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अभी आज हरिद्वार की एक प्रतिष्टित मासिक पत्रिका के अगस्त २०१३ के अंक में पृष्ठ संख्या ५४ पर एक कथा पढ़ी जिसका भावार्थ कुछ इस प्रकार है :
एक जंगल में एक अकेला ( बिना जोड़े का ) सियार ( गीदड़ ) रहा करता था | एक दिन वह | मार्ग भटक कर इंसानों की बस्ती में जा पहुंचा ! उसे वहां देखते ही नगर के कुत्ते उसके पीछे पड़ गए | सियार अपनी जान बचाने के लिए भागने लगा ही था कि, रास्ते में एक रंगरेज (कपड़ों पर रंगाई करने वाले ) का घर पड़ता था | घर के पिछवाड़े रंगरेज ने एक बड़ी सी नांद (एक प्रकार का बड़ा सा बर्तन ) में भगवा रंग घोल कर रखा हुआ था | अब यह तो गीदड़ का सौभाग्य था या दुर्भाग्य कि भागते हुए गीदड़ महाशय उसी नांद में गिर गए अब जो होना था वही हुआ नांद से निकलने पर गीदड़ महाराज गेरुवे रंग में ऐसे रँगे कि बिलकुल एक संत के समान दिखने लगे | अब जब घूमते फिरते अपने जंगल (धाम) में पहुंचे तो गीदड़ महाराज के गेरुवे रंग को देख कर जंगल के और संगी साथी एवं दुसरे जानवर बहुत भयभीत हो गए | और डरकर इधर उधर भागने लगे तभी धूर्त सियार (सियार का स्वभाव ही धूर्त किस्म का होता है, चूँकि वह शेर द्वारा मारे गए शिकार में ही अपना हिस्सा चुरा लेता है ) के दिमाग में एक कुटिल तरकीब आई और वह एक ऊँची सी चट्टान पर चढ़ कर जोर जोर से चिल्लाने लगा भाइयों भागो नहीं मैं तुम्हारा तुम्हारा नया राजा हूँ | मुझे भगवान् ने दर्शन देकर आशीर्वाद स्वरूप यह गेरुवा रंग प्रदान किया है ताकि मैं तुम्हारा राजा बन कर तुम्हारी रक्षा कर सकूँ | अब बेचारे बाकी जानवर क्या करते सियार के प्रस्ताव को भगवान् की इच्छा समझ कर उसको अपना राजा स्वीकार कर लिया अभी उसकी ताजपोशी होने को ही थी कि उससे पहले ही जंगल में रहने वाले सियारों के एक झुण्ड ने अपनी चिर-परिचित आवाज में हुंकार भरी ” हुआं हुआं ” आवाज को सुनते ही अब या तो मजबूरी या जातिगत स्वभाव के कारण सियार भी कब तक चुप रहता वह रंगा सियार भी जोर जोर से “हुआं हुआं ” चिल्लाने लगा उस रँगे सियार की आवाज को सुनते ही जंगल के बाकी जानवरों को सारी असलियत समझ में आ गई कि यह रंगा हुआ जानवर शेर या कोई अजूबा नहीं बल्कि गीदड़ ही है | अब यह तो उनके विवेक पर है कि अब भी उसको अपना राजा स्वीकार करेंगे या नहीं क्योंकि सच्चाई तो सब के सामने आ ही गई है जंगल के जानवर उस रँगे सियार को अब भी अपना राजा स्वीकार करेंगे कि नहीं हमें नहीं पता यह तो समय ही बतायेगा :
अब अगर आज इस स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर अगर हम देखें कि जहां एक ओर देश की १२५ करोड़ जनता के प्रतिनिधि के रूप में जब देश के प्रधान मंत्री जनता को स्वतंत्रता दिवस की ६७ वीं वर्ष गाँठ के अवसर पर बीती रात मुम्बई के डाक यार्ड में हुई दुर्घटना में दो बेस्किमती पनडुब्बियों में से १८ नाविकों सहित एक पनडुब्बी जल कर नष्ट हो गई तो दूसरी को गंभीर नुक्सान भी हुआ है कि त्रासदी के उपरान्त भरे दिल दिल्ली के लाल किले से देश को बधाई सन्देश दे रहे थे लगभग उसी समय एक ६ करोड़ी स्वयंभू नेता के रूप में एक प्रदेश के मुख्य मंत्री भुज के लालन कालेज से अपने प्रदेश वासियों को स्वतंत्रता की बधाई सन्देश के बजाय, उसी रंगे सियार की मानिद बहुत ही मर्यादा हीन तरीके इस सुभ अवसर पर देश के प्रधान मंत्री की कमियों को गिनवा रहे थे उसी “हुआं हुआं” के अंदाज में, क्या यह प्रधान मंत्री पद के दावेदार के रूप में किसी भी व्यक्ति के आचरण के अनुरूप है | केवल बाह्य परिवेश बदलने लेने से कुछ नहीं होता, यदि चिंतन और चरित्र में श्रेष्ठता नहीं आती तो एक दिन सच्चाई स्वयं ही सबके सामने आ ही जायगी ? जैसा होना था वैसा ही हुआ भी साथियों ने नहिसत देनी आरम्भ भी कर दी है देखिये आगे क्या होता है ?
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