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” सीस पग न झगा तन में प्रभुए जानै को अहिबसौ केहि गामा।
धोती फटी सी लटी दुपटी अरुए पाँए उपमाह की नहीं सामा।।
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एकए रह्यो चकिसौ वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धामए बतावत आपनो नाम सुदामा।।
श्री कृषण और सुदामा मिलन की करुणा मयी कविता “सुदामा चरित्र ” स्व० श्री नरोत्तम दास ने लिखी थी जिसमे उन्होंने सुदामा जो एक स्वाभिमानी ब्राहम्ण जो भगवान् श्री कृषण का बाल सखा सहपाठी और मित्र था घोर विपणता और गरीबी में होते हुए भी अपने मित्र से सहायता लेंने में सकुचाता था, एक दिन पत्नी के बहुत आग्रह के बाद कृष्ण से मिलने जाते है। यह वर्णनन उसी समय को दर्शाता है।
लेकिन हम आपको आज के एक आधुनिक सुदामा के दर्शन कराते है। जो इस प्रकार से है ;
हरयाणा प्रदेश के जिला हिसार के एक गाँव का बालक जो जन्म से ब्राह्मण तो नहीं अपितु एक वणिक है अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करके राजनितिक सत्ता रूपी कृष्ण कि तलाश में पहले तो पहुंचा ‘विश्कर्मा’ जी के मंदिर में सृजन विज्ञानं की शिक्षा प्राप्त करने के लिए लेकिन शिक्षा पूरी करने के बाद उसे पता चला कि यह रास्ता तो बहुत लम्बा है राजनितिक सत्ता रूपी कृष्ण को पाने के लिए। इस कारण से कुछ दिन नौकरी तो जरूर कि पर जल्दी ही अलविदा में कह दी। वहाँ से सीधे ब्र्ह्मा जीके अवतार गृह विभाग के प्रशासनिक विभाग में आई ए एस बनने के लिए परन्तु वहाँ लक्ष्य ही को कम रह गया तो हमारे आधुनिक सुदामा को मिला कुबेर के खजाने के अवतार राजस्व विभाग में आई आर एस प्रभाग कुछ दिन बिताने के बाद सुदामा जी पता चला कि यह विभाग तो बहुत ही भ्रष्ट है यहाँ पर कोई कार्य बिना फूलपत्र के होता ही नहीं – अब तो सुदामा जो केवल एक ही रास्ता दिखाई दिया कि क्यों न भ्रष्टाचार को हो मुद्दा बना कर संघर्ष किया जाय शायद यही रास्ता राजनितिक सत्ता रूपी कृष्ण को प्राप्त करने का एकपत्र विकल्प हो सकता है। बस फिर क्या था सुदूर महाराष्ट्र के एक अनजान से जिला में रहने वाले एक आधुनिक गांधी जैसा व्यक्ति जो बहुत वर्षों से भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष कर रहा था। उस गांधीवादी को लाकर देश की राजधानी के ह्रदय स्थल जंतर मंतर पर तेरह दिन के लिए आमरण अनशन पर बैठा दिया यहाँ तक कि उसे ही रजजनीतिक सत्ता रूपी कृष्ण मिलन का मोहरा ही बना दिया। यहाँ तक कि उसे दधीचि बनाने में भी संकोच नहीं किया। लेकिन ऐसा हो न सका. सीधा सादा सा गांधी जैसा दिखने वाला व्यक्ति शीघ्र ही इसके चंगुल से निकल ही गया। लेकिन तब तक हमारे सुदामा जी चंदे के रूप में अपार धन बना ही लिया था। अबतक अपने सुदामा जी सुदामा न होकर एक रणनीतिक योद्धा के रूप में चतुर राजनितिक अवतार में अवतीर्ण हो चुके थे। लेकिन कृष्ण मिलन कि चाहत अभी भी पूरी नही हो सकी थाई इसलिए सुदामा जी ने राजनितिक सत्ता रूपी कृष्ण से मिलन के लिए स्व्यं ही राजनीती का चोला ओढ़ ही लिया। जोकि राजनितिक सत्ता प्राप्ति का एक सुगम और सीधा रास्ता है। चुनाव का ऐलान भी हुआ तो सुदामा जी ने भी अपनी एक राजनितिक पार्टी बना ली आम आदमी की पार्टी – अब तो कृष्ण और सुदामा के मिलन का संयोग भी बन ही गया लेकिन कृष्ण कि नगरी द्वारका नहीं आज इंद्रप्रष्थ है जहां किसी को कृष्ण रूपी सत्ता से मिलने के लिए एक शर्त है कि सत्तर के आधे से अधिक चाहे 36 ही क्यों हो इससे कम के व्यक्ति को कृष्ण नहीं मिल सकते सुदामा जी ने जब अपने साथ आये ग्वाल बाल कि गिनती की तो वह केवल 28 ही निकले अब तो सुदामा जी बहुत छटपटाये लेकिन होता क्या है जमा पूंजी तो समाप्त हो चुकी थी दुबारा अगर कृष्ण मिलन कि चाह हुई तो क्या होगा अभी इस उहा पोह में थे कि पीछे के गलियारे से कंस की सेना के प्रहरियों ने हुंकार भरी और द्वार-पाल ( उप राज्य पाल ) से कहा कि सुदामा को इंद्रप्रस्थ में प्रवेश के अधिकार कि गिनती हम आठ लोग मिल कर पूरी कर देते है ? फिर क्या था द्वार पालको दंडवत नंगे पाँव ही सुदामा जी की अगवानी को आगे आना ही पड़ा। आखिर आधुनिक सुदामा जी सत्ता रूपी कृष्ण का मिलन हो ही गया – और आज जब यह पोस्ट लिखी जा रही है कंस की सेना के प्रहरियों ने अगले छ महीने के लिए सुदामा जी के लिए इंद्रप्रस्थ में निवास की अस्थाई व्यवस्था करवा ही दी है – आगे देखिये क्या होता है ? एस पी सिंह, मेरठ।
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