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भारत के सबसे मुखर और सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन और हिन्दुत्त्व के पुरोधा को अब इस बात को स्वीकार कर ही लेना चाहिए कि उसके स्वयं सेवकों के लिए बनाई गयी आचार संहिता के अब कोई मायने नहीं रह गए है। स्वयंसेवक रहते हुए ब्रह्मचारी रह कर संघठन के कार्यकलापों को संचालित करने के लिए ब्रह्मचर्य वृत्त का पालन करने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन अगर वही व्यक्ति सार्वजानिक जीवन यानि की राजनीती में आता है तो उसको विवाह करने की छूट होनी ही चाहिए। और अगर इस प्रकार की छूट नहीं होगी तो आगे भी बहुत ही हास्यास्पद स्थिति पैदा हो सकती है। विगत में जिस प्रकार की किरकरी हुयी थी उसको शायद लोग भूल चुके होंगे। परन्तु चाल ,चरित्र, चिंतन का ढिंढोरा पीटने वाले लोगों को कम से कम भारतीयता का परिचय तो देना ही चाहिए ;?
प्रथम : भारत वर्ष के विपक्ष के (भाजपा ) पहले प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी भी एक स्वयं सेवक थे वह भी आजीवन अविवाहित ही रहे (हैं) यह व्रत उनको केवल स्वयं सेवक होने के कारण ही लेना पड़ा होगा ऐसा मेरा विश्वाश है। लेकिन उन्होंने इस तथ्य को खुले दिल से स्वीकार किया की वह अविवाहित है कुवांरे नहीं है। उनका प्रधान मंत्री का कार्यकाल भी भाजपा के इतिहास में : “स्वर्णिम अक्षरों “में लिखा ही जाएगा।
द्वितीय : संघठन के थिंक टैंक और एक साधवी की प्रेम प्रसंग की दास्ताँ भी इतिहास के पन्नो में अवश्य ही स्थान पा चुकी है उनको भी संघठन ने विवाह करने की इजाजत नहीं दी थी। क्या यह संघठन की हिटलर शाही के रूप को नहीं प्रदर्शित करता है जहाँ व्यक्ति की अपनी इच्छाओं का अनादर किया जाता है केवल अपने मनगढ़ंत सिद्धांतो को पूरा करने के लिए।
तृतीय : यह सबसे ताजा और चर्चाओं में बना रहने वाला विवाद – है हमेशा विवादों से घिरे रहने वाले भाजपा के प्रधान मंत्री पद के दावेदार जो की मूलतः एक स्वयंसेवक ही है जब उन्होंने ने लोकसभा के लिए परचा भरा तो उसमे यह स्वीकार किया की वह विवाहित है और उनकी पत्नि उनसे अलग रहती है। बहुत ही अचंभित करने वाला सवाल है की जब पिछले तीन बार विधान सभा का पर्चा भरने के दौरान अपने विवाहित जीवन के बारे में कभी भी कोई घोषणा नहीं की अब लोक सभा के प्रत्यासी के रूप में ऐसी कौन सी कानूनी बाधा थी जिसके चलते पैंतालीस वर्ष पूर्व हुए विवाह को सार्वजनिक करना पड़ा है – क्या मजबूरी थी ? वैसे उनके इस कबूलनामे से बहुत पहले इस प्रकार की खबरे यदा कदा अखबारों और टी वी न्यूज में चलती रहती थी की नरेंद्र भाई मोदी विवाहित है और उनकी पत्नी का नाम जसोदा बेन है वह गुजरात के किसी गाव में अपने भाइयों के साथ रहती है और किसी स्कूल में टीचर है , परन्तु नरेंद्र भाई मोदी या उनके शुभचिंतकों ने न तो कभी खंडन किया और न कभी स्वीकार किया ?
लेकिन यह सवाल इतना छोटा भी नहीं है की भारत जैसे देश में इसे यूँही भुला दिया जाय ? वह भी तब जब दावेदार प्रधान मंत्री बनने के लिए उतावला हो तो देश की एक सौ बीस करोड़ जनता के साथ साथ हम तो सवाल करेंगे ही :
पहला सवाल : क्या ऐसा व्यक्ति जो व्यक्ति अपनी महिला (पत्नी) की इज्जत करना जनता ही नहीं वह देश का प्रधान मंत्री बनने के बाद देश की आधी आबादी स्त्री धन की इज्जत और रक्षा किस प्रकार से करेगा – क्योंकि स्त्रियों के विषय में उस व्यक्ति के चिर परिचित अंदाज और कार्यों ? जिसके कारण भी है (१) अपनी ही एक सहयोगी मंत्री जो २००२ की हिंसा की आरोपी होकर २७ वर्षों की जेल की सजा भुगत रही है उसके लिए फांसी की मांग की थी ? (२) इशरत जहां के फर्जी मुठभेड़ का किस्सा अधिक पुराना नहीं है (3) फर्जी मुठभेड़ में माहिर गुजरात की पुलिस और प्रशासन ने जहां एक और शोराबुद्दीन को फर्जी मुठभेड़ में निबटाया वहीँ उसकी पत्नी कौशर बी को भी खत्म कर ही दिया – भले ही यह तर्क दिया जा सकता है की इसमें मुख्या मंत्री की कोई भूमिका नहीं है परन्तु क्या स्टेट का मुखिया होने के बाद कोई नैतिक जिम्मेदारी बनती है की नहीं – अभी तो दर्जनो पुलिस अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के सीधे दखल के बाद जेलों में बंद है जब फैसला होगा तब पता चलेगा ? और सहयोगी गृह मंत्री आरोपों के तहत गुजरात से ताड़ी पार किया हुआ है ?
दूसरा सवाल : अब यह तो निर्वादित सत्य है की नरेंद्र भाई मोदी विवाहित व्यक्ति है और पिछले ४५ वर्षो से अपनी पत्नी को न तो तलाक दिया है और न ही स्वीकार किया है – चूँकि यह भारत में ही संभव है जहां स्त्री अपने पतिव्रत के धर्म को पालन करने में अपना पूरा जीवन ही अर्पित कर देती है और यही जसोदा बेन ने भी किया है ! जबकि दूसरी ओर नरेंद्र भाई मोदी जसोदा बेन के कानूनी पति एक राज्य के एकक्षत्र दबंग मुख्यमंत्री के रूप में पिछले १५ वर्षो से मौज काट रहे है – दुनिया भर की सभी सुविधाओं का उपयोग धड़ल्ले से कर रहे है – क्या इस जघन्य अपराध के लिए कानून में किसी प्रकार का कोई प्रावधान है की नहीं हम तो नहीं जानते / लेकिन सामाजिक और प्राकृतिक न्याय की अवधारणा के अनुसार हम तो केवल इतना ही जानते हैं इस ऐसे व्यक्ति को सजा अवश्य ही मिलेगी :
तीसरा सवाल : यह तीसरा सवाल सीधे नरेंद्र भाई मोदी के चरित्र पर ही प्रशन चिन्ह लगता है की जब वह विवाहित थे तो उन्होंने ने बिना तलाक लिए अपने आप को आर एस एस का अविवाहित ब्रह्मचारी स्वयं सेवक किस प्रकार से बना लिया क्या यह दोहरे चरित्र का मामला नहीं बनता – इसमें आर एस एस को भी देश को सामने से ही जवाब देना ही होगा की क्या उसके और भी स्वयं सेवक इस प्रकार का दोहरा व्यक्त्तिव रखते है जिनके बल पर वह देश के सत्ता पर काबिज होना चाहता है ?
चौथा सवाल : सबसे गंभीर सवाल तो यही है की एक व्यक्ति जो अपनी ही धुन में आगे बढ़ने के लिए सभी प्रकार की अड़चनों को सुलझाने के बजाय उन्हें नैतिक अनैतिक किसी भी तरीके से दूर करने में विश्वाश रखता हो – चाहे अपने सीनियरों को निबटना हो चाहे विरोधोयों को समाप्त करना हो सबके लिए एक ही पैमाना – तो क्या देश ऐसे आधे अधूरे व्यक्त्तिव और दोहरे चरित्र के व्यक्ति को देश के प्रधान मंत्री की कमान सौंपेगा क्योंकि एक सवाल तो है कि जो व्यक्ति पति धर्म का पालन नहीं कर सकता वह व्यक्ति राष्ट्र धर्म का पालन किस प्रकार कर सकेगा – लेकिन हमें तो भलीं भांति मालूम है कि समर्थक इस विषय को भी घुमाकर अपने पक्ष में करने में माहिर है ही और कह सकते है कि यह सब त्याग मोदी ने देश सेवा के लिए ही किये थे : तो फिर तो पार्टी और समर्थकों को चाहिए की ऐसे व्यक्ति के अभी से राम मंदिर के स्थान पर मोदी मंदिर बना कर उनको जीवित ही देवता बना देना चाहिए , धन्यवाद ?????????????? एस. पी. सिंह,मेरठ
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