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क्या हम कायर हैं ? ” जागरण जंक्शन फोरम “

पाठक नामा -
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हमारे देश में विशेष कर हिन्दू धर्मावलम्बियों को कायर कहा जाता है उसका कारण भी है कि जब कोई व्यक्ति किसी चींटी को भी नहीं मार सकता तो उसमे हिंसक प्रवृति कहाँ से आएगी और जब कोई हिन्दू हिंसक हो ही नहीं सकता तो कायर तो कहलायेगा और यही कारण भी है कि स्वतंत्रता के आन्दोलन में गाँधी जी ने भी अहिंसा के मन्त्र के साथ ही स्वतंत्रता के आन्दोलन को हवा दी उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि अगर कोई व्यक्ति आपके गाल पर एक थप्पड़ मारता है तो आप उसके आगे अपना दूसरा गाल भी कर दो ! यह अपने आप में अहिंसक होने की प्रकाष्ठ्ता ही है \ और मेरा ऐसा मनाना है कि अहिंसक व्यक्ति कभी व्यभिचारी हो ही नहीं सकता और शायद यही कारण भी है कि हमारे सवतंत्रता के पूरे आन्दोलन में जहां स्त्री और पुरुषों ने सामान रूप में भाग लिया आन्दोलन में कही व्यभिचार के समाचार नहीं है और अगर कहीं कोई छोटी मोटी घटना हुई भी होगी तो इतिहासकारों ने उसे महत्त्व नहीं दिया होगा ? हम अगर अपने इतिहास को देखें तो ऐसा लगता है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात छुआ छूत (अस्पर्श्यता ) का कलंक शायद समाप्ति के कगार पर ही है क्योंकि इसका असर भी देखा जा सकता कि जब कोई व्यक्ति स्वयंभू संत बन जाता है और अनधिकृत रूप से कब्जाई गई सरकारी या निजी भूमि पर बड़े बड़े आश्रम बना कर जब प्रवचन देकर जनता को भ्रमित करके सन्देश देता है कि आओ मेरे पार मैं तुम्हे मुक्ति का मार्ग दिखाऊंगा तो समाज के इसी उपेक्षित वर्ग की इन आश्रमों में कतार लग जाती है ऐसा भी नहीं है कि इन कथित कथा वाचकों रूपी संतों के आश्रम में संपन्न और सभ्रांत लोग नहीं जाते ? असल में यही वर्ग इन कथित महात्माओं का संरक्षक है ? बाकी उपेक्षित समाज तो अपनी दबी छुपी बराबरी को पाने के लिए अपने सिमित आर्थिक साधनों में से बचत करके इन आश्रमों में दिल खोल कर तन मन धन से योगदान करता है और अपने आपको धन्य समझ कर प्रसन्न भी होता है कि अब तो मैं भी सेठ धन्ना मल का गुरु भाई बन गया हूँ. ?

आजादी से पहले हमारे देश जो भी महात्मा साधू सन्यासी थे वे शांत प्रकृति के थे जो अपने आश्रमों या अखाड़ो में ही रहते थे और आश्रमों या अपने अखाड़ा क्षेत्र तक ही सिमित रहते हाँ कुम्भ के मौके पर इन लोगो के दर्शन अवश्य हो जाते थे आदि शंकराचार्यों का भी यही यत्न होता था देश की बाकी जनता से उनका परोक्ष सरोकार नहीं होता था ! परन्तु जब से कथित संत जो किसी कथा वाचक से अधिक कुछ नहीं स्वयं सिद्ध संत बन कर देश की धर्मभीरु जनता को ऐसा जहर पिलाने का कार्य कर रहे है जिसका असर कैंसर से भी अधिक घातक परिणाम देगा ! श्रधालुओं को कथा सुनाते सुनाते ये लोग कब स्वयं सिद्ध संत बन गए कोई नहीं बता सकता और जब संत बन गए है तो झाड फूंक के साथ दवाओं की फैक्ट्री लगा कर दावा भी बना कर बेच रहे है – अब जो कथा सुना कर धर्म नहीं बेच सकते वे कुछ पुराने योग आसनों की क्रियाओं को बेच कर जनता को बेवकूफ बना रहे है और अपनी तिजोरिय भर रहे हैं. हमारे समाज में हमें अपने जीवन में गुरु के महत्त्व को कूट कूट कर भरा जाता है ! गुरु के विषय में प्रार्थना भी कि जाती है ” त्वमेव माता च पिता त्वमेव विदध्या द्रविणं त्वमेव सर्वम्म देव देवो ! ” अर्थात हे गुरु तुम्ही मेरे माता पिता हो तुम्ही मेरा ज्ञान हो तुम्ही मेरी धन दौलत हो और तुम्ही मेरे भगवान् हो. ? यही कि गुरु ही सब कुछ है इस संसार में / अब जहां गुरु की इतनी महिमा हो सर्वप्रथम पूजनीय हो तो ऐसे में किसी गुरु का कोई एजेंट भी शिष्य को उसकी पुत्री को कथित तौर पर बीमार बना कर यह कहा जाय कि चलो अपनी पुत्री को गुरु जी के पास ले चलो इसकी बिमारी वाही दूर कर सकते है तो शिष्य क्योंकर न कहेगा ? ठीक ऐसा ही हुआ इस वर्ष १६ अगस्त के दिन जब उत्तर प्रदेश के एक साधारण व्यक्ति जो कथा वाचक संत आसाराम का शिष्य था उसकी पुत्री क्या बीमार हुई उसकी तो दुनिया ही लुट गई – यह लड़की आसाराम के मध्य प्रदेश के किसी गुरुकुल आश्रम में बारहवीं क्लास कि क्षात्रा थी गुरुकुल की वार्डन और सहायक के कहने पर क्षात्रा के माता पिता उसे लेकर आसाराम के जोधपुर के एक आश्रमनुमा फ़ार्म हाउस में ले कर पहुंचे तो आसाराम ने उस क्षात्रा को अपने कमरे में बंद करके क्या क्या किया वह लिखने लायक नहीं और उसके बाद की सारी कहानी किसी चल चित्र कि भांति टेलीविजन पर हर रोज प्रसारित कि जा रही है और अब तो हर रोज ही नए नए रहस्यों से पर्दा भी उठ रहा है की विगत में व्यक्ति ने कितने अपराध और किया हैं. ?
अब अपने कुकर्मो के कारण जब कथित संत महाराज आसाराम जेल में बंद है और जेल को बैकुंठ बताने वाले आसाराम जब बैकुंठ भी पहुँच गए है जो उन्हें अब नर्क की आग जैसा लग रहा है तो उनके चेले सड़को पर हुडदंग पर उत्तर आये है क्या उनके चेलों का यह कार्य किसी भेड़ चाल से कम है क्योंकि अंध भक्त और भेड़ में कोई अंतर नहीं होता ? इस लिए मैं कहता हूँ कि ऐसे व्यक्ति की पूजा करने के स्थान पर उसका तो सड़कों पर ही मान मर्दन कर देना ही श्रेयकर होगा ? पर हम ऐसा नहीं कर सकते क्योकि हम कायर जो हैं ? एस पी सिंह, मेरठ

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