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घड़े में ऊँठ !!

गावं का एक व्यक्ति जिसके पास एक ऊँठ था उसी पर बैठ कर वह अपना तेल बेचने का व्यापार करता था एक दिन उसका ऊँठ खो गया बेचारा बहतु हैरान परेशान होकर अपने ऊँठ को ढूंढ़ रहा था आते जाते लोगों को रोक रोक कर पूंछता रहा पंडित /मुल्ला/मौलवी जोगी भोगी /दरजी /धोबी / नाई/ तेली -तम्बोली /फौजी/सिपाही किसी को नहीं छोड़ा सब ने कहा की हमने तो नहीं देखा तुम्हारा ऊँठ। बेचारा थक हार कर घर की ओर चल दिया पत्नी ने पूंछा घर के अन्दर भी तो देख लो बेचारा करता क्या न करता मन मसोस कर घर के अन्दर गया वहां क्या था केवल चार कोने और कुछ गृहस्ती का सामान हाँ एक कोने में एक बड़ा सा घडा जरूर रखा था उसने हर कोने को बहुत सावधानी से देखा। पत्नी बोली घड़े में भी देख लेना, बेचारा पत्नी की आज्ञा या वक्त की मजबूरी या बुद्धि ह्रास कुछ भी कहो घड़े में भी झाँक कर देख ही रहा था की उसकी गर्दन ही घड़े में फंस गई। पत्नी चिल्लाई रोई मोहल्ले की बहुत से लोग एकत्र हो गए बहुत कोशिस की परन्तु गर्दन घड़े से नहीं निकली तो एक व्यक्ति ने कहा की घड़ा ही तोड़ दो, तुरंत कुछ लोग लाठी डंडा ले कर आ गए अभी घड़े पर प्रहार करने ही वाले थे की पत्नी बोली रुक जाओ मैं तो बर्बाद ही हो जायुंगी मै अपना वर्ष भर का अनाज कहा रखूंगी? लेकिन भीड़ में शामिल उस व्यक्ति के दो भाइयों ने फ़ौरन ही लाठी से घड़े को तोड़ दिया, अब उस व्यक्ति की फंसी गर्दन तो निकल आई परन्तु ऊँठ को मिलना ही नहीं था और वह मिला भी नहीं / जिस ऊँठ पर बैठ कर वह गाँव-शहर देश भर में घूम घूम कर अपना तेल बेचने का व्यापार करता था ऊँठ के न होने से सारा व्यापार ठप हो गया ?

इसी प्रकार का हाल हमारे देश के राजनितिक करने वाले दलों का हो गया है जहां जनता में एक ओर सत्ताधारी दल के विरुद्ध एक नकारात्मक सोंच बढ़ रही है वहीँ विपक्षी यानि सत्ता से दूर दल इस नकारात्मक लहर को अपने फेवर में करने में अभी तक असमर्थ और लाचार दिखाई दे रहे हैं / प्रादेशिक यानि की क्षेत्रीय दल अपने सत्ता रूपी ऊँठ को उसी चार दिवारी से आगे पीछे नहीं कर पा रहे हैं तो मुख्य विपक्ष का समूह अपने सत्ता रूपी ऊँठ को खोजने में अयोध्या में बावरी नामक घड़े को पहले ही फोड़ चूका है लेकिन उसके सगे सहोदर आज भी हारे थके सिपाही के समान घड़े को जोड़ने के लिए मजबूत से मजबूत फेविकोल की तलाश में अयोध्या कशी और देश के सभी शिवालय से लेकर सुदूर केदार नाथ के द्वार पर भी माथा टेक चुके हैं लेकिन शिव का रौद्र रूप देख कर कुछ सहम से गए हैं/ यही नहीं आधुनिक टेक्नोलाजी का सहारा भी शायद अभी तक उस मजबूत फेविकोल को नहीं तलाश पाया है जिससे की घड़े को जोड़ा जा सके / लेकिन बहुत ही अजब स्तिथि है हमारे भाइयों को यह समझ ही नहीं आ रहा है अगर मान लो ऐसा फेविकोल भी मिल जाय जिससे अयोध्या में घड़ा जोड़ भी दिया जाय तो क्या उस घड़े से ऊँठ निकल ही आएगा सत्ता का ऊँठ न तो तब धड़े में था और न उसको जोड़ने से उसमे से निकल सकता है उसके लिए तो कम से कम २७३ लड़ी वाले एक मजबूत रस्से की जरूरत होगी अगर आपके पास है तो ठीक नहीं तो किसी साथी संगी से मांगनी पड़ेगी और फिर एक मजबूत खूंटे की भी जरूरत होगी वह भी आपके पास नहीं है जो खूंटा था उसे आप पहले ही उखाड़ चुके हो और उखाड़ने के बाद उतना मजबूत खूंटा ही नहीं बहुत से खूंटे आपके पास है लेकिन वह उसी स्थान पर गड सकते है या स्थाई मजबूती दे सकते है इसमें बहुत शक है ? लेकिन प्रयास करने में क्या हर्ज प्रयास तो किया ही जा सकता है लेकिन सावधान आज के इस इलेक्ट्रोनिक युग में अपने ऊँठ को ढूंढने के लिए जो विज्ञापन देना उसमे अपने ऊँठ का हुलिया इस प्रकार से देना की उसकी पहचान स्वयं ही कर सको ऐसा न हो की बेचारे ऊँठ को कोई और ले उड़े क्योंकि गुजरात के ऊँठ का कद देश के बाकी हिस्सों के उंठो से ऊँचा है यु पी और बिहार के उंठो का कद अपेक्षाकृत कुछ छोटा होता है / लेकिन अगर किसी मंदिर में जाकर सत्ता धारी दल के लिए वनवास और अपने लिए सत्ता की अरदास के सहारे ही ऊँठ को ढूंढ्ना ही है तो इससे सरल उपाय कोई और हो ही नहीं सकता !!!!