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हक़ की बात !

पाठक नामा -
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आज कल राजनैतिक क्षेत्रों में बहुत गहमा गहमी है की वर्ष 2014 में कौन सी पार्टी केंद्र में सरकार बनाएगी उसके लिए राजनैतिक पार्टियाँ तरह तरह के टोने टोटके अपना रहे है और जनता को लुभाने की भरसक कोशिस भी कर रहे जबकि हकीकत यह है कि 2014 से पहले , अभी दिसंबर 2013 में ही पांच विधान सभाओं के चुनाव होने है उसके लिए कोई बात भी नहीं करना चाहता ? यानि भारतीय जनता पार्टी जो अपने अखिल भारतीय स्वरूप के अस्तित्त्व के लिए बेचैन है पहले भी मिस्टर अडवानी को “प्रतीक्षारत प्रधान मंत्री” घोषित करके बेइज्जत कर चुकी है अब एक और बडबोले व्यक्ति को “भावी प्रधान मंत्री ” की पदवी से नवाज चुकी है परन्तु यह व्यक्ति तो व्यहार में अभी से अपने आपको प्रधान मंत्री नियुक्त कर चूका है ? जैसा मन में आया बोल दिया – अभी कल कि बात है उत्तर प्रदेश कि सभा में कहा कि उत्तर प्रदेश में वर्तमान सरकार के शासन में 5000 लोगों को क़त्ल किया गया है – लेकिन वह अपने शासन काल की बात क्यों नहीं याद रखते कि उसके शासन कि नीवं ही 2000 से अधिक एक विशेष समुदाय के लोगों के एक ही दिन में हुए क़त्ल के बाद पक्की हुई थी ? इस लिए मिस्टर नरेन्द्र भाई मोदी को उत्तर प्रदेश ही नहीं किसी भी अन्य प्रदेश कि शासन व्यस्था पर अपनी राय देने का कोई हक़ ही नहीं है ? रही बात भावी प्रधान मत्री पद कि तो यह तो बात ही कुछ वैसे ही है जैसे किसी व्यक्ति ने अपने सामान ढोने वाले जानवर का नाम ही “हीरामन” रख लिया था इसलिए न तो वह “हीरा” बन सका जो अंगूठी में जड़ा जा सके और न ही बाजार में बिकने वाली वास्तु ? इस लिए भावी प्रधान मंत्री को कोई हक़ नहीं है हमारे उत्तर प्रदेश के विषय में अनर्गल बाते कहने का ?
वैसे भी एक भावी प्रधान मंत्री के पद के दावे दार व्यक्ति को गली मोहल्ले वाली छिछोरी राजनीती से ऊपर उठ कर ही व्यहार करना शोभा देता है ! जैसे हम कहें की जब अभी तीन माह पहले उत्तराखंड में जब अति वृष्टि और प्राकृतिक आक्रोश का कहर बरपा हुआ तो भावी प्रधान मत्री पद के दावेदार जी ने एक ही दिन में अपने प्रदेश के 15000 लोगों को निकालने और उन्हें सुरिक्षित गुजरात पहुंचाने का दावा अपने मीडिया प्रोपोगंडा के द्वारा प्रचारित करवाया था – और केदार नाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का प्रस्ताव भी किया था परन्तु बहुत ही दुर्भाग्य की बात है अभी हाल ही में आये फिलिंन चक्रवात में बर्बाद हुए लोगो के लिए एक शब्द सहानुभूति का भी नहीं सहयाता तो बहुत दूर | आज भी ओड़िसा में लाखो लोगों की जान तो बच गई है परन्तु उनका सबकुछ बर्बाद हो गया है न रहने को घर और न खाने को रोटी !

परउपदेश कुशल बहुतेरे :
एस पी सिंह. मेरठ. (उत्तर प्रदेश)

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