेगा. इसके अलावा ये बड़े नेता राजनीतिक अनुभव और अपने अनुभव को देखते हुए इस बात को पचा नहीं पा रहे हैं कि कैसे यह व्यक्ति कुछ ही दिनों में राष्ट्रीय स्तर का नेता बन गया. स्वयं पार्टी के सबसे बड़े नेता लौह पुरुष इस बात को जाहिर कर चुके हैं. इसके अलावा इस व्यक्ति का करिश्मा केवल गुजरात में चला है. अभी तक गुजरात से बाहर उनके जादू का कोई उदाहरण नहीं है. साथ ही उन्हें संसदीय अनुभव भी नहीं है जो उनके लिए बेहद भारी पड़ सकता है.

सहयोगियों के समर्थन पर असमंजस

जब से गुजरात के इस व्त्यक्ति का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए उछला है तब से एक साये की तरह पार्टी के सहयोगी दल इसका का निरंतर विरोध कर रहे हैं. इसमें सबसे उपर नाम आता है ‘जनता दल यूनाइटेड’ का. जेडी-यू के नेता पहले भी यह धमकी दे चुके हैं / शायद पार्टी अपने पुराने सहयोगी का साथ खो देगी.

विकास पुरुष का खोखला दावा !!आज पार्टी गुजरात के ‘विकास पुरुष’ के नाम से प्रचारित करती है इसी हथियार के आधार पर राजनीति करते आए हैं. लेकिन जिस तरह से गुजरात के दूरदराज इलाकों की स्थिति है क्या ऐसा माना जा सकता है कि वास्तव में गुजरात में सचमुच में एक ‘विकास पुरुष’ पैदा हो चूका हैं जो प्रधान मंत्री बन कर देश को आगे ले जायेगा . आकंड़े बताते हैं कि गुजरात राज्य में अन्य राज्यों के मुकाबले कुपोषण को लेकर खराब स्थिति है. उनका विकास केवल शहरों तक ही दिखता है. वैसे भी गुजरात देश में पहले से ही विकसित राज्यों के श्रेणी माँ सुमार होता था !

कुछ नहीं केवल मीडिया प्रबंधन है

जिस तरह से इस व्यक्ति ने विकास के प्रतीक पुरुष के तौर पर खुद की छवि गढ़ी है उसका एक अहम पहलू यह भी है कि वे तमाशे में माहिर हैं. उनकी सरकार जो भी करती है उसकी बड़े स्तर पर मार्केटिंग की जाती है और उसे इस व्यक्ति के साथ जोड़ दिया जाता है. आरोप है कि आज उन्होंने हर स्तर के मीडिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया है जो उनकी झूठी वाहवाही करता है.जिसका प्रमाण हमारे सामने है मीडिया के किसी भी चैनल का कोई सा भी कार्यक्रम इस व्यक्ति को दिखाए बिना पूरा ही नहीं होता ” इस कार्य को कैसे संपन्न किया जाता है यह खोज का विषय हो सकता है. क्योंकि मीडिया कोई भी कार्य धर्मार्थ खाते से निकले पैसे से नहीं करता ?

क्या घर का शेर हैं यह व्यक्ति ? हालात तो यही बताते है की यह व्यक्ति घर का शेर है घर के बहार किसी भीगी बिल्ली के सामान ही है ऐसा हम नहीं आंकड़े बता रहे हैं. इस व्यक्ति ने हाल के दिनों में जहां-जहां प्रचार किया है वहां पार्टी को हार नसीब हुई है. उन्होंने हिमाचल प्रदेश में प्रचार किया, पार्टी की सरकार गई, उन्होंने कर्नाटक में भी प्रचार किया वहां भी पार्टी अपनी सरकार नहीं बचा पाई.इतना ही नहीं जो अध्यक्ष आज इस व्यक्ति का गुणगान कर रहे है उनके नेतृत्व में भी इस पार्टी ने राजस्थान , उत्तराखंड अपनी सरकार कुर्बान कर दी थी इस लिहाज से यह नहीं कहा जा सकता कि यह व्यक्ति देशव्यापी नेता हैं.क्योंकि विदेश तो विदेश देश के एक पिछड़े राज्य में जहां पार्टी सत्ता में भागी दार है इस व्यक्ति की एंट्री बैन है !

दंगे का दाग

जिस व्यक्ति के मुख्य मंत्री होते हुए २००२ में हुए दंगो के कारण आज भी प्रदेश के कई मंत्री नेता कार्यकर्ता आज जेल में सजा काट रहे है और दंगों के दाग के कारण कुछ मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जाँच कराइ जा रही है जिसकी आंच कभी भी मुख्य मंत्री तक पहुँच सकती है जिसका दर्द यह व्यक्ति मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में व्यान भी कर चुके है कि “प्रधान मंत्री जी आप मुझे जेल ही भेजोगे” लेकिन हमें तो लगता है यह किसी बडबोले व्यक्ति का घमंड ही बोल रहा है और शायद यह प्रचार पाने का या खबरों में बने रहने का एक हथकंडा भी हो सकता है कि हमेशा नकारात्मक बोलते रहो. प्रचार तो मिलता ही है , इस लिए जिस व्यक्ति पर लग रहे सभी तरह के आरोप अलग और उन पर लगे दंगों के दाग अलग हैं जिसे कोई जितना भी कोशिश करें दूर नहीं कर सकता /. दंगों के 11 साल बाद आज भी उनकी भूमिका को लेकर अदालत के दरवाजे खटखटाए जाते हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री पद की दावे दारी के सामने यही दंगा सबसे बड़ा रोड़ा है.

वैसे भी प्रधान मंत्री का पद चुनाव लड़ने का मापदंड नहीं है लेकिन फिर भी प्रचारित ऐसा ही किया जा रहा है हमें तो यह सारा खेल केवल मतदाता को आकर्षित करने के लिए किया जा रहा लगता है क्योंकि इस पार्टी का जनाधार पिछले वर्षों में २७ प्रतिशत के स्थान पर केवल १८ प्रतिशत तक आ गया है और वैसे भी प्रधान मंत्री तो उस पार्टी का होगा जिसके पास २७२ का जादुई आंकड़ा होगा और फिर पार्टी के सांसद जिसको अपन नेता चुने वही प्रधान मंत्री बनेगा

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