पाठक नामा -
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हमारे एक पडोसी एक वकील साहेब है जो कभी कभी अपने मन की कशक को अभिव्यक्त करते रहते है यहाँ उनकी एक ताज़ी रचना का बखान कुछ इस तरह है :
शब्द उनके, होंठ आपके ऐसे में कोई बात नहीं बनती |
बात जब बनती है , जब शब्द भी आपके हों, होंठ भी आपके हों ||
कोई भी बात गले से नीचे तब तक नहीं उतरती |
जब तक अपने दिलों दिमाग से न कही हो ||
उधार की जिंदगी से, जिंदादिली की एक दिन की जिंदगी अच्छी है |
एक में गुलामी की कसक दूसरे में आजादी का परवाना है ||
मकान – दूकान, रुपया पैसा सोना चांदी अपने पास होने से कोई धनवान नहीं होता |
धनवान होने के लिए और भी बहुत कुछ ||
आप आप हैं, किसी के प्रतिनिधि या दलाल नहीं |
उनके पास ज्यादा , आपके पास कम ,
पर इसका आपको या हमको कोई मलाल नहीं ||
++राजेश भल्ला, एडवोकट, कंकर खेड़ा , मेरठ ,+++
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