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क्या एक नालायक पति, लायक सेनापति बन सकता है ????????

पाठक नामा -
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“क्या कोई नालायक पति एक लायक सेनापति बन सकता है वह भी किसी फ़ौज का नहीं बल्कि 125 करोड़ की आबादी वाले भारतीय लोकतंत्र का” यह हम नहीं हमारे मित्र ( श्री ) मुंशी ईतवारी लाल का कहना है|
हुआ यूँ कि हमारे मित्र मुंशी जी जो अपनी सेवा निवृत्ति के बाद पिछले 25 वर्षों से सरकारी पेंशन पर पल रहे है – कभी कभी हमसे मिलने आते है रहते है लेकिन गजब का संयोग है सेवा निवृत्ति के बाद भी उनका नियम भी वही पुराना ही है कि रविवार ही छुट्टी मनाने के लिए होता है : अभी जब पिछले रविवार को आये तो बोले –
“यार ठाकुर तुम यह बताओ कि जब कोई व्यक्ति एक अच्छा और लायक पति नहीं बन सकता वह एक लायक सेना पति कैसे बन सकता है | वह भी किसी फ़ौज का सेनापति नहीं बल्कि देश कि सत्ता का सेनापति यानि कि भारत का प्रधान मंत्री ”

हम बोले -” यार मुंशी ! तुम्हे तो पता ही है कि राजनीती में हमारा हाथ कुछ तंग है | राजनीती से एलर्जी भी इसी कारण से है फिर भी तुम ये राजनितिक पहेली हमसे क्यों पूंछ रहे हो ! यह प्रधान मंत्री वाली पहेली हमसे ही क्यों हल करवाना चाहते हो बहुत ऐरे गिरे छोटे बड़े सभी प्रकार के नेता तो तुम्हे मिल ही जायंगे ?”

मुंशी जी बोले –“अबे ठाकुर ! बात है हमारे घर कि और तुम ठहरे हमारे मित्र तो तुमसे अच्छा और कौन हो सकता है जो हमें सही सलाह दे सके ? – बात यह है कि तुम्हारा भतीजा और हमारा नालायक बेटा ! जिसे तुमने भी बचपन में गोद खिलाया है | मैं उसी नालायक कि बात कर रहा हूँ. तुम तो जानते ही हो कि उसने शादी के बाद ही अपनी पत्नी को त्याग दिया था न तो उसे तलाक दिया और न ही उसे अपने साथ रखा | वह बेचारी आज भी गुजरात के किसी प्राइवेट स्कूल में प्राइमरी के बच्चों को पढ़ा कर अपने भाइयों के साथ रह कर किसी प्रकार जीवन यापन कर रही है|”
इतना कह कर मुंशी जी कुछ निराश होकर हांफने लगे – फिर कुछ रुक कर बोले –
“हमारा वही नालायक बेटा कहता है कि क्योंकि देश कि सभी राजनितिक पार्टियों की स्वीकार्यता उनके अपने अपने सद्कार्यों के कारण समाप्ति कि ओर है और देश की जनता में घोर निराशा व्याप्त हो चुकी है – इस लिए वह भी वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनाव में “बाप” नामक पार्टी से प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ना चाहता है ! चाहता क्या है इस बात का ऐलान कर भी चुका है”
मुंशी जी की कथा व्यथा सुनने के बाद हम बोले – “यार मुंशी इसमें बुरा क्या है चुनाव लड़ना चाहता है तो लड़ने दो, वह जिस पार्टी से जुड़ा है जब वह पार्टी चाहती है तो तुम्हे क्या एतराज यानि कि आपत्ति क्यों है ”
“अबे ठाकुर ! तुम मेरे दोस्त हो या दुश्मन !! मैं तुम्हारे से सलाह मांग रहा हूँ और तुम दुश्मनी निभा रहे हो !!! आज इस राजनीती की गंदगी में कोई अपने दुश्मन को भी जाने को नहीं कहता और तू कैसा मेरा दोस्त है जो मेरे बेटे को इसमें कूदने की बात करता है ? ” इतना कह कर मुंशी गुस्से में भर गए फिर आगे बोले :–
“तुम हमारे एतराज की बात करते हो ! हाँ मुझे एतराज है !! वह भी इस बात का कि जो व्यक्ति अपने पुरुष होने का दायित्त्व आज तक नहीं निभा पाया तो उसके पुरुष होने का विश्वाश कोई क्योंकर करेगा – प्रधान मंत्री बनाना तो बहुत दूर की कौड़ी है इस पद के लिए प्रत्यासी होना भी कोई पसंद नहीं करेगा ?”
मुंशी जी की बात सुन कर हम बोले — “भाई मुंशी पहले तो तुम अपना गुस्सा थूक दो इस उम्र में गुस्सा करना तुम्हारी सेहत के लिए ठीक नहीं है – इस लिए ठन्डे दिमाग से सोंचो और बताओ कि क्या कोई अविवाहित या रंडुआ व्यक्ति यानि पुरुष क्या पुरुष की श्रेणी से बाहर हो जाता है या कोई ब्रह्मचारी पुरुष नहीं होता है कैसी बच्चों जैसी बात करते हो ? – यार !! शादी विवाह, परिवार बच्चे तो नेताओं के लिए बाधा ही होते है| नेताओं का जीवन तो स्वछंद ही होना चाहिए | इस लिए परिवार के दायित्त्व से मुक्त व्यक्ति ही देश का एक अच्छा सेनापति हो सकता है – और तुम यह क्यों भूल रहे हो कि हमारे देश का एक प्रधान मंत्री भी तो अविवाहित ही था क्या उस व्यक्ति ने देश का शासन चलाने में कोई कसर छोड़ी थी | यह बात और है कि उनके छ: वर्ष शासन करने के बाद भी जनता ने उन्हें अगले चुनाव में – भाव नहीं दिया – इस लिए बेटा मुंशी तुम्हारा एतराज करना सिंद्धांत रूप से नितांत गलत ही नहीं बेवजह ही ढपली बजाने जैसा है”
और सुनो — “नेताओं के लिए तो वैसे भी परिवार, पत्नी , बच्चे होना न होना महत्त्वपूर्ण है ही नहीं – परिवार न होने से जहां एक ओर उनकी छवि साफ़ सुथरी रहती है वहीँ दूसरी ओर परिवारवाद के कलंक से मुक्त होते हैं ?”
अब तो हमारी बातों का असर मुंशी जी पर क्या हुआ जब हमने उनकी ओर देखा तो – उनका चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था अभी वह कुछ बोलते उससे पहले हमने ही बोलना शुरू कर दिया — ” बड़े भाई पहले तो आप पानी पियों और फिर चाय नास्ता आपका इन्तजार कर रहा है” और फिर विषय बदलने के विचार से हमने कहा — “यार मुंशी यह तो बताओं 10 प्रतिशत महंगाई भत्ता बढ़ने के बाद तुम्हारी पेंशन कितनी हो गई है”
इतना सुनाने के बाद मुंशी जी के चेहरे पर एक मुश्कान आई और फिर हंस कर बोले –” अबे क्या बढ़ी और क्या न बढ़ी !! बुरा हो इन मीडिया और अखबार वालों का जो तिल का ताड़ बना देते है ? अभी कल ही सब्जी वाले से जब हमने कहा कि भाई एक पाँव प्याज दे दो तो पट्ठा क्या बोलता है मुंशी जी अब तो आपका महंगाई भत्ता 80 प्रतिशत बढ़ गया है और आपतो आस्सी के ऊपर भी हो गए हो आपको तो 20 प्रतिशत पेंशन भी अधिक मिलती होगी फिर भी एक पाँव प्याज खरीद रहे हो !! और सुनो बेटा भी कहता है कि मैं दिल्ली वाला मकान बेच कर सारा पैसा उसे दे दूँ तो उसका चुनाव का खर्च भी पूरा हो जाएगा ?”
” बेटा ठाकुर इस लिए मुझे एतराज है और इस लिए मैं नहीं चाहता कि मेरा नालायक बेटा जिसने अपना पारिवारिक दायित्त्व नहीं निभाया है इस देश का प्रधान मंत्री बनना तो दूर प्रत्यासी भी बने इस लिए मैंने फैसला भी कर लिया है कि मैं अपना दिल्ली वाला मकान बेच कर किसी सद्कार्य में ही खर्च करूँगा राजनीती कि गंदगी में नहीं ”
हम बोले –” यार मुंशी !!तुम तो सठिया ही नहीं अस्सिया चुके हो पर तुम्हारा बचपन अभी भी नहीं गया है| इस लिए तुम नादानी दिखा रहे हो – अबे ! जानते हो ? अभी आज जो दो व्यक्ति पप्पू और फेंकू इस चुनावी समर में दहाड़ते फिर रहे है की कौन प्रधान मंत्री बन कर श्रेष्ठ होगा अपनी अपनी अकल के हिसाब से जनता को बरगलाने की कवायद में न जाने क्या क्या उल जलूल बोल जाते है दोनों ही परिवार और बच्चों के दायित्त्व से मुक्त हैं एक ने अभी शादी ही नहीं की है दुसरे के बारे में पता नहीं , की है, या नहीं की है ? इस लिए तुम भी अपने बेटे चम्पू को इन पारिवारिक दायित्त्व मुक्त व्यक्ति कि लाइन में लग ही जाने दो ? अगर राम जी ने मेहरबानी कर दी तो क्या पता तुम्हारे बेटे की ही लाटरी लग जाय और आज का नालायक चम्पू कल एक सफल सेनापति बन जाय – हमारी तो शुभ कामनाएं आज ही स्वीकार करके हमें अनुग्रहित कर दो. क्या पता कल हो या न हों ?” एस पी सिंह, मेरठ

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