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हिंदी का गौरव और नेताओं के घडियाली आंसू !!!!!

पाठक नामा -
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ऐसा लगता है की हमारे देश में नेता ही क्या जन साधारण को टी वी में देखने और दिखने की लाईलाज बिमारी कैंसर से भी अधिक भयंकर रूप से लग गई है, कोई भी स्थापित नेता या छुटभैय्या सुबह कोई ब्यान देता है और शाम तक अगर उस बात का असर सकारात्मक हुआ तो ठीक अन्यथा सायंकाल में खंडन पेश कर दिया, इसी प्रकार कोई भी छोटी मोटी घटना होने पर पल भर में ही भीड़ एकत्र हो जाती है और शुरू हो जाती है तोड़ फोड़ और हर कोई नेता बना व्यक्ति टी वी मीडिया को अपना चेहरा अवश्य दिखाना चाहता है ? अब अगर बात की जाय भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री राज नाथ सिंह जी के विषय में तो ऐसा लगता है कि आज कल उनको भी दिव्या ज्ञान प्राप्त हो गया है चूँकि विपक्षी पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते उन्हें हर विषय में बोलना अनिवार्य है तो वह ऐसा बोलते है कि उन्हें हर विषय में दक्षता प्राप्त है ऐसा ही उन्होंने ने अंग्रेजी के विरोध और हिंदी के पक्ष में जो ब्यान दे तो दिया लेकिन फिर अपने ब्यान से पलट भी गए? नेता जी का ऐसा व्यवहार किस प्रकार का है वह तो वे ही जाने लेकिन भारत का नागरिक होने के नाते हर कोई उनसे एक सवाल पूछ सकता है कि जब आप छ वर्षो तक देश का शासन चला रहे थे तो उस समय आप भी ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर थे जनता को बताएं कि आपने और आपकी पार्टी ने हिंदी के पक्ष और उसके प्रसार के लिए क्या-क्या कार्य किये थे और क्या आज आप केवल घडियाली आंसू बहा रहे हैं ? उत्तर भारत के कई प्रदेशो के करोडो लोग हिंदी को ही बोलते है फिर चाहे उसका उच्चारण अलग ही क्यों न हो जिनमे प्रमुख है उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार , झार खंड, छत्तीसगढ़ हिमाचल प्रदेश आदि, लेकिन खेद का विषय है की संविधान में राज्य भाषा का गौरव पूर्ण स्थान पाने के बाद भी आज हिंदी एक विधवा के रूप में देखी जाती है क्योंकि हमारे सर्वोच्च नयायालय में काम काज में उसे वह स्थान नहीं मिला है जिसकी वह हकदार है क्योंकि सर्वोच्च नयायालय में आज भी जितने आदेश होते है उनके लिए अंग्रेजी की अनिवार्यता है. इसलिए क्या ये बड़े बड़े नेता घडियाली आंसू बहाने के स्थान पर सर्वोच्च नयायालय में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त करने की घोषणा करने की पोजीसन में है ?

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