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भष्मासुर और भष्मासुर

पाठक नामा -
पाठक नामा -
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अपनी पूरी भरपूर जिंदगी हिंदुत्व की विचार धरा को पैना करने और उसे पल्ल्वित – पुष्पित करने में लगाने वाले भारतीय जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक का सफ़र पूरा करने वाले वयोवृद्ध नेता श्री लाल कृष्ण अडवाणी जी, लगता है अब अपनी उम्र के साथ सठिया गए हैं । कभी जिन्नाह को सैकुलर स्थापित करने के चक्कर में स्व्यं ही नेता प्रतिपक्ष के पद से बहुत ही निरादर पूर्वक सम्मान के साथ विस्थापित कर दिया गए थे ! आज भारतीय जनता पार्टी के प्रधान मंत्री पद के घोषित प्रत्यासी के आदर्श पुरुष कांग्रेस के एक स्थापित कद्दावर नेता सरदार पटेल को सांप्रदायिक कहने से भी संकोच नहीं अब इतना सब कुछ करने के लिए उन्होंने बहुत ही चतुराई से किसी अप्रकाशित पुस्तक का सहारा लिया है ? जिसमे उस समय के प्रधान मंत्री ने अपने उपप्रधान मंत्री और गृह मंत्री सरदार पटेल को हिंदुत्व का पोषक कहा था – वैसे भी यह कांग्रेस पार्टी का अपना मामला है ? किसी और का नहीं ?
वैसे भी श्री अडवाणी और विवादों का चोली दामन का साथ रहा है अभी कुछ समय पहले भी उनके लाख विरोध के बाद भी उनकी पार्टी ने प्रधान मंत्री पद के उम्मेदवार का ऐलान कर ही दिया था । अब शायद ऐसा लगता है कि मोदी के बढ़ते हुए कद को देखते हुए उन्हें अपना भविष्य ही अंधकारमय लगने लगा है और इसीलिए उन्होंने मोदी के आइडल पुरुष श्री सरदार पटेल ( लोह्पुरुष ) को साम्प्रदायिक ठहराने के लिए ही स्व० नेहरू का ही सहारा क्यों न लेना पड़ा हो । और एक तीर से दो शिकार करने के लिए शब्द बाणो को छोड़ ही दिया है । और ऐसा कह कर उन्होंने जहां एक ओर अपने मन की पीड़ा कही है दूसरी ओर उन्होंने मोदी के मुंह पर एक तमाचा भी जड़ दिया है ! जो लौह पुरुष का आवरण ओढ़ना चाहते थे । ऐसा कह कर उन्होंने मोदी को यह सन्देश भी दिया है कि जिस व्यक्ति को वह अपना आदर्श बनाना चाहते है वह एक साम्प्रदायिक व्यक्ति था ? जब कि आजकल मोदी अपनी सैकुलर छवि का विस्तार करने के लिए बुरका और टोपी को तरजीह देने में लगे हुए है ऐसे में विवाद क्यों. ?
हम जितना जानते है श्री अडवाणी की राजनीती एक धूर्त किस्म की राजनीती ही रही है । चाहे एन डी ए के शासन काल में भले ही उन्होंने सरकार बनाने में श्री बाजपाई जी के नाम को आगे किया हो लेकिन उसके बाद उन्होंने हमेशा यही चाहा कि प्रधान मंत्री का पद वह स्व्यं सम्भाले और बाजपाई जी राष्ट्रपति बन जाय ? परन्तु ऐसा नहीं हो सका इसीलिए कारगिल युद्ध के बाद मियां मुशर्रफ़ और बाजपाई जी के बीच आगरा समिट को पलीता लगा कर सफल नहीं होने दिया -अन्तोगत्वा उप्रधान मंत्री का पद हथिया लिया ?

यह भी कटु सत्य है कि भले ही श्री अडवाणी अपनी उपलब्धि गिनवाने के लिए यह कहते है कि लोक सभा कि २ सदस्यों से २०० तक पहुँचाने में उन्होंने बहुत योगदान किया है लेकिन यह दुरूह कार्य उनके अकेले के बस का कदापि नहीं था इस कार्य के लिए भी उनके पितृ संघठन का ही योगदान था ! लेकिन ऐसा लगता है कि एक समय के प्रचारक अडवाणी को जिस प्रकार उनके पितृ संघठन ने बुलंदियों पर पहुँचाया था परन्तु वह उसी संघठन को आधुनिक भष्मासुर के सामान भष्म कर देना चाहते है ? अब वह अपने कार्य में कितना सफल होंते है यह तो समय ही बतायेगा ? लेकिन उनका संघठन ऐसा कभी भी नहीं होने देगा क्योंकि आज महादेव (आर एस एस ) के पास एक नहीं दो भष्मासुर तैयार है गुरु और चेले अब देखना यह है कि गुरु चेले को चलता करता है या चेला गुरु को ठिकाने लगता है – होना तो कुछ अवश्य ही है लेकिन इन्तजार जो जरूरी है और हम वही कर रहे हैं ? कि इतिहास कौन सी करवट लेता है ?
एस पी सिंह, मेरठ |

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