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एक हिंदी पिक्चर आई थी “शोले” जिसने भारत ही नहीं विदेशों में धूम मचा दी थी – पिक्चर क्या थी एक चलता फिरता नाटक था जो भी एक बार देख लेता था एक एक डायलॉग ऐसे बोलता था जैसे स्वयं ही एक किरदार है – किरदार भी क्या क्या नमूने थे ? गब्बर सिंह, ठाकुर, जय, बीरू, बसंती, मौसी, और एक घोड़ी- धन्नो – यह तो एक पिक्चर थी लेकिन दुनिया के करोड़ों लोगों के दिल में बस गई थी ! आजकल एक पिक्चर नहीं नाटक हम राजनीति के मंच पर देख रहे है – जहां पर केवल पांच किरदार मौजूद है एक है बसंती – दूसरा वीरू – तीसरामौसा और चौथी मौसी – और पांचवा गब्बर सिंह, बेचारा वीरू जय की अनुपस्थिति में सवयं ही बसंती के साथ अपने लगन (शादी ) की बात करने के लिए इतना बैचैन है रात दिन मौसी को ढूंढने में लगा रहता है ? वीरू बहुत उतावला हो रहा है . पिछले दो वर्षों से जहां कहीं भी जाता है- कोई भी शहर , गली मौहल्ला, प्रदेश-झोपड़ियों से लेकर राज महल तक, चाय वाले से लेकर पान वाले तक गोदावरी के तट से लेकर सरयू के घाट तक रेल और मोटर की बात छोडो पूरे नभ में हवा में उड़ उड़ कर यही राग अलापता है “मौसी बसंती से मेरा लगन करा दो” ! यहां तक की मौसी के सामने न आने पर भी बीरू ने अपना पेशा , अपनी जाति , अपना धर्म सबकुछ डिक्लेअर कर दिया यहां तक कि पहले से ही अपने को शादी सुदा होने का ऐलान भी कर दिया ? पर मौसी इतनी कठोर है कि परदे से बाहर ही नहीं आ रही है ? अब जब तक मौसी परदे से बाहर नहीं आती तब तक क्या बसंती से बीरू का लगन हो सकता है भले ही मौसा जी तैयार हो ? अकेले मौसा के तैयार होने से क्या होता क्योंकि बसंती तो मौसी के कब्जे में है ? ऐसा बीरू का कहना है !
अब आप कहेंगे की कौन है बीरू कौन है गब्बर सिंह, और कौन है मौसा कौन है बसंती और कौन है मौसी ? तो हम बताते चले कि सभी किरदारों का परिचय इस प्रकार से है :-
बसंती : २०१४ की चुनावी सत्ता यानी कि प्रधान मंत्री की कुर्सी !
बीरू : हमारे आज के प्रधान मंत्री पद के दावेदार,
मौसा : देश की तिलक तराजू और तलवार वाली जनता
गब्बर सिंह : सत्ताधारी पार्टी, और
मौसी : इस देश की पर्दा नशी जनता (अल्पसंख्यक)
यहां पर न तो ठाकुर का महत्त्व है और न ही घोड़ी धन्नो का ही कोई महत्त्व है \
अब जब इस नाटक में बीरू का मित्र – दोस्त जय कहीं भी नहीं है तो बेचारा अकेला बीरू ही अपने उड़न खटोले पर बैठ कर रात दिन मौसी की तालाश में भटक रहा है भटक क्या रहा है दीवानों जैसी हालत हो गई है बेचारे की – मौसी भी क्या गजब है कभी कभी अपने चिलमन से थोड़ा सा झांकती है और फिर छुप जाती है लेकिन बीरू है कि बसंती के साथ लगन कैसे हो इसमें ही दीवाना हो गया है – हमसे तो बीरू की या दशा देखि नहीं जाती , भाई साहब अगर आपको कहीं मौसी दिखाई दे तो उसे काशी का रास्ता बता देना क्योंकि बीरू वहीँ पर गंगा के तट पर आजकल धूनी रमा के बैठ गया है – वैसे हम भी मौसी से गुजारिश कर रहे है कि –
“अरे !! मौसी आपका क्या जाता है अगर बसंती का लगन बीरू से हो जाय क्योंकि , बसंती आपकी सगी बेटी तो है नहीं ! हो जाने दो उसका लगन आपका का भी भला हो जायेगा आप इतने दिनों से बसंती को पाल रही हैं आखिर आपको अब तक मिला क्या है केवल तिरस्कार ही तो मिला है / हो जाने दो बसंती लगन बीरू के साथ आपका भी भला ही होगा !!!! एस पी सिंह, मेरठ.
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