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सैकड़ो वर्षो की गुलामी के बाद स्वतन्त्र हुए भारत जैसे अनोकों धर्म / विभिन्न मतावलमंबियों के देश की जनता ने जब जनता को ही अपना राजा चुनने का सवंविधान बनाया और अपने महापुरुषों, भद्र जनों, सज्जन पुरुषों और विदुषी महिलाओँ, नेताओं, अधिकारियों, संत महात्माओं , से अगर यह अपेक्षा करती है कि जनता की भलाई, उन्नति और बेहतर जीवन स्तर के लिए यह सभ्य वर्ग , देश की बाकी जनता को राह दिखाए तो इस में गलत क्या है ? लेकिन आज लगभग ६७ वर्षों के बाद भी हमें ऐसा नहीं लगता की हम स्वतंत्र है । एक सभ्य (या लम्पट ) वर्ग कुछ भी कहो जिसने राजनिति को ही अपना व्यसाय बना लिया है उस वर्ग का ध्येय ही यह रहता है कि किसी भी प्रकार से येन केन प्रकरेण सत्ता को हथियाया जाये उसके लिए जो भी तरीका हो सकता है अपनाया जाय ।
लेकिन बहुत दुःख होता है जब कुछ सज्जन से दिखाई देने वाले भद्र पुरुष या महिला (नेतागण) जब अपनी सभ्यता की सीमा को तोड़ते हए अपने प्रतिद्वंद्वी को भला बुरा कहते है या उनके लिए अमर्यादित शब्दों का प्रयोग करते है तो यह समझा जा सकता है की यह एक व्यापारिक व्यहार ही हो सकता है जिसमे एक पार्टी दूसरी पार्टी को नीचा दिखाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाती हैलेकिन जब समाज का सबसे सम्मानित साधु /संत वर्ग का कोई व्यक्ति राजनितिक लोगों की (दलाली) वकालत करते – करते अपनी मर्यादा को लांघ देता है तो बहुत ही आश्चर्य होता है ।
जहाँ तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल है देश के प्रत्येक नागरिक( नेता /अभिनेता/अधिकारी/व्यापारी / साधु-सन्यासी कोई भी हो ) को यह अधिकार है कि वह अपनी बात को सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर सकता है जिसका अधिकार उसे हमारे संविधान ने दिया है – और उसे अपनी बात को व्यक्त भी करना भी चाहिए । लेकिन भारतीय परम्परा के अनुसार हमारे भारत में साधु संतो का स्थान सर्वोपरि है । अब साधू-संत का आचार विचार क्या हो इस पर कोई बहस नहीं हो सकती क्योंकि साधु संत समाज ने अपनी उच्च परम्पराओं से इसे सिद्ध भी कर दिया है कि यह वर्ग समाज को सही दिशा देने के लिए ही संन्यास का व्रत लेते है ।
लेकिन अगर कोई व्यक्ति जिसने बचपन से ही संन्यास धारण कर लिया हो बाल -ब्रह्मचारी हो उसे बेहूदी बचकानी हरकतों और यौवनाचार (सेक्सी) बातों से परहेज करना ही चाहिए लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ लोग केवल गेरुवा वस्त्र धारण करके अपना वेश सन्यासियों जैसा अवश्य धारण कर लेते है लेकिन उनका मन सांसारिक लोभ को नहीं छोड़ता पाता है और वह सांसारिक भोग विलास को छोड़ ही नहीं सकते है जो की उनकी यदा कदा हरकतों से परिलक्षित होता रहता है ?
हम बात कर रहे है श्री राम किशन यादव की जो लगभग आज से तीस वर्ष पूर्व जो अपना घरबार छोड़कर ( बिमारी या आभाव् ग्रस्त होने के कारण) निर्वाण की तालाश में देव भूमि में आ गए थे और जब अपने गुरु देव के गायब होने ( या गायब कर दिया जाने )के बाद देव भूमि में अवतरित हुए तो एक सफल योग गुरु की शक्ल में थे और नाम रख लिया था स्वयंभू योग गुरु संत “बाबा राम देव” और एक भारतीय योग परम्परा को ही व्यापार का साधन बना लिया और योग को बेच कर करोड़ों रूपये अर्जित किये मन अभी यहीं से नहीं भरा फिर दौर आरम्भ हुआ आर्युवैदिक दवाओं के व्यापार का जो कभी निर्ववादित नहीं रहा ? फिर दौर शुरू हुआ सामाजिक उत्थान का और काले धन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन का जिसमे सामाजिक कार्य कम राजनीतिक दर्द अधिक आलोकित हो रहा था जिसका परिणाम यह हुआ की उनका आंदोलन भी कुचल दिया गया और अपनी जान बहाने के लिए उनको महिलाओं के वस्त्र धारण करके मंच से भागना पड़ा था ? और तभी से आज दिन तक बाबा राम देव ऐसा कोई भी अवसर नहीं छोड़ते जिसमे वर्तमान सरकार और एक पार्टी के अध्यक्ष और उसके परिवार को अनर्गल आरोपों और अभद्र टिप्पणियॉ से सुशोभित न करते हो ? क्योंकि सरकार ने भी उनके ऊपर एक सौ से अधिक वाद विभिन्न धाराओं में पंजीकृत कराये है जो अभी तक लंबित है. लोगों का तो यह भी कहना है कि बाबा राम देव के साम्राज्य में भी सबसे अधिक काले धन का उपयोग किया गया है ?
लेकिन हद तो तब हो गई जब इन्ही बाबा रामदेव जी ने अपनी सन्यासी परम्परा को कलंकित करते हुए विशुद्ध राजनितिक अवतार में एक पार्टी के अविवाहित उपाध्क्ष राहुल गांधी पर एक ऐसी अभद्र टिप्पणी कर दी जिसकी उपेक्षा एक सन्यासी व्यक्ति से नहीं की जाती सकती ? लेकिन यह कथित सन्यासी जी यहीं नहीं रुके उन्होंने ने हद तो तब कर दी जब भारत के सबसे उपेक्षित वर्ग दलित समाज को भी इसमें लपेट लिया और कहा की ” राहुल गांधी की माता जी चाहती है की बेटा किसी भारतीय कन्या से विवाह कर ले लेकिन बेटा है की किसी विदेशी कन्या से शादी करना चाहता परन्तु माँ ऐसा नहीं चाहती इस लिए बेटा अपना हनीमून और पिकनिक मनाने के लिए दलितों के घर में जाता है ” ऐसे शब्द किसी सन्यासी के मुखारविंद को शोभा नहीं देते ?
लगता है कि अब बाबा राम देव के अंदर का वह बालक राम किशन यादव जिसने अभाव के चलते संन्यास ले लिया अब संम्पन होने के बाद उसके अंदर का भी काम देव जग ही गया है तभी तो वह ऐसे बेतुके बोल बोल कर अपने मन की दशा को दर्शाने की कोशिस कर रहे है इसलिए हम तो समझते है अब इस पाखंडी व्यापारी सन्यासी को तुरंत ही गिरफ्तार करके कड़ी सजा दी जानी चाहिए क्योंकि ऐसा संत जो नरेंद्र मोदी नमक एक पिछड़े वर्ग के नेता को प्रधान मंत्री बनाने के लिए अपने तन मन धन के साथ इस प्रकार से दीवाने पन इजहार कर रहे है जैसे बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना !!! ? और साथ ही संत समाज को ऐसे बहरूपिये पाखंडी को संत समाज से बहिस्कृत करना ही चाहिए ? एस पी सिंह, मेरठ।
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