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ऐसा कहा जाता है कि पुराने जमाने में एक राजा ने आदेश दिया कि अँधेरी रात में बस्तियों और सडकों पर राज्य की ओर से रात में मशाल से रौशनी की जाय राजा का आदेश जब कार्यपालकों के पास पहुंचा तो उन्होंने कारिंदों को इस कार्य के नियुक्त कर दिया। यह भी ध्यान देने की बात है कि उस समय कोई तेल के डिपो तो होते नही थे इस कार्य के लिए भी केवल स्थानीय तेली ही तेल वाले बीजों से तेल निकालने का कार्य/व्यापार करते थे. राजा के कारिंदों ने भी अपने क्षेत्र के तेलियों के पास जाकर कहा कि राजा का आदेश है रात में मशाल जलाने के लिए आप हमें तेल दिया करों। अब यह तो हो ही नहीं सकता की राजा का आदेश हो और तेली तो क्या कोई भी आदेश का उलंघन नहीं कर सकता था । तेलियों ने सहर्ष तेल देना आरम्भ कर दिया और इस प्रकार से पूरा शहर रोशन हो गया था। सब कार्य धैर्य पूर्वक चल ही रहा था कार्यपालकों को इससे दुगनी ख़ुशी और आनंद मिल रहा था एक तो जो पैसा राज्य के खजाने से मिल रहा था वह बच रहा था दुसरे राजा भी खुश हो रहा था। लेकिन कारिंदों/ मशालचियों ( मशाल जलाने वाले ) के मन में एक कसक भी बार बार हो रही थी क्यों ? तेली मुफ्त में तेल दे रहे है हमें तो रातों में जाग जाग कर मशाल को बुझने से बचाना पड़ता है जिस कारण से नींद पूरी नहीं होती अगर साला तेली तेल ही न दे तो हमें भी आराम मिल जाय! शायद तभी से यह कहावत प्रचलित हो गई “तेली का तेल जले और मशालची की छाती फटे ”
छाती फटना भी एक मुहावरा ही है लेकिन छाती तो फटती ही है जब माले ए मुफ्त हो तो दिले बेहराम भी होता ही है। यहाँ हमारे देश में तो सबकुछ उल्टा पुलटा हो ही जाता है इस अत्याधुनिक युग में जहाँ विभिन्न प्रकार की छोटी बड़ी लाइटों के अतिरिक्त खूब सारी रोशनी देने वाली विदेशी लाइटें भी अब हमारे देश में उपलब्ध है मगर फिर भी हम सोंचे कि कोई तेली के समान तेल ही नहीं दे रहा है बल्कि एक मशाल को उठा कर खड़ा हो गया है लेकिन मशालाचियों की कहावत है की पीछा ही नहीं छोड़ती छाती तो फटनी ही है वो तो फटेगी ही – बेचारा एक अकेला गुजराती अपने सांस्कृतिक मालिक के आदेश पर एक राजनितिक पार्टी की डूबती हुई नैय्या को पार लगाने के लिए जब सैंकड़ो महारथियों के बीच में अकेला ही उसे बचाने का बीड़ा उठता है तो पुराने तजुर्बेकार बुजुर्ग किस्म के घाग नेता उसे खाने को दौड़ पड़ते है और जब तब एड़ी चोटी का जोर लगाकर उस मशालची को पीछे से खीचने का काम करते ही रहते है अब बेचारा तेली मशाल में तेल भी डाले और उसे हाथ उठा कर अकेला ही पुरे देश का चक्कर भी लगाये यह कैसे संभव हो पायेगा। राम जी कुछ सहायता करें तो संभव हो पायेगा कि मशाल भी जलती रहे और रोशनी भी हो जाए पर राम जी भी क्यों सहायता करेंगे बेचारे राम जी को उनके माता पिता ने चौदह वर्ष का ही बनवास दिया था पर आपने तो उन्हें बीसियों वर्ष पहले से निर्वाषित जीवन जीने किए लिए बेघर जो कर दिया था अब अगर वह सहायता भी करे तो कैसे अब तो केवल रहीम का ही सहारा है अगर रहीम आपके साथ तनकर खड़ा हो जाय तो मशाल की लौ कुछ अधिक चमक के साथ रोशनी पैदा कर सकती है और अन्धकार में कुछ रास्ता निकल ही सकता है परन्तु अगर-मगर के बीच डोलती नाव किस प्रकार किनारे लगेगी कौन जाने क्योंकि कुछ भी हो रोशनी कहीं भी हो तेल तो तेल वाले का ही जलेगा ? एस पी सिंह, मेरठ
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