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” कोप भवन”

पाठक नामा -
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कोप भवन – अब इस शब्द से तो ऐसा ही लगता है की यह कोई एतिहासिक ईमारत ही होगी, आप नाराज न होइये यह तो एक सत्य है कि पुराने समय में रजवाड़ों में जब किसी रानी – महारानी को अपनी नाराजगी प्रकट करनी हो तो कैसे करे उसके लिए राजे महाराजे महलों में एक भवन ऐसा बनवाते थे कि जब भी किसी रानी को अपना दुःख दर्द, गिला शिकवा, या यूँ कहिये कि विरोध प्रकट करना हो तो वह उस भवन में निवास करतीं थी – इन कोप भवनों कि खासियत यह होती थी की वहां कोई सजावट नहीं होती थी, यहाँ तक कि जब उस कोप भवन में कोई रानी कोप करती थी तो उसमे रौशनी भी बंद कर देतीं थी. लेकिन इन कोप भवनो का एतिहासिक महत्त्व भी है ऐसा हमारे पवित्र ग्रन्थ रामायण में भी वर्णन है कि जब राम चन्द्र जी के राज तिलक कि तैयारी चल रही थी तभी महाराजा दशरथ की तीसरी रानी कैयकई की दासी मंथरा ने रानी से कहा कि महारानी जी आप राजा की सबसे प्रिय रानी है परन्तु राजतिलक आपके सौतेले पुत्र का हो रहा है ? क्या आपको याद नहीं कि युद्ध के समय आपने राजा का सारथि बन कर उनको युद्ध में विजय दिलाई थी और राजा ने परिणाम स्वरुप आपको दो वचन दिए थे कि आप जब चाहे अपने लिए कुछ भी मांग लेना , तो रानी जी आज समय है आप अपने पुत्र भारत के लिए राज्य और राम के लिए १४ वर्ष का वनवास मांग लीजिये ! अन्तोगत्वा ऐसा ही हुआ रानी ने राजा के द्वारा दिए वचनों को कैश करा ही लिया ?
इसी प्रकार का प्रकरण महाभारत में भी आता है जब महारानी द्रौपदी ने में कोप भवन में बैठ कर प्रतिज्ञा की थी कि वह अपने खुले हुए गेसुयों (बालों) की वेणी तभी बांधेगी जब वह दुर्योधन के रक्त से इनको धो न ले और यह वचन उसने अपने पांचो पतियों से लिया था /( कृपया पाठक इस कथन कि प्रमाणिकता पर न जय यह केवल कथ्य है ) फिर तो महाभारत का वर्णन हर भारतीय जनता है –
लेकिन आज के इस लोकतंत्र के शासन में न तो रजवाड़े है और न राजा परन्तु शासक अवश्य है तो फिर वह कोप भवन और उसकी बिमारी कैसे विस्मित हो जायगी शायद ऐसा ही लगता है कि जब भी आधुनिक नेता (शासक) को अपनी नाराजगी दिखानी होती है तो कोप भवन की कहानी दोहराई जाती है बहाना बिमारी का होता है जैसा कि वर्ष 1977 में हुआ जब जनता पार्टी कि सरकार अस्तित्व में आई तो उस समय के किसान नेता जो किसानो के महीसा कहलाते थे मोरारजी भाई देसाई को प्रधान मंत्री बनाने के विरोध में हरियाण के सूरज कुण्ड स्तिथ भवन में कोप करने चले गए थे और वापस तब ही आये जब उन्हें उप्रधान मंत्री और गृह मंत्री बनाया गया, हद तो तब हो गई जब भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पहली सरकार बनाई तो उस वक्त एकमात्र अल्पसंख्यक वक्त के सिकंदर ने भी बिमारी का बहाना बनाया और तभी माने जब उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया गया – लगभग ऐसा सभी राजनितिक पार्टियों में होता है अभी कल कि बात है जब उत्तराखंड में बहुगुणा सरकार के मुखिया बनाये गए तो हरीश रावत और सत्य पाल महाराज ने ऐसा ही विरोध किया था – लेकिन पार्टिया इस को आंतरिक लोकतंत्र की में परिभाषा में बदल देती हैं . इसी उत्तराखंड के भाजपा के जन नेता कौशयारी विरोध पर विरोध करते रहे परन्तु उनकी किसी ने नहीं सुनी शायद यह छोटे कद के नेता रहे हैं.
अगर हम बात करे आज के ज्वलंत प्रसंग कि तो ऐसा लगता है कि इस महाभारत कि पटकथा तो बहुत पहले ही लिखी जा चुकी है केवल उत्तरायण पर्व का ही इन्तजार बाकी है क्योंकि अभी भी महाभारत ( जनरल इलेक्शन ) होने में ११ माह का समय बाकी है और अभी तो व्यूह रचना का कार्य ही चल रहा है लेकिन आधुनिक महाभारत में उस लौह पुरुष को भीष्म पितामह की कष्टकारी भूमिका में धकेल सा दिया गया है ! जो व्यक्ति अपने बल पर दो सदस्यों से दो सौ के आंकड़े में भारतीय संसद में उपस्तिथि बना सका हो भारत का गृह मंत्री रह चुका हो , विपक्ष का नेता रहा हो 24 पार्टियों को जोड़ कर भाजपा को सत्ता का स्वाद चखा चूका हो आज इस स्तिथि में पहुँच चुका है जैसे किसी अर्जुन ने नहीं बल्कि कौरव सेना के दुर्योधन ने अपनी सेना के सेनापति को बाणों बींध कर मृत्यु शैया पर लिटा दिया है और जो उनका सर लज्जा से झुका जा रहा था उसका विरोध करने पर अंतिम बाण दिनांक 11/6/2013 और दाग दिया गया है जिससे उनका सर तो कुछ ऊँचा कर दिया गया लेकिन उनसे कहा गया कि आप अब आगे से केवल मार्ग दर्शक कि भूमिका में केवल आशीर्वाद देने तक कि भूमिका ही निभाएंगे राज तिलक तो जिसका होना है उसके लिए अभी बहुत महाभारत बाकी है /यहाँ यह विश्लेषण करने का कोई मतलब नहीं है की भीष्म पितामह के वध में किसने वध किया है लेकिन यह तथ्य महत्त्व पूर्ण है की इस वध में कोई शिखंडी भी था की नहीं क्योंकि शिखंडी के बिना महाभारत पूर्ण हो ही नहीं सकता इस लिए कोई न कोई शिखंडी भी होगा किसी को क्या ? भले ही श्री कृष्ण ने महाभारत को धर्म युद्ध का नाम दिया था लेकिन हमें तो ऐसा ही लगता है आधुनिक महाभारत न तो धर्म युद्ध है और न ही अधर्म युद्ध है यह तो विशुद्ध रूप में केवल और केवल सत्ता हथियाने का ढकोसला मात्र है क्योंकि युद्ध दो विभिन्न पक्षों में लड़ा जाता है परन्तु युद्ध घर के सदस्यों में हो रहा हो तो वह गृह युद्ध होता है या गृह क्लेश इसी लिए ऐसा कहा जाता है कि गृह युद्ध में नुकशान हमेशा अपना ही होता है – अगर वास्तव में यह महाभारत है तो इसका अंतिम परिणाम भी लिखा जा चूका है जो किन्तु परन्तु से भरपूर है इस लिए उत्तरायण पर्व तो होना ही है उसको रोकने कि शक्ति किसी में नहीं हैं – कोई कहता है अभिमन्यु ने कमान संभल ली है और वह भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में फंसी सरकार को भेद कर अपनी सत्ता कायम करने की क्षमता रखते है लेकिन यह भी सत्य है की अभिमन्यु केवल चक्रव्यूह को भेदना जनता है उसके आगे नहीं / उसके आगे का परिणाम तो पूरे महाभारत की अनोखी घटना है जिसकी कोई मिसाल पूरे महाभारत में नहीं मिलती इसीलिए घटनाओं पर आधारित इस परिकल्पना से ऐसा ही लगता है की कोप भवन की अवधारणा महलों में वास्तु शिल्पियों के द्वारा बनाई गई थी घटनाओं के अनुसार जिसका असर तो होता ही है और इस राजनितिक ( कोप घटना ) विरोध एवं त्याग पत्र की घटना का भी असर अवश्य ही होगा ऐसा हमारा मानना है आप माने या न माने आपकी मर्जी ?

Bhisma_is_lying_on_a_bed_of_arrows_with_Arjuna_standing_above_him_with_bow_drawn_and_pointed.

एस पी सिंह, मेरठ

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