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जब से गुजरात के मुख्य मंत्री को उनकी पार्टी ने २०१४ के लोक सभा और उससे पहले ५ विधान सभाओं के चुनाव प्रमुख की भूमिका क्या दी ऐसा लगता है की इस देश की सारी राजनीती ही उनके आस पास सिमट कर ऐसे खड़ी हो गई हो गई हो जैसे कोई नई नवेली दुल्हन हो लेकिन चाहते या न चाहते हुए भी उनको इस राजनितिक दुल्हन का वरण तो करना ही होगा / लेकिन यह व्यक्ति भी इतने जीवट का है की देश दुनिया की हर छोटी बड़ी घटना प्रतिक्रिया को अपनी वाक्-पटुता के कारण अपनी विशेष शैली में अपनी आलोचना या प्रशंसा के रूप में पुरे मीडिया को ही लगा देता है ? यों तो ऐसा कहा जाता है की जब कोई व्यक्ति देश के प्रधान मंत्री को चुनौती देता है तो ऐसा लगता है उसने अपने लिए कहीं कुआँ खोद लिया है या उस कहावत को चरितार्थ कर दिया है जैसे ” आ बैल मुझे मार ” लेकिन जब यह व्यक्ति दिल्ली की गद्दी पर बैठे प्रधान को चुनौती देने की परम्परा को निभाने की कोशिस करता है तो ऐसा लगता है जैसे कोई कह रहा हो “आ बैल मैं तुझे मारूंगा” लेकिन हमें तो ऐसा लगता है की वहां तो कोई शेर गद्दी पर नहीं है वहां तो कोई बैल ही जो गाडी को चला रहा है, वैसे भी बैल बन कर गाडी चालान हर किसी का काम नहीं है और साधारण व्यक्ति का तो कदापि नहीं हो सकता क्योंकि बैल बनने के लिए भी पौरुष खोना पड़ता है क्योंकि अगर मान लो कल को आप भी किसी तरह जोड़ तोड़ करके उस पद पर पहुँच गए तो क्या होगा आपको भी बैल तो बनना ही पड़ेगा और पता नहीं आप कहाँ तक सफल होंगे हमें आपकी पौरुषता से क्या लेना देना लेकिन एक बात जो मुख्य है हम जानते हैं कि बैल बनने में भी गौरव है क्योंकि पौरुष खो कर ही
सही गद्दी तो मिल ही जाती है ( यहाँ पौरुष से मेरा मतलब पौरुष ग्रन्थि से नहीं है एक प्रकार सत्ता कि ताकत के अंकुश से है ) वैसे भी पौरुषता सहित किसी भी बैल को खेती या कोल्हू में काम करने लायक नहीं समझा जाता है उसे तो खुला आवारा ही छोड़ दिया जाता है यानि कि पौरुषता (आक्रमकता) सार्वजनिक जीवन में एक बाधा के रूप में ही देखि जाती है और ख़ास कर तो हमारे देश की राजनीती में तो किसी भी समय आक्रामक व्यक्ति का प्रधान मंत्री होने का कोई इतिहास ही नहीं है, लेकिन भैया जब तुम दहाड़ दहाड़ कर सामने बैठे प्रधान मंत्री को चुनौती देते हो तो लगता है आप किसी मेमने तो धमका रहे हो कि मैं तुझे खा जायूँगा खाओगे कैसे उसके लिए तो दिल्ली को नापना होगा वैसे भी तुम वामन अवतार तो हो नहीं कि तीन डग (तीन कदम) में दिल्ली को नाप दोगे क्योंकि नापने के लिए आपके पास जो पैमाना है उसकी लम्बाई दिल्ली तक नहीं पहुँच पा रही है और जब लम्बाई ही नहीं पता है तो तीन कदम में दिल्ली कैसे नपेगी नपेगी क्या ख़ाक क्योंकि ऐसा कहते है कि “चोरी का कपडा और बांस का गज ” एक व्यक्ति जब किसी दूकान वाले को कपडे का थान बेचने गया तो उसने बांस के टुकड़े से बनाए गज जो सामान्य गज से दुगना था उससे नापने लगा ” व्यक्ति बोल भाई यह तो गलत है तो दूकान दार बोल तेरा कपडा भी तो चोरी का है तूने सुना नहीं चोरी का कपडा बांस के गज से ही नापा जाता है ? लेकिन भैया आप भी सही हो जब नापना भी आप को है और खरीदना भी आपको ही है तो कैसा नापना और कैसा बेचना सब माल अपना ही तो है ? जब सब माल अपना है कन्या कुमारी से कश्मीर तक और बंगाल से लेकर गुजरात तक तो भय काहे का क्योंकि दिल्ली तो बीच में ही है बची कैसे रह सकती है ? अब यह तो समय ही बताएगा कि कोई बैल टक्कर मरेगा या बैल किसी को टक्कर मारी जाएगी ? लेकिन भैया जी बैल तो जब मरेगा सामने से ही मरेगा आपके पास तो चारो ओर लम्बे लम्बे सींगो वाले बूढ़े बैल से लेकर बिना सींग के बछड़े भी खड़े है पता नहीं किस ओर से टक्कर मार दें. कोई क्या कह सकता है ? लेकिन आप भी चिंता न करो हमारी दुआ तो आपके ही साथ है आप तो लगे रहो बस. क्योंकि लगे रहने में भी फायदा ही फायदा है क्योंकि जैसे पिक्चर में अपने मुन्ना भाई एम् बी बी एस बिना डिग्री के डाक्टर बन ही गए थे भले ही आपके गुरु जी पिछली बार केवल इन्तजार ही करते रह गए थे हम चाहते है वह इन्तजार आपको न करना पड़े |
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