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हमारे देश ही नहीं दुनिया के अनेकों देशों में तेरह (13 ) के अंक को शुभ नहीं माना जाता यहाँ तक कि विश्व के बड़े बड़े देशों के स्टार होटलों में भी इस तेरह के अंक से परहेज किया जाता हैं और होटल में किसी भी कमरे का नंबर तेरह होता ही नहीं है ? अब अगर हम बात करे अपने देश कि तो यहाँ तेरह के अंक को सुभ नहीं माना जाता शायाद इसी लिए मृत्यु के बाद जब सामान्य रूप से घर में खाना आदि बनाया जाता है तो पहले “तेरहवी” की रस्म पूरी की जाती है/ परन्तु कुछ अपवाद भी है अभी कल ही तेरह सितम्बर दो हजार तेरह को 16 दिसंबर 2012 के 4 अपराधियों को मृत्यु दंड की सजा दी गई है तो दूसरी और देश कि दूसरी सबसे बड़ी राजनितिक पार्टी के प्रधान मंत्री पद के प्रत्यासी के लिए “प्रधान मंत्री इन वोटिंग ” के नाम की घोषणा भी 13 सितम्बर 2013 को ही की गई है अब इन दोनों घटनाओं को अगर ध्यान से देखा जाय तो तेरह का अंक शुभ भी है और नहीं भी क्योंकि एक ओर जहां देश के सबसे सर्वोच्च पद की दिशा की ओर एक व्यक्ति को उनकी पार्टी के द्वारा, उस दिशा की ओर कूंच को हरी झंडी दिखाई गई है वहीँ दूसरी ओर चार लोगों को इस दुनिया से विदा करने की लाल झंडी एक न्यायधीश के द्वारा दिखा दी गई है! घटना में कोई साम्य नहीं है लेकिन दिन और तारिख में साम्य है और यही दिन और तारिख देश ही नहीं दुनिया की “तारीख” ( इतिहास ) बनता है | इतिहास भी घटनाएं ही बनाती है और अगर इतिहास को देखे तो ऐसा लगता है के तेरह का अंक स्थायितित्व नहीं देता विघटन की संभावना अधिक दिखती है जैसा कि घटनाओं से पता चलता है :
भारतीय इतिहास में हिन्दुत्त्व की पक्षधर कही जाने वाली पार्टी के मुखिया 1996 में प्रधान मंत्री के पद पर केवल तेरह ही दिन प्रधान मंत्री रह सके| उसके बाद 1998 में फिर केवल तेरह ही महीने के लिए प्रधान मंत्री रह सके तेरह से आगे नहीं बढे उसके बाद तीसरी बार जब प्रधान मंत्री बनाए गए! राष्ट्रपति के ओर से 13 अक्टूबर 1999 को तीसरी बार तेरहवी लोक सभा के लिए आमंत्रित किया गया लेकिन 2004 के हुए लोक सभा के चुनाव में यही प्रधान मंत्री ने 13 अप्रेल को जब नामांकन भरा तो 13 मई 2004 को हुई मतगणना में हार का मुख देखना पड़ा ? अब हम क्या कहे यह तो आंकड़ों का इतिहास है कि तेरह का अंक सुभ है कि नहीं यह तो केवल समय ही बता सकता है लेकिन एक सकेंत जो पार्टी के दिग्गज व्यक्ति की ओर से दिया गया है उसको शुभ तो कहा ही नहीं जा सकता है क्या यह तेरह के अंक का कारक होगा या किसी विघटन की ओर संकेत है कौन क्या कह सकता है – अब पार्टी विशेष कि ओर से जहां एक ओर देश के विभिन्न भागों में होली दिवाली जैसा जशन मनाया जा रहा तो उसी देश में मौत कि सजा पाए चार लोंगो के शहर गाँव और मोहल्लों में गम का आलम है और शायद यह भी तेरह ही दिन का हो सकता है क्योंकि मौत और मौत कि सजा में अधिक अंतर नहीं है क्योंकि सजा मिल जाने पर घटना का अंत हो जाता परन्तु सजा का ऐलान होने पर व्यक्ति तिल तिल मरता है और मृत्यु का इन्तजार ही करता रहता है शायद इसी लिए लोग कहते “तेरहवी तो हो जाने दो ”
अब इस बात से भी इनकार कोई नहीं कर सकता कि कमल का तो सिद्धांत ही कीचड़ में खिलना है तो फिर किसी को क्या आपत्ति – क्योंकि प्रधान मंत्री इन वोटिंग पर जो कीचड़ के दाग है उसको कितना भी और किसी भी प्रकार से धोया जाय वह कैसे मिटेंगे यह तो धोने वाला ही बता सकता है परन्तु एक बात निश्चित है कि सरकारी “तोता” न जाने कब इस कीचड़ पर आकर बैठ जाय और अपनी चोंच से कीचड़ को उखाड़ने लगे ? परन्तु इस प्रक्रिया में इतना तो निश्चित ही है कि तोते को कुछ मिले या न मिले कुछ कपडे तो फटेंगे ही और हो सकता है शरीर पर भी कुछ खरोंच लग जाए ? अब एक ही दिन 13 सितम्बर 2013 को हुई दोनों घटनाओं को हम सुभ या अशुभ क्या समझे किसको बधाई दे और किसको सांत्वना ! परन्तु अगर कबीर दास के अंदाज में कहें तो यही कह सकते है -” कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर ना काहू से दोस्ती न काहू से बैर ||. एस पी सिंह, मेरठ
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