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आज इस आधुनिक तकनीक और अतिजागरूक मीडिया के समक्ष यदि किसी भी, व्यक्ति, समूह, संस्था,राजनितिक पार्टी और सरकार के लिए वास्तविकता को छुपाना या नजर-अंदाज करना सुगम तो है किन्तु उसके घातक असर और परिणाम से पिंड छुटाना इतना सुगम न तो कभी पहले था और न कभी आगे भी हो सकता है ? वर्तमान में अगर हम बात करे. UPA – २ कि तो ऐसा लगता है कि कई कई अनियमतिताओं के कारण आज सरकार की छवि जनता की नज़रों में धूमिल ही नहीं दागदार भी हुई है ? जिसके बहुत से कारण हो सकते है :-
(1) 2- जी (दूर संचार ) में अनियमितता के कारण :
कैग के द्वारा उठाये गए सवालों पर बहुत कुछ लीपा पोती करने के बाद भी इस प्रकरण में सरकार की छवि बहुत अच्छी नहीं बन पाई है और ऐसा लगता है कि यह अनियमितता न तो भुलाई जा सकती है और न ही माफ़ करने लायक है !
(2) राष्ट्र मंडल खेल :
जहां एक ओर राष्ट्र मंडल खेलों का आयोजन भव्य और सुन्दर रूप में किया गया और पूरी दुनिया में दिल्ली सरकार और भारत की सराहना की गई वहीँ दूसरी ओर आयोजन कर्ताओं ने खुली लूट को अंजाम दिया जो सरकार की लापरवाही को दर्शाता है इस कारण से यह दोष न तो क्षमा करने लायक है और न ही भुलाया जा सकता है !
(3) कोयला खानों का गलत आवंटन :
यह मुद्दा भी कैग के द्वारा ही उठाया गया है जहां कोयला खदानों के आवंटन में अनुमानित घाटा लाखों करोड़ रुपये में आंका गया है | सरकार अपनी सफाई में बहुत कुछ संसद के माध्यम से जनता को समझाने के प्रयत्न में है परन्तु एक बार छवि धूमिल होने पर उसे साफ़ करना बहुत आसान नहीं हो सकता !
(4) रेल घुस काण्ड :
बहुत अनोखा संयोग है की रेलवे बोर्ड के सदस्य की नियुक्ति में एक बाहरी व्यक्ति जो रेल मंत्री का रिश्तेदार भी है नियुक्ति करवाने के बदले दस करोड़ रिश्वत का सौदा करते हुए सी बी आई द्वारा पकड़ा जाता है और रेल मंत्री को पद त्यागना पड़ता है जिस कारण से सरकार की छवि जो पहले ही बहुत धूमिल हो चुकी है और धूमिल होगी इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है !
इन सब बातों के होते हुए २०१४ के लोक सभा के चुनाव में कांग्रेस के लिए जनता के मन में यह विश्वाश पैदा करना बहुत मुस्किल होगा कि केवल कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी है जो देश का शासन चला सकती है और उसे ही बहुमत से जिताया जाय ? क्या कांग्रेस ऐसा दवा कर सकती है जो जनता उसे एक बार फिर सत्ता सौंप सके क्या ऐसा होना संभव होगा, या एक बहुत बड़ा सवाल है ?
अब अगर जनता इस व्यवस्था को बदलना चाहे तो क्या करे उसका आसरा देश की दूसरी विपक्षी पार्टी ही बचती है लेकिन अगर हम देखे कि देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी जिस अंदाज और जोश के साथ आम चुनाव से लगभग एक वर्ष पहले से ही कमर कस के तैयार हो गई है इतना ही नहीं, तमाम विवादों, और पार्टी के दिग्गजों के रूठने मनाने के बाद अगले चुनाव के लिए एक हिन्दुत्त्व वादी चेहरा भी तैयार कर ही लिया है| अब अगर इन गुणी व्यक्ति के गुणों का बखान किया जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी :-
(1) पहला गुण 2002 का गोधरा काण्ड का बदला :
राजनैतिक गलियारों और सामाजिक क्षेत्रों में ऐसा समझा जाता है कि गुजरात में हुए गोधरा रेल काण्ड के परिणाम स्वरूप एक विशेष समुदाय के लोगों का सार्वजनिक रूप से सरकार समर्थकों द्वारा जिस प्रकार से नर संहार किया गया था उस समय के मुख्य मंत्री उस काण्ड को मूक दर्शकों के सामान केवल घटना को होते हुए देखने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सके बल्कि इस अनदेखी को पार्टी समर्थक दंगाईयों ने मौन स्वीकृति ही माना और खुल कर तांडव किया – लेकिन उस समय के मुखिया और वर्तमान में भी मुखिया ने आज तक उस घटना पर दुःख या खेद प्रकट नहीं किया बल्कि किसी विदेशी पत्रकार के पूछने पर से बहुत दिलेरी से नर संहार की घटना की तुलना एक कुत्ते के पिल्लै के मरने से कर दी ?
(2) दुसरा गुण : साथियों का अवमूल्यन और प्रताड़ित करना :
इस कड़ी में सबसे पहला उदहारण एक साथी प्रचारक (जोशी) का है उस व्यक्ति को प्रताड़ित ही नहीं किया बल्कि उसका निर्वासन भी निश्चित किया, अपने ही गृह राज्य मंत्री (पंडया ) की मर्डर मिस्ट्री को आज तक साल्व नहीं किया है जब कि उनके परिवार के लोग सीधे सीधे ह्त्या का आरोप लगाते रहते हैं. अपने पूर्ववर्ती मुख्य मंत्री को इतना अपमानित किया कि उसने पार्टी को ही अलविदा कह दिया और अपनी अलग पार्टी बना ली है| अगली कड़ी में अपने ही पिता समान गुरु को ही पटखनी देदी और गुरु की राजनैतिक हैसियत ही समाप्त कर दी है और पार्टी के सारे बड़े से बड़े और छोटे से छोटे नेता एक कतार में हाथ बंधे हुए खड़े नजर आ रहे है ?
(3) भाषा शैली :
अगर कोई व्यक्ति पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी का स्थान लेने को आतुर है तो उस व्यक्ति को अपनी भाषा शैली को भी उन्ही के सामान संयंत करना ही होगा अन्यथा व्यंगात्मक निन्दनात्मक और कटाक्ष पूर्ण भाषा शैली के साथ प्रधान मंत्री का पद कहीं दिवा स्वपन ही न रह जाय क्योंकि भाषा शैली में गंभीरता की बहुत कमी है वैसे यह कला किसी बिरले में ही होती है कि अपने विरुद्ध किसी भी बात को हवा में उड़ा दो या फिर अपनी शैली में अपनी और मोड़ लो. लेकिन इस भाषा शैली के लिए ( पिता श्री ) आर० एस० एस० द्वारा कई कई बार हडकाया भी गया है – हमें तो लगता है इस भाषा शैली से जनता को अपनी और आकर्षित तो किया जा सकता है लेकिन उसका वोट भी पाया जा सकता है एक बड़ा सवाल पैदा करता है ?
(4) कानून के प्रति अवहेलना का पुट :
यह व्यक्ति जब से गुजरात के मुख्य मंत्री हैं उसी समय से राज्य में किसी भी लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो सकी है, लेकिन जब राज्य पाल महोदया ने माननीय उच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित किसी सेवानिवृत न्यायाधीस की नियुक्ति कर दी गई तो उसके लिए शुरू हुई कानूनी लड़ाई पहले माननीय गुजरात उच्च न्यालय में मुंह की खाई यानि नियुक्ति वैध ठहराई गई फिर बाद में माननीय उच्चतम में अपील ख़ारिज होने पर पुनर्विचार अर्जी दाखिल की गई वह भी ख़ारिज हो गई और अंत में इतनी दुर्गति के बाद तो अभी अभी लोकायुक्त के लिए नामित व्यक्ति न्यायमूर्ति (सेवा निवृत ) आर ए मेहता ने ही लोकायुक्त बनने से इनकार ही कर दिया जो राज्य सरकार लिए एक अच्छा सन्देश कभी नहीं कहा जा सकता ? जबकि पार्टी हमेशा एक शसक्त लोकपाल और लोकायुक्त कानून और उसकी नियुक्ति की पक्षधर रही है तो क्या उस पार्टी का प्रधान मंत्री पद का दावेदार ऐसी हरकतों के लिए जनता के द्वारा माफ़ किया जा सकता है ? शायद यह भी अपनी छवि को और अधिक दागदार होने से बचाने का तरीका हो सकता है क्योंकि आज भी प्रदेश का एक पूर्व गृह राज्य मंत्री ह्त्या के अपराधिक मुकद्दमे में प्रदेश बदर की सजा भुगत रहा है और दूसरा एक मंत्री ५० करोड़ के घपले में भ्रष्टाचार के मामले में ३ वर्ष सजा न्यायलय द्वारा दी गई है लेकिन कानून की अवेलहन के चलते अभी भी मंत्री कि कुर्सी की शोभा बढ़ा रहे है ? और फर्जी मुठभेड़ के मामले में दर्जनों उच्च अधिकारी जेल में बंद है\ मुठभेड़ कांड और २००२ के दंगो के कई केस माननीय उच्च नयायालय के निर्देश में लंबित है जिनकी जांच सी बी आई कर रही है ? देखा जाय कि अगर कोई स्वतन्त्र लोकायुक्त होता तो कितने और काण्ड उजागर हुए होते ! सच तो यह है कि सरकार को यह दर है कि यदि निष्पक्ष और इमानदार लिकयुक्त कि नियुक्ति हो गई होती तो उनके सुशासन और विकास का वह सारा भ्रम जो आंकड़ो की बाजीगरी पर खड़ा किया है भरभराकर गिर जाता.
(5) मानवाधिकारों का उल्लंघन :
२००२ में हुए नरसंहारों के विषय में देश के अन्दर आप अपनी बात विभिन्न प्रकार से रख सकते है सफाई भी दे सकते हो परन्तु जब देस के बाहर आपके कार्य कलापों की समीक्षा कोई देश आपके मानदंडो के अनुसार करने के लिए बाध्य नहीं हो सकता और आज उसी कारण अमेरिका अपने देश में पधारने की इजाजत नहीं देता – जिसके लिए पार्टी के अध्यक्ष एक याची की तरह अमेरिकी चौखट पर माथा टेक आये हैं परन्तु निराशा ही हाथ लगी !!
(6) पूंजीपतियों और अनिवासी भारतियों का सहारा :
जब राज्य में पूंजीपतियों और अनिवासी भारतियों को उद्द्योग धंधो के लिए पूरी खुली छुट और कौड़ियों के भाव जमीन दी जाती है तो उनका समर्थन मिलना भी स्वाभाविक ही है और में पूंजीपति भी खुल कर दान और चन्दा देते ही है लेकिन इस समर्थ पूंजीवाद के सहारे अगर कोई देश का प्रधान मंत्री बन सकता है तो फिर भारतीय संविधान की समाजवादी अवधारणा का क्या हस्र होगा ऊपर वाला ही जाने :
(7) पार्टी के अखिल भारतीय स्वरूप का अभाव :
कहने को पार्टी एक अखिल भारतीय पार्टी का स्वरूप लिए हुए है परन्तु आजादी के ६५ वर्षो और भारतीय राजनीती में बी जे पी के अखिल भारतीय स्वरूप का आभाव है दक्षिण में कोई आधार नहीं है ले दे कर कर्णाटक में एक सरकार बनी थी परन्तु भ्रष्टाचार के कारण वह भी हाथ से निकल गई केवल हिंदी भाषी क्षेत्रो में जोरदार उपस्थिति ही दिखाई देती है यहाँ तक कि अपने शासित प्रदेशों को बचा पाने में पसीना ही नहीं बहाना पड़ता बल्कि बहुत कुछ दांव पर लगाना होता है, हिमाचल, राजस्थान, महाराष्ट्र , कर्णाटक , और बिहार की आधी सरकार भी गवानी पड़ी है? अब अगर किसी पार्टी का आधार पूरे भारत में नहीं है तो वह शासन का स्वप्न किस प्रकार पूरा कर सकते है :
(8) हिंदुत्व वाद का सहारा :
घूम फिर कर फिर वही एक हिंदुत्व का नारा/ और सहारा रह जाता है जिस के बल पर पार्टी एक ध्रुवीकरण के कारण कुछ हासिल करने की स्थिति में होती है, जिसके लिए पार्टी और पार्टी के संरक्षक साधू संतों के आश्रमों में माथा टेकने के साथ समर्थन भी मांग रहे है सवाल पैदा होता है कि इस विभिन धर्मावलम्बी भारत में जहां विभिन धर्मो और जातियों के लोग बसते हो वहां केवल हिंदुत्व के आसरे सत्ता पर काबिज हुआ जा सकता है तो यह अपने आप में एक बहुत बड़ा करिश्मा ही होगा ?
इस लिए हमें तो लगता है कि 2014 में होने वाले आम चुनाव इन बातो के होते हुए किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता दिखाई देता है परन्तु चुनाव एक जुए जैसा खेल है जहां जीत कि संभावना हमेशा बनी रहती है इस लिए कुछ भी संभव हो सकता है ? क्योंकि यह भारत है और भारत में कुछ भी असंभव नहीं है !!!!! एस० पी० सिंह, मेरठ
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