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हाल ही में उत्तरा खंड में आई भीषण त्रासदी शायद भारतीय इतिहास में पहली घटना ही गिनी जायगी जिससे पार पाने के लिए उत्तरा खंड की वर्तमान सरकार कई दिन तक यही नहीं समझ पाई की करना क्या है क्योंकि चारों ओर प्रलय ही प्रलय दिख रही थी हजारों लोग काल के गाल में समां गए और जो बचे हैं वह भी अपने मरने का इन्तार से करते नजर आ रहे थे लेकिन भला हो फ़ोर्स के जवानों का ( आर्मी/ आई टी बी पी/ सी आई एस ऍफ़ /बी एस ऍफ़/ बी आर ओ / एयर फ़ोर्स )आदि संघटनों का जिसने आननफानन में अपने कौशल एवं शालीनता का परिचय दिया और ७५ हजार लोगों को यह पोस्ट लिखे जाने तक निकाल कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया है. सिविल प्रशासन जो मोटी तनखा पाता है बौखलाया हुआ सा आसमान की ओर देखता रहा और लोग मरते रहे / लेकिन हद तो तब होती है जनता के सेवक कहे जाने वाले आधुनिक शासक अपनी राजनीती चमकाने के लिए ब्यान पर ब्यान देने की प्रतियोगिता करते से दिखते है :
उत्तर प्रदेश के शहरी विकास मंत्री कहते है : ” अगर हमें मौका दिया जाता तो उत्तराखंड में फंसे लोंगों को हम चौबीस घंटे में ही बहार निकाल लेते,” अब उनसे कोई यह पूंछे की आप अपने प्रदेश के शहरों और कस्बो में नाले और नालियों में सड़ रहे कूड़े को ही अगर बरसात आने से पहले चौबीस दिन में ही निकलवा दो तो हम समझेंगे की आपकी बात में दम हो सकता है अन्यथा ब्यान तो कोई भी दे सकता है ब्यान देने में कुछ खर्च तो होता नहीं ?
एक हैं गुजरात के मुख्य मंत्री जो आज कल हवा के घोड़ों पर सवार होकर ब्यान देते है की ” अगर उत्तरा खंड सरकार उनको केदार नाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का जिम्मा देती है है तो वह इस पौराणिक मंदिर को और भव्य बनाने में कोई कसार नहीं छोड़ेगें ” भैया जी आपको केवल अर्जुन के समान इस त्रासदी में भी केवल वोटर ही नजर आते है जो लोग मर गए और बाकि बचे जो मरने का इन्तजार कर रहे उनकी चिंता छोड़ कर आपको केवल मंदिर निर्माण की चिंता ही सता रही है क्योंकि मंदिर तथा कथित हिन्दू आस्था का प्रतीक जो है / जब की सच्चाई यह है की केदार नाथ जी का मंदिर भारतीय सभ्यता का प्रतीक है लेकिन राजनितिक पार्टियों को इससे क्या लेना उन्हें तो केवल और केवल वोट बैंक दीखता है – कभी राम को अयोध्या से निर्वासित करके सत्ता तक पहुचने की सीडी बना चुके दल को अब प्राकृतिक आपदा में क्षतिग्रस्त हुए केदार नाथ जी के मंदिर से भी कुछ आस नजर आ रही है तो ब्यान देने में क्या खर्च होता है जब की सहायता के नाम पर देश के सबसे विकसित प्रदेश का रोना रोने वाले मुख्य मंत्री ने केवल कुछ करोड़ रूपये देने की घोषणा की है जो लगता है जैसे “ऊँठ के मुह में जीरा ” लेकिन मंदिर के नाम पर जीरे के पहाड़ में ही ऊँठ घुसाने का प्रयास : अब ये तो ब्यान ही है , देते रहो न तो खर्च तो कुछ होता नहीं और न ही कोई रोक सकता है :
अब देश का गृह मंत्री अगर यह कहे के सरकारी एजेंसियों में कोई ताल मेंल नहीं है तो यह तो एक और बड़ी त्रासदी हो गई ऐसे ब्यान देकर गृह मंत्री अपना मनोबल गिरा रहे है या आपदा में फंसे लोगों को निराश कर रहे हा जब आको मालुम है कि ऐसी आपदा में केवल फ़ोर्स ही सही ढंग से सहायता कर सकती है तो सिविल प्रसाशन केवल व्यस्था स्थापित होने के बाद ही कुछ कर सकता है तो आप पूरी तरह से फ़ौज को ही क्यों नहीं जिम्मेदारी दे देते, लेकिन नहीं मीडिया के सामने बोलना जो आवश्यक है ब्यान देना तो जरूरी हो जाता है ?
लेकिन सबसे बड़ी त्रासदी तो रिपोर्टिंग कर रहे मीडिया के लोग ही है जिनमे यह होड़ लगी है की वह विनाश लीला की प्रथम रिपोर्टिंग किस प्रकार करे और अपने चैनल की रेटिंग किस प्रकार बढ़ाएं – लेकिन उनको यह शर्म नहीं आती की वह लोगो की सहायता किस प्रकार से कर रहे है, अगर वह सबसे पहले पहुचने का दावा करते है तो वह यह भी बताएं की उन्होंने कितने लोगों की सहाय और किस प्रकार से की क्या इस त्रासदी में भी उनका केवल एक ही धर्म है की वह केवल सरकारी कमियों को ही उजागर करे और अपनी झोली भरे जो उनका धर्म है ?
पर्यटकों और श्रधालुओं को वहां की त्रासदी से बहार निकलाने के बाद आज सबसे बड़ी समस्या तो यह है की स्थानीय आबादी को किस प्रकार से पुनर्स्थापित किया जाय क्योंकि इस आपदा के बाद उत्तराखंड के प्रभावित क्षेत्रों की भौगोलिक स्तिथि ही बदल गई, न सड़कें बची है और न दो भागों को जोड़ने वाले पुल सब कुछ नष्ट इस लिए सभी प्रदेशों की सरकारों और जनता को खुले हाथों से सहायता करनी चाहिए जिससे पहाड़ों के साथ-साथ हमारे चारो पौराणिक धामों का गौरव फिर से लौट सके और जो लोग अपने परिजनों को इस त्रासदी में खो चुके है उनको सांत्वना मिल सके ? हम तो यही प्रार्थना करते है कि परमपिता परमात्मा उन सभी लोगों को जो इस त्रासदी में अपनी जान खो चुके है उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उनके परिवार को इस महान दुःख को सहने कि शक्ति दे और जो जीवित मौत से साक्षात् कर के बचे है उनको भी शक्ति दे कि वह अपना जीवन यापन फिर से स्थापित कर सके / एस पी सिंह मेरठ
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