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गुनाह/अपराध एक जैसा क्या सजा भी एक जैसी होगी !!!!

पाठक नामा -
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दाउद इब्राहिम जो एक छोटा मोटा गुंडा हुआ करता था| आज विश्व के सबसे बड़े लोक तंत्र भारत का दुश्मन नम्बर एक है| | ऐसा भी नहीं है कि वह केवल भारत में अपराध ही करता है वह यहाँ के भ्रष्ट और देश द्रोहियों के साथ मिल कर अखबारों और मिडिया के खबरों के अनुसार, खेल से लेकर खिलाड़ी व्यापार से लेकर फ़िल्म इंडस्ट्री तक में दखल ही नहीं रखता बल्कि अपने इशारों पर चलाता है, और देश के सारी ख़ुफ़िया एजेंसी और पुलिस बेबस है ? भारत इतना बेबस है कि उसने इंटरपोल से मदद भी मांगी है आगे देखते हैं क्या होता है | साथ ही यह भी सबसे बड़ा सवाल है कि जब वह भारत में अपराध करता है तो क्या वह स्व्यं यहाँ आकर अपराध करता है या उसके संगी साथ और किराए के लोग भारत में अपराध करते है या वह भारत में रह रहे अपने लोगों से करवाता है | यह तो हुई एक अपराधी की बात अगर पकड़ा भी गया तो क्या भारत की न्याय व्यवस्था उसे अपराधी साबित करके उसे सजा भी दे पायेगी | क्योंकि भारत का क़ानून सबूतों के आधार पर चलता है हमारी न्याय की प्रतीक देवी की आँख पर पट्टी बंधी हुई है अर्ताथ अंधी है केवल प्रमाण/सबूतों के आधार पर न्याय होता है – और प्राकृतिक न्याय की अवधारणा के अनुसार कानून का यह सिद्धांत है कि न्याय करते समय किसी भी बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए , फिर चाहे कानूनी प्रक्रिया को पूरा करने में कितने ही गुनाहगार छूट क्यों न जायं | इस लिए हमें अपने लोकतंत्र पर गर्व होना ही चाहिए और इस बात का हमें भी अभिमान है की हम भी उसी लोकतंत्र का एक हिस्सा हैं|
एक बात तो स्व्यं सिद्ध है कि भारत की न्याय व्यस्था इतनी सुदृढ़ है कि अगर किसी जिला स्तर के कोर्ट से न्याय नहीं मिल पाता तो उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय से दूध का दूध और पानी का पानी अलग हो जाता है और निर्दोष अवश्य ही छूट जाता है और अपराधी कितनी भी प्लानिंग करे उसे तो सजा अवश्य ही मिलती है | लेकिन न्याय की अंतिम पायदान तक पंहुचने तक व्यक्ति या तो ऊपर भगवान् के पास पहुँच जाता है या कंगाल हो जाता है | जैसा कि अभी अभी दो राज नेताओं को जेल की सजा मिली है एक तो एक प्रदेश के मुख्य-मंत्री भी रह चुके है तथा दूसरे केंद्र सरकार के मंत्री रह चुके है | इसलिए हम यह बात गर्व के साथ कह सकते कि कानून के आगे सब बराबर है जहां राज नेता भी सजा भुगत सकते हैं |

लेकिन यह भी सच है कि किसी पर भी लगाए गए तमाम आरोप सही नहीं हो सकते न्यायालय तक जाते जाते उनका आधार ही समाप्त हो जाता है लेकिंग अगर अपराध वास्तव में किया गया है तो उसकी सजा भी मिलती है | इस लिए राजनीती में तो आरोप प्रत्यारोप रोज ही रोज थोक के भाव से लगते रहते है लेकिन आरोप लगाने वाले नायालय में नहीं जाते कोई मुकददमा कायम क्यों नहीं करते यह सबसे बड़ा सवाल है ? लेकिन राजनितिक दल अपने अपने राजनितिक लाभ के लिए इस प्रकार का प्रोपोगंडा करते ही रहते है और जिस बात का आधार होता है वह तो ठीक लेकिन बिना आधार के आरोप भी जब तब हवा में झूलते रहते है जिनका कोई आधार नहीं होता ?

एक ओर विपक्ष की पार्टी किसी बेदर्द जल्लाद के समान हर समय हाथ में कोड़ा ले कर सरकार पर हर करवट से प्रहार करने से नहीं चुकती | प्रधान मंत्री से लेकर छोटे मोटे मंत्रियों पर जब तब आरोपों का गट्ठर ही लादते रहते है परन्तु नायालय में मुकददमा आज तक नहीं चला सके | हूँकि हमारा मानना है और भारत की न्याय व्यवस्था पद को नहीं देखती केवल अपराध को देखती है ? इस लिए अगर विपक्ष कि पार्टी के पास कुछ प्रमाण है तो वह नयायालय में क्यों नहीं जाती और अगर नायालय में अपने आरोपों को सिद्ध कर सकती है तो निश्चय ही अपराधी व्यक्ति को जेल जाना ही होगा अब वह व्यक्ति वर्त्तमान प्रधान मंत्री हो या कोई छोटा मंत्री या संत्री हो | पर शायद यह कदम विपक्ष कि पार्टी उठा नहीं सकती कि वह किसी नयायालय में जाकर मुकददमे दायर कर सके चूँकि उसे डर है कि अगर उसने ऐसा किया तो उनकी पार्टी का वह विवादित व्यक्ति जो आज भावी प्रधान मंत्री के पद का दावे दार है मुसीबत में आ जायेगा क्योंकि वर्ष 2002 के साम्प्रादायिक दंगे आज भी उस व्यक्ति का अतीत पीछा छोड़ते नहीं हैं?

जैसा कि मैंने ऊपर भी कहा है कि सुदूर विदेश में बैठा दाउद इब्राहिम भारत में अपराध करने के लिए आरोपी बन सकता है और उस पर इंटरपोल से मदद मांगी जा सकती है लेकिन भारत के गणराज्य के एक प्रदेश का एक मुख्य मंत्री वर्ष 2002 के साम्प्रदायिक दंगों के अपराध से कैसे बच सकता है ? जबकि उसके दो दर्जन से अधिक शीर्ष अधिकारी आज भी जेल में बंद है जमानत के प्रयास करके हार धुके है ? इतना ही नहीं साम्प्रदायिक दंगों के आरोप में कई लोगो को जान से मरवाने की गुनाहगार एक महिला मंत्री को भी २८ वर्षों की सजा मिली है फर्जी एनकाउंटर में बेगुनाह एक छात्रा सहित अनेकों लोगो को सरेराह जान से मारने के आरोप में चल रहे मुकददमे में जमानत पर छूटे व्यक्ति के कारनामे कौन नहीं जानता ? और आज भी उत्तर प्रदेश में बैठ कर यह व्यक्ति क्या गुल खिलायेगा कौन जाने ? इसलिए यह एक अजीब विडंबना है कि जिस व्यक्ति के संरक्षण में एक प्रदेश में साम्प्रदायायिक दंगों को अंजाम दिया गया तो वह व्यक्ति अपराधी क्यों नहीं हो सकता और उस पर मुकददमा क्यों नहीं चल सकता क्या इस लिए कि वह राज नेता है आज एक जाति विशेष की नज़रों में वह अब भी अपराधी है लेकिन पुरे देश में घूम घूम कर अपने प्रधान मंत्री बनने का पूरा प्रयास ही नहीं सड़यंत्र भी रच रहा हो जिसके लिए जनता की गाढ़ी कमाई का करोड़ों रुपया खर्च किया जा रहा आखिर क्यों ? शायद यह इस लिए वर्त्तमान राजनितिक नेताओं ने आपस में मिल कर यह निर्णय कर ही लिया है कि हम एक दूसरे पर कीचड़ तो अवश्य फेंकेंगे लेकिन तलवार से वार नहीं करेंगे ? इस लिए हम समझते हैं कि इस देश में एकजैसे अपराध के लिए एक जैसी सजा नहीं मिल सकती राजनितिक लोगों के लिए अलग और बाकी साधारण लोगों के लिए अलग. !!!!!! एस पी सिंह, मेरठ

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